ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर और नवंबर के बीच कार्तिक पूर्णिमा को सिख संप्रदाय के प्रथम गुरु ‘नानक देव’ की जयंती मनायी जाती है। सिख धर्म के अनुयायी इस दिन को गुरु नानक के प्रकाश उत्सव के रूप में मनाते हैं।
सिख संप्रदाय के उद्भव और विकास के संबंध में ब्रिटिश लाइब्रेरी पर प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, सिख धर्म की शुरुआत 1500 ई. के आसपास हुई, जब गुरु नानक ने एक ऐसे धर्म की शिक्षा देना शुरू किया जो हिंदू धर्म और इस्लाम से काफी अलग था। नौ गुरुओं ने नानक का अनुसरण किया और अगली शताब्दियों में सिख धर्म और समुदाय का विकास किया। सिख संप्रदाय के दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने सिख धर्म को औपचारिक रूप दिया था।
नानक जयंती पर क्या होता है?
नानक जयंती से दो दिन पहले गुरुद्वारों में जश्न शुरू हो जाता है। गुरु ग्रंथ साहिब का निरंतर 48 घंटे का अखंड पाठ होता है। गुरु नानक के जन्मदिन से एक दिन पहले एक नगर कीर्तन जुलूस निकाली जाती है। सिख त्रिकोणीय ध्वज, निशान साहिब लेकर चलने वाले पांच लोग जुलूस का नेतृत्व करते हैं, जिन्हें पंज प्यारे कहा जाता है।
जुलूस के दौरान गुरु ग्रंथ साहिब को पालकी में ले जाया जाता है। लोगों का समूह भजन गाते हैं, पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाते हैं और अपने युद्ध कला के कौशल का प्रदर्शन करते साथ-साथ चलता है। 27 नवंबर 2023 को नानक देव की 554वीं जयंती मनाई जा रही है।
सामाजिक न्याय के प्रचारक थे नानक
नानक ने हमेशा मानवता, समृद्धि और सामाजिक न्याय के लिए निस्वार्थ सेवा का प्रचार किया। प्रकृति में ईश्वर की तलाश करने वाले नानक जाति व्यवस्था के खिलाफ थे। उन्होंने इस बात को प्रमुखता से स्थापित किया कि हर इंसान एक है, चाहे किसी भी जाति या लिंग का हो।
नानक जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता गांव के प्रसिद्ध व्यापारी थे। नानक के पिता उन्हें भी व्यापार का गुण सिखाना चाहते थे। इसी मकसद से जब नानक 12 वर्ष के हुए, तो उनके पिता ने उन्हें कुछ पैसे देकर सच्चा सौदा (एक अच्छा सौदा) करने के लिए बाजार भेजा।
मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नानक ने उन पैसों से संतों के एक बड़े समूह को भोजन करवा दिया, जो कई दिनों से भूखे थे। उन्होंने इसे ही सच्चा व्यवसाय के रूप में वर्णित किया है।
गुरु नानक ने की थी लंगर की शुरुआत
गुरु नानक जयंती पर जुलूस और समारोह के बाद स्वयंसेवकों द्वारा गुरुद्वारों में लंगर की व्यवस्था की जाती है। सिख धर्म में लंगर का विशेष महत्व है। बताया जाता है इसकी शुरुआत गुरु नानक ने ही कम्युनिटी किचन के तौर पर की थी। इसका मकसद विभिन्न जाति समुदाय के भूखे लोगों को एक साथ बिना भेदभाव खाना खिलाना था।