अमेरिकी डॉलर के सामने भारतीय करेंसी की दुर्गति की खबर अब आम हो चुकी है।  बुधवार (19 अक्टूबर)  को रुपया 61 पैसे टूट कर 83.01 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था, इसे अब तक का सबसे निचला स्तर बताया जा रहा है। हालांकि भारतीय करेंसी की हालत हमेशा ऐसी नहीं थी। कभी रुपया का जलवा भारत के अलावा कुछ पर्शियन गल्फ देशों में भी हुआ करता था।

मीडिल ईस्ट के साथ भारत का एतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक संबंध बहुत पुराना है। व्यापार के लिए सदियों से आना जाना रहा है। एक वक्त स्थिति ऐसी भी थी, जब भारतीय रुपया अरब देशों की आधिकारिक करेंसी थी। आरबीआई वहां के लिए भी नोट छापा करता था। लेकिन बाद में यह सब बंद करना पड़ा। सवाल उठता है क्यों, आइए विस्तार से जानते हैं:

1950 के दशक तक लगभग सभी वित्तीय लेनदेन के लिए संयुक्त अरब अमीरात (तब ट्रुशियल स्टेट्स के रूप में जाना जाता था), कुवैत, बहरीन, ओमान और कतर में भारतीय रुपये का इस्तेमाल किया जाता था। यह व्यवस्था अंग्रेजों द्वारा भारत पर शासन करते समय लागू की गई थी।

दरअसल अंग्रेजों का भारत के साथ-साथ यूएई, कुवैत बहरीन, कतर, ओमान जैसे पर्शियन गल्फ देशों पर भी कब्जा था। ब्रितानी हुकूमत ने इन सभी देशों के लिए कॉमन करेंसी रखी थी। 1935 मे जब रिजर्व बैंक बना, तब उसकी मुद्राओं को उपनिवेश गल्फ देशों में भी मान्यता मिली। यह व्यवस्था अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद भी जारी रही क्योंकि खाड़ी देश तब भी अंग्रेजों के गुलाम थे और ब्रिटिश सरकार ने वहां के लिए अलग मुद्रा की व्यवस्था नहीं की थी। हालांकि बाद में भारत को इस सिस्टम में बदलाव करना पड़ा।

क्या हुआ बदलाव?

ये वो दौर था, जब खाड़ी देशों में तेल की खोज नहीं हुई थी। तब वहां सोना सस्ता मिलता था। तस्कर वहां से सस्ते में सोना खरीद कर, भारत में बेचते थे। अधिक मुनाफा कमा कर वह और अधिक सोना खरीदते थे। इसे लेकर अदालत में एक मामला भी चला था, जो बहुत चर्चित है।

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1957 के पहले नौ महीनों में तस्करी के सोने के बदले भारत से अनुमानतः $69.3 मिलियन गल्फ देशों में गए थे। यही वजह थी कि भारत ने सिस्टम में बदलाव किया और खाड़ी देशों के लिए अलग करेंसी छापने का फैसला लिया गया।

एक मई 1959 को भारत के राष्ट्रपति की सहमति से भारतीय संसद के दोनों सदनों में एक बिल पारित कर पर्शियन गल्फ देशों के लिए अलग रुपया जारी करने के फैसले लिया गया। उस करेंसी को एक्सटर्नल रुपी या गल्फ रुपी नाम दिया गया। मुद्रा गल्फ रुपी का मूल्य भारतीय रुपये के समान था। एक, पांच, दस और 100 रुपये को वह नोट भारत में लीगल टेंडर नहीं थे, यानी अवैध थे।

भारत सरकार मक्का और मदीना जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए विशेष हज नोट भी जारी कर चुकी है। दस और सौ मूल्यवर्ग के नोटों के अग्रभाग पर हज लिखा होता था। उन्हें सामान्य रुपये के नोटों से अलग करने का एक और तरीका सीरियल नंबर था जो “HA” अक्षरों के साथ शुरु होता था।