राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की वार्षिक रिपोर्ट ‘क्राइम इन इंडिया’ 29 अगस्त को जारी हो चुकी है। ताजा रिपोर्ट में साल 2021 में हुए अपराधों का आंकड़ा है। NCRB वर्षों से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध से लेकर आर्थिक और वित्तीय अपराध तक के आंकड़ों का संकलन करता आ रहा है।

2021 के आंकड़ों की बात करें तो 2020 की तुलना में दर्ज अपराध के मामलों में 7.6 प्रतिशत की गिरावट आयी है। 2020 में प्रति लाख जनसंख्या पर अपराध दर 487.8 था, जो 2021 में घटकर 445.9 हो गया है। हालांकि, अपराध के आंकड़े हमेशा पूरी कहानी नहीं बताते हैं। किसी क्षेत्र में अपराध के मामलों का कम दर्ज होना, क्षेत्र के सुरक्षित होने की गारंटी नहीं है। आइए समझते हैं एनसीआरबी अपनी रिपोर्ट के लिए डेटा कैसे जुटाता है और संख्या से परे आंकड़ों को कैसे समझना चाहिए?

कैसे जुटाए जाते हैं आंकड़े?

एनसीआरबी की रिपोर्ट में देश भर के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त आंकड़ों को शामिल किया जाता है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के लिए राज्‍य अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो द्वारा जिला अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो से अपराध का आंकड़ा मांगा जाता है। वर्ष के अंत में राज्‍य अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो द्वारा उन आंकड़ों को राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो को भेजा जाता है। 53 महानगरीय शहरों या अंतिम जनगणना के आधार पर 10 लाख या उससे अधिक जनसंख्‍या वाले शहरों से अलग से डाटा जुटाया जाता है।

अपराध के वर्गीकरण का विवादित नियम

एनसीआरबी खुद मानता है कि उनके आंकड़ों की सीमाएं हैं। रिपोर्ट को ‘प्रधान अपराध नियम’ के तहत बांटकर प्रकाशित किया जाता है। प्रधान अपराध नियम कहता है कि ऐसे मामले में जहां एक साथ कई अपराध दर्ज किए गए हों, गिनती के समय केवल “सबसे जघन्य अपराध”, जिसमें सबसे कड़ी सजा होती है, उसी पर विचार किया जाएगा। उदाहरण के लिए ‘मर्डर विद रेप’ को केवल ‘मर्डर’ के रूप में गिना जाता है। इससे रेप की गणना कम हो जाती है।

जैसा की पहले ही बताया गया है कि रिपोर्ट में शामिल अपराध का डेटा स्थानीय, जिला और राज्य स्तर से होते हुए अंत में एनसीआरबी तक पहुंचता है। ऐसे में डेटा की क्षमता पर संदेह होता है क्योंकि स्थानीय स्तर पर पुलिस अधिकारियों की कमी डेटा संग्रह में बड़ी बाधा है। इसके अलावा एनसीआरबी के पास स्थानीय स्तर से जो डेटा भेजा जाता है वह वास्तविक अपराध के बजाय पंजीकृत अपराध की घटनाओं का रिकॉर्ड होता है।

‘अपराध में वृद्धि’ और ‘पुलिस द्वारा अपराध के पंजीकरण में वृद्धि’ स्पष्ट रूप से दो अलग-अलग चीजें हैं। एनसीआरबी खुद कहता है कि दर्ज अपराध की संख्या में वृद्धि हमेशा बुरा संकेत नहीं होता। यह संभव है कि पुलिस की पहल और जागरुकता अभियान के कारण लोग वह मामले दर्ज करवा रहे हों, जो पहले नहीं होते थे। ई-एफआईआर की सुविधा या महिला हेल्पडेस्क आदि की शुरूआत भी दर्ज अपराध की संख्या में वृद्धि का कारण हो सकते हैं।