चुनाव आयोग ने पांच राज्यों (छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना) के विधानसभा चुनावों की घोषणा कर दी है। पांचों राज्यों में मतदान नवंबर माह में होंगे और नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे। इस आर्टिकल में हम यह जानेंगे कि चुनाव के मुहाने पर खड़े इन राज्यों की विधानसभाओं ने अपने कार्यकाल में कितना काम किया है?, विधानसभा में जनता के मुद्दों को लेकर साल में कितनी बार और कितनी देर तक के लिए चर्चा हुई? PRS Legislative Research ने 2019 से 2023 तक के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। पांचों राज्यों में एक साल में 30 दिन से भी कम सदन चला है।
मार्च 2020 से MP में डिप्टी स्पीकर नहीं हैं
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिली थी। कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कई विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस सरकार गिर गई। मार्च 2020 में भाजपा सत्ता में लौट आई और तब से ही विधानसभा में डिप्टी स्पीकर का चुनाव नहीं हुआ है।
मध्य प्रदेश में एक वर्ष में औसतन 16 दिन विधानसभा चली है। एक बैठक औसतन 4 घंटे चली है। साल 2020 में मध्य प्रदेश विधानसभा सिर्फ छह दिन चली थी। मध्य प्रदेश विधानसभा के शुरुआती 10 साल की बात करें तो सदन औसतन हर साल 48 दिन चला है। वहीं आखिरी दस वर्षों में यह आंकड़ा गिरकर एक साल में औसतन 21 दिन रह गया।

राजस्थान में भी डिप्टी स्पीकर नहीं
कांग्रेस शासित राजस्थान का कार्यकाल खत्म होने को है, लेकिन वहां डिप्टी स्पीकर का चयन अब तक नहीं हुआ है। एक साल में राजस्थान विधानसभा औसतन 29 दिन चला है और एक बैठक की अवधि औसतन सात घंटे रही है। राजस्थान विधानसभा के शुरुआती 10 साल की बात करें तो सदन औसतन हर साल 59 दिन चला है। अब अगर आखिरी दस वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि सदन हर साल औसतन 29 दिन चला है।
विधानसभा का सत्र राज्यपाल द्वारा सम्मन जारी करने के बाद शुरू होता है। सत्र के समाप्त होने से पहले भी राज्यपाल द्वारा ही समापन का नोटिस जारी करना अनिवार्य होता है। राजस्थान और तेलंगाना में सत्र स्थगित तो कर दिए गए लेकिन राज्यपाल ने स्थगन को लेकर नोटिस नहीं जारी किया, इसलिए बैठक लंबे अंतराल के साथ कई महीनों तक चले। उदाहरण के लिए 2021 और 2022 में राजस्थान में फरवरी में शुरू होने वाले सत्र सितंबर में समाप्त हुए। इनमें से प्रत्येक वर्ष में लगभग 80% बैठकें फरवरी और मार्च में ही हो गईं।

छत्तीसगढ़ का हाल
छत्तीसगढ़ विधानसभा एक साल में औसतन 23 दिन चली है। बैठक की अवधि औसतन पांच घंटे रही है। पांचों चुनावी राज्यों में छत्तीसगढ़ की विधानसभा में ही सबसे लंबी बैठक देखने को मिली है। 21 जुलाई, 2023 को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान छत्तीसगढ़ विधानसभा 14 घंटे चली थी।
औसतन सबसे कम दिन चली है तेलंगाना की विधानसभा
तेलंगाना विधानसभा एक साल में औसतन 15 दिन चली है। पीआरएस के मुताबिक, प्रत्येक बैठक में कार्यवाही कितने घंटे चली है, इसका डेटा उपलब्ध नहीं है। तेलंगाना में सबसे ज्यादा दिन (37 दिन) सदन 2017 में चला था। इसके बाद हर साल 20 दिन से कम ही चला है।
किस राज्य की विधानसभा में बिल पर सबसे ज्यादा हुई चर्चा?
PRS के विश्लेषण से पता चलता है कि पांचों राज्यों की विधानसभाओं में करीब आधे बिल (48 प्रतिशत) उसी दिन या अगले दिन पास कर दिए गए, जिस दिन सदन में पेश किया गया। इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि विधानसभाओं में बिलों पर कितनी चर्चा हुई है। मिजोरम ने अपने मौजूदा कार्यकाल के दौरान 57 विधेयक पारित किए, सभी विधेयक सदन में पेश करने के दिन या अगले दिन पास कर दिए गए।
छत्तीसगढ़ में एक दिन में पास होने वाले बिलों की संख्या करीब 50 प्रतिशत है। 2020 में छह घंटे की एक बैठक में छत्तीसगढ़ विधानसभा ने 14 विधेयक पारित किए थे। मध्य प्रदेश की बात करें तो साल 2022 में दो दिनों में 13 विधेयक पेश और पारित किए गए। बिलों पर सबसे ज्यादा दिन चर्चा राजस्थान में हुई है।

मध्य प्रदेश सरकार लाई सबसे ज्यादा अध्यादेश
2019 से 2023 के बीच, मध्य प्रदेश में 39, तेलंगाना में 14 और राजस्थान में 13 अध्यादेश लाए गए। जब विधानसभा सत्र नहीं चल रहा होता, तो राज्य अध्यादेश जारी कर सकते हैं। मप्र में 2020 में 11 अध्यादेश लाए गए, जब विधानसभा की बैठक केवल छह दिन चली। साल 2021 में अध्यादेशों की संख्या बढ़कर 14 हो गई, जब विधानसभा की बैठक 20 दिनों के लिए हुई। 2019 से 2023 के बीच में सबसे कम अध्यादेश छत्तीसगढ़ और मिजोरम में लाए गए।

अटेंडेंस के मामलों में छत्तीसगढ़ बेहतर
इन तीन राज्यों में पांच वर्षों में औसत उपस्थिति 83% रही है। छत्तीसगढ़ में सभी वर्षों में विधायकों की उपस्थिति 87% से 90% के बीच रही है। मध्य प्रदेश में 2019 में औसत उपस्थिति 92% थी, लेकिन बाद के वर्षों में 80% से नीचे आ गई।

राजस्थान में 2019 से 2021 तक उपस्थिति औसतन लगभग 85% रही, लेकिन 2022 में घटकर 67% हो गई।