अनीषा दत्ता

केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन जारी है। पिछले दिनों हुए उग्र विरोध प्रदर्शन के दौरान बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल  और तेलंगाना तक रेलवे संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया। तोड़फोड़ की गई। ट्रेनों को आग के हवाले किया गया। विरोध प्रदर्शन के पहले सप्ताह में तीन चलती ट्रेनों के डिब्बे और एक खाली रेक क्षतिग्रस्त किया गया, एक स्थिर ट्रेन में तोड़फोड़ की गई, एक रेलवे स्टेशन को तोड़ा गया, भीड़ ने बिहार में एक रेलवे स्टेशन और तेलंगाना के सिकंदराबाद में कम से कम तीन ट्रेनों में आग लगा दी।

रेल मंत्रालय के अनुसार, मंगलवार तक विरोध प्रदर्शनों ने 612 ट्रेनों को प्रभावित किया। इनमें से 602 ट्रेनों को पूरी तरह रद्द करना पड़ा। वहीं 10 को आंशिक रूप से रद्द करना पड़ा। सूत्रों के मुताबिक, उग्र विरोध प्रदर्शनों के दौरान ट्रेनों को करीब 25 करोड़ का नुकसान हुआ है। यह पहली बार नहीं है जब विरोध प्रदर्शन के दौरान भारतीय रेलवे को निशाना बनाया गया हो। रेलवे 168 साल पुराना संगठन है। इसका इस्तेमाल लाखों भारतीय कम खर्च में यात्रा के लिए करते हैं। साथ ही किसी मुद्दे पर सरकार का ध्यान खींचने के लिए रेलवे प्रदर्शनकारियों के लिए एक बड़ा प्रतीक भी है।

दुनिया के चौथे सबसे बड़े रेल नेटवर्क के रूप में भारतीय रेलवे 64,000 किलोमीटर में फैला है। इसके 13,000 यात्री ट्रेनों में प्रतिदिन लगभग 230 लाख लोग यात्रा करते हैं। रेलवे के पास करीब 13 लाख कर्मचारी हैं।

इलाहाबाद स्थित गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर बद्री नारायण रेलवे को निशाना बनाए जाने की मानसिकता को समझाते हुए कहते हैं ”रेलवे को निशाना बनाना विरोध का एक बहुत पुराना रूप है। यहां तक कि आपातकाल के दौरान और जयप्रकाश (नारायण) आंदोलन के दौरान भी रेलवे को निशाना बनाया गया क्योंकि यह एक दृश्यमान (बड़े स्तर दिखाई देने वाला) सरकारी ढांचा है। रेलवे के अंदरूनी इलाकों में पुलिस की मौजूदगी नहीं होती। अन्य सरकारी कार्यालयों में सुरक्षा व्यवस्था अधिक होती है और इस प्रकार रेलवे के माध्यम से सरकारी प्रतीकों पर हमला करना आसान हो जाता है।”

रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि विरोध प्रदर्शनों से अक्सर भारी नुकसान होता है। किसी कोंच या रेक को मामूली नुकसान होने पर भी पूरा ट्रेन नेटवर्क प्रभावित हो जाता है। मामले को विस्तार से समझाते हुए अधिकारी ने कहा, ”ऐसी स्थितियों में जहां इस तरह के विरोध हिंसक हो जाते हैं, हम एक आपातकालीन बैठक आयोजित कर सुनिश्चित करते हैं कि हमारे पास संचालन, वाणिज्यिक और आरपीएफ विंग 24X7 के अधिकारियों द्वारा संभागीय नियंत्रण हो, क्योंकि तुरंत जवाब देना होता है। क्योंकि तुरंत जवाब देना होता है। अगर एक छोटा स्टेशन भी अवरुद्ध हो जाता है तो यह अन्य स्टेशनों पर परिचालन को प्रभावित करता है। यहां तक कि मेन लाइन के एक बहुत छोटे स्टेशन पर एक नाकेबंदी के कारण भी 200-300 किमी दूर तक दर्जनों ट्रेनों का गुच्छा बन जाएगा।”

अधिकारी ने आगे बताया, ”हिंसक विरोध प्रदर्शन से यात्रियों को तो असुविधा होती ही है। अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान होता है। सबसे गंभीर प्रभाव मालगाड़ियों पर पड़ता है। यदि एक मंडल में एक मुख्य लाइन अवरुद्ध हो जाती है तो इससे पूरे राज्य या क्षेत्र में खाद्यान्न, सीमेंट, तेल, नमक आदि जैसे सामानों की कमी हो सकती है।”

बता दें कि अग्निपथ योजना से पहले एनटीपीसी परिणाम को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान भी रेलवे को आर्थिक क्षति हुई थी। बिहार में रेलवे को लगभग 18 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। उसके पहले कृषि विधेयकों के विरोध में किसानों ने पंजाब में रेल जाम किया था, जिसके परिणामस्वरूप राज्य में लगभग दो महीने के लिए ट्रेनों को पूरी तरह से निलंबित कर दिया गया था। तब रेलवे ने 1,200 करोड़ रुपये के नुकसान का दावा किया था। पंजाब में 2015 के रेल रोको आंदोलन के बारे में माना जाता है कि उससे रेलवे को 100 करोड़ रुपये का वित्तीय नुकसान हुआ था, चार दिनों तक चले उस आंदोलन में 550 से अधिक ट्रेनें प्रभावित हुई थीं।