बिहार सरकार ने जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी कर दिए हैं। सर्वे के परिणाम से यह पता चलता है कि राज्य की पूरी आबादी विभिन्न जाति वर्गों जैसे-  पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, सामान्य वर्ग, आदि में विभाजित है।

भारत में किसकी आर्थिक स्थिति कैसी होगी, इसे निर्धारित करने में जाति अक्सर महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस रिपोर्ट में हम सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के इकोनॉमिक आउटलुक से प्राप्त जाति-वार डेटा को देखेगा। CMIE ने जाति के आधार पर एम्प्लॉयमेंट और कंज्यूमर सेंटीमेंट को दर्शाया गया है।

रोजगार को लेकर कुछ बुनियादी बातें

भारत में रोजगार के बारे में बात करते समय तीन पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है।

एक है श्रम बल भागीदारी दर, अंग्रेजी में इसे लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR) कहते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो इससे पता चलता है कि कितने भारतीय नौकरी की ‘मांग’ कर रहे हैं। लेबर फोर्स में 15 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्ति को शामिल किया जाता है। लेबर फोर्स में दो श्रेणियां होती हैं- 1. जो एंप्लॉयड हैं यानी नौकरी कर रहे हैं। 2. जो बेरोजगार हैं, लेकिन काम करने के इच्छुक हैं और सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश में हैं।

लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट को कामकाजी उम्र की आबादी के प्रतिशत के रूप में दिखाया जाता है।

दूसरा पहलू है, बेरोजगारी दर ( Unemployment Rate)। यह और कुछ नहीं, बल्कि वर्क फोर्स में उन लोगों की संख्या है जो नौकरी की तलाश में हैं, लेकिन अभी तक बेरोजगार हैं।

लोगों की आम चर्चा में अक्सर बेरोज़गारी दर का जिक्र आता है। हालांकि, भारत के मामले में Unemployment Rate अक्सर बेरोजगारी को कम करके आंकता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट अपने आप गिरता रहता है, जिस पर लोगों का ध्यान नहीं जाता।

सीधे शब्दों में कहें तो यह पाया गया है कि यदि समय पर नौकरी नहीं मिलती है, तो बहुत से बेरोजगार निराश होकर लेबर फोर्स से बाहर हो जाते हैं, यानी सक्रिय रूप से नौकरी की तलाश बंद कर देते हैं। बेरोजगार लोगों के लेबर फोर्स से बाहर होने पर कुल श्रम बल में बेरोजगारों का अनुपात गिर जाता है।

जाति-वार लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR)

नीचे टेबल नंबर-1 में वित्तीय वर्ष 2016 से जाति-वार लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट के आंकड़े देख सकते है। पॉपुलर कास्ट ग्रुप्स के अलावा एक मिडिल लेवल का कास्ट ग्रुप भी है, जैसे- मराठा, जाट, गुज्जर और अन्य जातियां। ये जातियां ओबीसी श्रेणी में शामिल होने की इच्छा रखती हैं।

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जाति-वार श्रम बल भागीदारी दर, टेबल नंबर-1

टेबल में दिख रहे डेटा से बहुत कुछ स्पष्ट होता है। जैसे- LFPR प्रत्येक जाति के लिए गिर गया है। यदि उस कैटेगरी के डेटा को नजरअंदाज दें, जिसमें किसी जाति का जिक्र नहीं है तो पाएंगे कि तथाकथित ऊंची जातियों का LFPR अन्य सभी जातियों के मुकाबले सबसे कम है। तथाकथित ऊंची जातियों का LFPR 37.21% है। दूसरे शब्दों में कहें तो ऊंची जातियों में नौकरियों की डिमांड सबसे कम है।

2016 के बाद से LFPR में सबसे ज्यादा गिरावट ओबीसी और एससी के बीच हुई है। दूसरे शब्दों में कहें तो इन दो जाति समूहों से संबंधित लोग भारत के LFPR गिरने से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।

जाति-वार बेरोजगारी दर

टेबल नंबर-2 प्रत्येक जाति समूह का बेरोजगारी दर दिखाता है।

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जाति-वार बेरोजगारी दर, टेबल नंबर-2

भारत में बेरोजगारी दर लगातार हाई ही रहा है। आर्थिक सुधारों के बावजूद पिछले वित्तीय वर्ष (2022-23) में बेरोजगारी दर गत छह वर्षों से सबसे अधिक था। हालांकि ओबीसी के बेरोजगारी दर में मामूली गिरावट आई है। लेकिन अन्य सभी जाति समूहों के लिए बेरोजगारी दर ऊंचा ही बना हुआ है।

एलएफपीआर में गिरावट के बावजूद बेरोजगारी दर अधिक है जो चिंताजनक प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है। बेरोजगारी दर तब भी अधिक है जब नौकरी की मांग करने वाले लोगों का अनुपात कम हो गया है।

जहां तक ओबीसी के लिए बेरोजगारी दर में गिरावट का सवाल है, ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि उनमें LFPR अन्य सभी जाति समूहों से ज्यादा गिरा है।

जाति-वार रोजगार दर

टेबल नंबर-3 हर एक जातीय वर्ग के लिए LFPR में गिरावट और High Unemployment Rate की संयुक्त वास्तविकता को सबसे अच्छी तरह दर्शाता है। टेबल से रोजगार दर का पता चलता है। तुलनात्मक तरीके से देखने पर पता चलता है बीते छह-सात सालों में प्रत्येक जाति समूह के लिए रोजगार दर गिरा ही है। हालांकि उच्च जातियों में रोजगार दर सबसे कम है।  बेरोजगारी दर में सबसे बड़ी गिरावट ओबीसी और एससी के बीच देखी गई है।

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जाति-वार रोजगार दर- टेबल नंबर-3

धर्मानुसार रोजगार दर

बिहार के जाति सर्वेक्षण में गैर-हिंदुओं (जैसे मुस्लिम) को भी विभिन्न जातियों में वर्गीकृत कर गिना गया है। ऐसे में यहां धर्म-वार रोजगार दरों को भी देखना प्रासंगिक हो जाता है।

टेबल नंबर-4 बहुत ही दिलचस्प आंकड़े दिखा रही है: सभी धार्मिक समूहों की तुलना में 2016-17 से 2022-23 के बीच रोजगार दर में सबसे बड़ी गिरावट हिंदू धर्म में हुई है। हालांकि सबसे कम रोजगार दर जैनियों की है।

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धर्म-वार रोजगार दर, टेबल नंबर-4

जाति-वार कंज्यूमर सेंटीमेंट

टेबल नंबर-5 में सीएमआईई ने जाति के आधार पर कंज्यूमर सेंटीमेंट को दिखाया है। इसका आंकड़ा इसलिए जुटाया जाता है ताकि बिजनेस करने वाले लोग कंज्यूमर के मूड को समझ सकें और क्या बदलाव करना है इसका अनुमान लगा सकें।

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कंज्यूमर सेंटीमेंट का सूचकांक, टेबल नंबर-5

डेटा से पता चलता है कि 2016-17 के बाद लगभग सभी जाति समूहों में कंज्यूमर सेंटीमेंट 20% से 25% कम हुआ है। कंज्यूमर सेंटीमेंट का सबसे निचला स्तर ओबीसी में देखने को मिला है। हालांकि, सबसे बुरी तरह प्रभावित वो मध्यवर्ती जातियां हुई हैं, जो ओबीसी श्रेणी में शामिल होने की इच्छा रखती हैं।