चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए तैयारियां पूरी कर ली हैं। आज (18 जुलाई) नए राष्ट्रपति के लिए मतदान होना है। परिणाम की घोषणा 21 जुलाई और शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन 25 जुलाई 2022 को होगा। संसद भवन के कमरा नं-63 में 6 बूथ बनाए गए हैं। एनडीए ने आदिवासी समुदाय से आने वाली झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं विपक्ष ने पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया है। आइए जानते हैं भारत के राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े कुछ जरूरी सवालों के जवाब-
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कौन करता है?
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल (इलेक्टोरल कॉलेज) द्वारा किया जाता है, जिसमें राज्यसभा और लोकसभा के सभी निर्वाचित सदस्य और राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं के निर्वाचित हुए सदस्य होते हैं। मनोनीत सांसद वोट नहीं डाल सकते। इस तरह राज्यसभा के 245 में से 233 सांसद ही वोट डालेंगे क्योंकि 12 मनोनीत हैं। राष्ट्रपति का चुनाव संविधान के अनुच्छेद 54 के तहत होता है, जिसका आयोजन भारतीय चुनाव आयोग करता है।
राष्ट्रपति के पद का कार्यकाल कितना होता है?
राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। हालांकि, वह अपने कार्यकाल की समाप्ति के बावजूद, तब तक पद पर बने रह सकते हैं, जब तक कि कोई और पद ग्रहण न कर ले।
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कब होता है?
राष्ट्रपति का चुनाव निवर्तमान राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने से पहले कराया लिया जाता है। निवर्तमान राष्ट्रपति के कार्यकाल के अंतिम 60 दिनों में चुनाव की प्रक्रिया पूरी की जाती है। चुनाव कार्यक्रम इस प्रकार निर्धारित किया जाता है कि निर्वाचित राष्ट्रपति निवर्तमान राष्ट्रपति के कार्यकाल की समाप्ति के अगल ही दिन से अपना कार्यकाल शुरु कर दें। हर पांच साल पर 25 जुलाई को ही देश के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति शपथ लेते हैं। ये सिलसिला 1977 से चल रहा है।
कौन लड़ सकता है राष्ट्रपति का चुनाव?
भारत का कोई भी नागरिक राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ सकता है। चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 35 साल की उम्र होना जरूरी है। किसी भी लाभ के पद पर रहते हुए इस चुनाव में भाग नहीं लिया जा सकता। इसके अलावा लोकसभा सदस्य होने की पात्रता भी अनिवार्य होता है।
क्या होती है चुनाव की प्रक्रिया?
चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार को 50 प्रस्तावकों एवं 50 समर्थकों के साथ नामांकन दाखिल करना होता है। 50 प्रस्तावकों और समर्थकों वाला नियम 1974 में लाया है। ऐसा देखा गया था कि ऐसे भी उम्मीदवार नामांकन कर देते हैं जिनके जीतने की संभावना बिल्कुल भी नहीं होती है। इसके एक नियम यह भी है कि एक मतदाता एक से अधिक उम्मीदवारों के नामांकन का प्रस्ताव या समर्थन नहीं कर सकता है।
ज्यादा वोट मिलना जीत की गारंटी नहीं
इस चुनाव में प्रत्येक वोट की वैल्यू बराबर नहीं होती है। इस वजह से ज्यादा वोट मिलने के बावजूद किसी उम्मीदवार का हार जाना आश्चर्य की बात नहीं है। इस चुनाव में हार-जीत का फैसला वोटों की संख्या से नहीं बल्कि वोटों की वैल्यू से तय होती है। संविधान के अनुच्छेद 71 से पता चलता है कि राष्ट्रपति का चुनाव किसी भी स्थिति में नहीं रुक सकता। राज्यों की विधानसभाओं के भंग होने की स्थिति में भी चुनाव तय समय पर ही होगा।