एक सप्ताह पहले ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के राजकीय अंतिम संस्कार के लिए वैश्विक नेता लंदन में एकत्र हुए थे। अब उनमें से कई एक और राजकीय अंतिम संस्कार में शामिल होने जापान जाने वाले हैं। 27 सितंबर को टोक्यो में पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे को अंतिम विदाई दी जानी है।
जापान टाइम्स के मुताबिक, टोक्यो के निप्पॉन बुडोकन में आयोजित राजकीय अंतिम संस्कार में 217 से अधिक देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों के भाग लेने की संभावना है। भारत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे। शिंजो आबे के अंतिम संस्कार पर करीब 1.7 बिलियन येन (£ 10.1m) यानी करीब 94 करोड़ रुपया खर्च होने का अनुमान है।
महारानी के अंतिम संस्कार से ज्यादा होगा खर्च
बताया जा रहा है कि शिंजो आबे के अंतिम संस्कार पर खर्च होने वाली रकम महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के अंतिम संस्कार पर खर्च हुए रकम से अधिक है। आबे का अंतिम संस्कार स्टेट फंडेड होगा यानी पूरा खर्च जापान की सरकार उठाएगी। सरकार ने पहले बताया था कि अंतिम संस्कार पर 250 मिलियन येन का अधिक खर्च आएगा। लेकिन तब यह साफ कर दिया गया था कि इस खर्च में सुरक्षा और विदेशी मेहमानों की मेजबानी का बिल शामिल नहीं है।
द गार्जियन की एक रिपोर्ट के अनुसार मुख्य कैबिनेट सचिव हिरोकाज़ु मात्सुनो ने बताया है कि आयोजन की पुलिसिंग पर लगभग 800 मिलियन येन और गणमान्य व्यक्तियों की मेजबानी पर 600 मिलियन येन खर्च होने का अनुमान है। सरकार भले ही जोर-शोर से अंतिम संस्कार की तैयारी में जुटी हो लेकिन जापान के ज्यादातर नागरिक इस आयोजन से खुश नहीं है। वह सड़कों पर उतरकर इसका विरोध कर रहे हैं।
क्यों हो रहा है विरोध?
जापान के नागरिकों का कहना है कि उनके टैक्स के पैसों से इतना महंगा अंतिम संस्कार ना किया जाए। कुछ विपक्षी सांसद भी राजकीय अंतिम संस्कार का बहिष्कार कर रहे हैं। पिछले दिनों विरोध प्रदर्शन में शामिल एक शख्स ने मौजूदा पीएम फुमियो किशिदा के दफ्तर के बाहर खुद को आग लगा ली थी। प्रदर्शनकारी को बचाने के प्रयास में एक पुलिसकर्मी भी झुलस गया था। दोनों अस्पताल में भर्ती हैं।
शिंजो आबे और उनकी सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के यूनिफिकेशन चर्च के साथ संबंधों के खुलासे के बाद विरोध और भी ज्यादा बढ़ गया है। पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या में शामिल युवक ने आरोप लगाया था कि आबे द्वारा पोषित यूनिफिकेशन चर्च के कारण ही उसका परिवार गरीब हो गया था। बाद में एलडीपी द्वारा कराई गई जांच में पाया गया कि 379 सांसदों में से 179 की चर्च से बातचीत थी।
जैसे-जैसे एलडीपी और यूनिफिकेशन चर्च के बीच संबंधों के प्रमाण और अंतिम संस्कार की लागत बढ़ती गई, लोगों को विरोध भी बढ़ता गया। समारोह का विरोध करने वाले नागरिक समूहों ने हाल ही में इसे रद्द करने के लिए 400,000 हस्ताक्षरों की एक याचिका पेश की है। जबकि सितंबर की शुरुआत में करीब 4,000 लोगों ने ही संसद के बाहर आयोजन के खिलाफ प्रदर्शन किया था। अंतिम संस्कार की बढ़ती लागत को कई लोगों आर्थिक कठिनाई के दौर में आग में घी डालने वाला बता रहे हैं।
हाल ही में मेनिची अखबार के एक सर्वेक्षण में पाया है कि लगभग 62% लोग राजकीय अंतिम संस्कार का विरोध कर रहे हैं। मैनिची पोल में मौजूदा प्रधानमंत्री किशिदा का समर्थन भी गिरकर 29% हो गया। अगर यही स्थिति रही तो सरकार को अपने राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने में कठिनाई आ सकती है। योमीउरी शिंबुन अखबार द्वारा इस महीने किए गए एक सर्वेक्षण में शामिल 56% लोगों ने अंतिम संस्कार का विरोध किया है, जबकि 38% ने समर्थन किया है।
किशिदा ने माना है कि यूनिफिकेशन चर्च कांड ने राजनीति में जनता के विश्वास को कम किया है। उन्होंने कहा कि वह मांग करेंगे कि पार्टी एमपीएस संगठन से संबंध तोड़ ले।
जापान में जनता के पैसों से नहीं होता नेताओं का अंतिम संस्कार
जापान में जनता के पैसों से नेताओं के अंतिम संस्कार का चलन नहीं है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद शिंजो आबे (Former Japanese PM Shinzo Abe State Funeral Controversy News) ऐसे दूसरे प्रधानमंत्री हैं, जिनका अंतिम संस्कार सरकारी खर्च से हो रहा है। इनसे पहले 1967 में शिगेरु योशिदा की मौत पर राजकीय अंतिम संस्कार का आयोजन हुआ था। अन्य सभी प्रधानमंत्रियों की मौत पर रेगुलर प्रोटोकॉल के तहत ही फ्यूनरल हुआ है।
दूसरी बार हो रहा है शिंजो आबे का अंतिम संस्कार
8 जुलाई को शिंजो अबे की हत्या के बाद उनके परिवार ने उनका अंतिम संस्कार 15 जुलाई को कर दिया था। इस बार जो होगा वह प्रतीकात्मक होगा। शिंजो आबे की हत्या चुनाव प्रचार के दौरान हुई थी। उनकी हत्या के बाद हुए मतदान में आबे की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) को फिर से सत्ता मिली थी।