75th Reupblic Day 2024: नौ दिसंबर, 1946 की सर्द सुबह। दिल्ली में काफी राजनीतिक सरगर्मी थी, पर मौसम पर उसका असर नहीं था। कड़ाके की सर्दी के बीच 11 बजे संविधान सभा पहली बार बैठी। संसद के कॉन्स्टीट्यूशन हॉल में देश के हर क्षेत्र से निर्वाचित प्रतिनिधि आए हुए थे। संविधान सभा की पहली बैठक किन परिस्थितियों में हुई और पहला दिन कैसा रहा, इसका ब्योरा राम बहादुर राय ने प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित अपनी किताब ‘भारतीय संविधान अनकही कहानी’ में दिया है।
1946 में नौ दिसंबर को जो हो रहा था (संविधान सभा की पहली बैठक), उसकी मांग कांग्रेस ने पहली बार 12 साल पहले, 1934 में की थी। इसे संभव बनाने के लिए कांग्रेस को कई वादों और मांगों से पीछे हटना पड़ा था। यहां तक कि, कांग्रेस ने महात्मा गांधी की सलाह के खिलाफ जाने तक का निर्णय लिया था।
रूठ कर दिल्ली से दूर चले गए वायसराय
संविधान सभा की पहली बैठक औपचारिक रूप से वायसराय वेवल ने बुलाई थी। वह चाहते थे कि वही इसका उदघाटन करें, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व इस पर राजी नहीं हुआ। कांग्रेस के इस रुख से वायसराय बड़े नाराज हुए और एक दिन के लिए दिल्ली से दूर चले गए।
कांग्रेस ने नहीं मानी गांधी की सलाह
संविधान सभा का जो स्वरूप था, वह महात्मा गांधी को पसंद नहीं था। मुस्लिम लगी, सिख समाज के नेताओं और रियासतों के प्रतिनिधियों को इसमें जगह नहीं मिली थी। गांधी की राय थी कि ब्रिटिश सरकार से नया समझौता होने के बाद ही कांग्रेस को संविधान सभा में जाना चाहिए। लेकिन, कांग्रेस ने इसे नहीं माना। हालांकि, यह कांग्रेस और गांधी के बीच किसी तकरार की वजह नहीं बना।
अध्यक्षीय आसन पर डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा
जैसे ही संविधान सभा बैठी, कांग्रेस अध्यक्ष आचार्य जे.बी. कृपलानी खड़े हुए और डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा का नाम अस्थायी अध्यक्ष के लिए प्रस्तावित किया। प्रस्ताव पास हुआ और कृपलानी अस्थायी अध्यक्ष चुन लिए गए। आचार्य कृपलानी ने डॉ. सिन्हा के राजनीतिक जीवन और गौरवशाली कार्यों का ब्योरा देते हुए सभा से उनका औपचारिक परिचय कराया और आदर के साथ अध्यक्ष के आसन तक पहुंचाया। वह आसन पर बैठे। सभी सदस्यों ने खड़े होकर उनका अभिनंदन किया। इस तरह पहले दिन की औपचारिक कार्यवाही शुरू हुई।
पहले दिन तीन काम
डॉ. सिन्हा ने अध्यक्ष के आसन पर बैठते ही अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया से मिले शुभकामना संदेशों को पढ़ कर सुनाया। इसके अलावा पहले दिन उन्होंने दो और महत्वपूर्ण काम किए। एक तो बलूचिस्तान से नवाब मोहम्मद खान जोगजाई के निर्वाचन को खान अब्दुस्समद खान द्वारा अवैधानिक बताए जाने संबंधी विवाद पर फैसला दिया। दूसरा, उदघाटन भाषण दिया।
अपने भाषण में डॉ. सिन्हा ने इस बात पर सफाई दी कि संविधान सभा के लिए ब्रिटिश कैबिनेट मिशन की योजना को क्यों स्वीकार किया गया? उन्होंने कहा कि ऐसा राजनीतिक गतिरोध टूटने के मकसद से किया गया।
डॉ. सिन्हा काफी बुजुर्ग थे और उन दिनों उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रह रहा था। इसलिए दोपहर बाद वह सभा में मौजूद नहीं रह सकते थे। ऐसे में उन्होंने बंगाल के एक प्रतिनिधि फ्रेंक एंथोनी को अस्थायी उपाध्यक्ष बनाया।
समय बचाने के लिए हाथ मिलाने की रस्म हटाई
संविधान सभा के पहले दिन विधिवत सदस्य बनने की प्रक्रिया भी शुरू की गई। सबसे पहले डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा ने अपना परिचय पत्र पेश कर सभा के रजिस्टर पर हस्ताक्षर किए। इसके साथ ही विधिवत सदस्य बनने की प्रक्रिया शुरू हुई। रस्म के मुताबिक हर सदस्य को रजिस्टर पर दस्तखत करने के बाद अध्यक्ष के आसन पर जाना था और उनसे हाथ मिलाना था। लेकिन, डॉ. सिन्हा ने इस रस्म को हटा दिया, ताकि समय बचाया जा सके। पहले दिन मद्रास, बंबई, बंगाल, यूपी, पंजाब, बिहार, मध्य प्रांत और बरार, असम, सीमा प्रांत, उड़ीसा, सिंंध, दिल्ली, अजमेर-मेरवाड़ा और कुर्ग से निर्वाचित प्रतिनिधियों ने रजिस्टर पर दस्तखत करके विधिवत सदस्यता ग्रहण करने की औपचारिकता पूरी की।
कैबिनेट मिशन योजना में संविधान सभा में सदस्यों की संख्या 385 होनी थी, लेकिन पहले दिन सिर्फ 207 सदस्य मौजूद थे। मुस्लिम लीग ने बाद में बहिष्कार का निर्णय लिया था।
कैबिनेट मिशन योजना की घोषणा
कैबिनेट मिशन योजना की घोषणा 1946 में 19 फरवरी को की गई थी। उसमें ब्रिटिश कैबिनेट मंत्री थे, इसलिए वह कैबिनेट मिशन कहलाया। 23 मार्च, 1946 को तीन सदस्यीय मिशन भारत पहुंचा। उसने सभी पक्षों से बात कर 16 मई को अपनी योजना घोषित कर दी। उसमें ही संविधान सभा बनने की प्रक्रिया दी गई थी। इस पर लंबी बहस के बाद कांग्रेस ने 25 जून को इसे स्वीकार कर लिया। कैबिनेट मिशन 29 जून को वापस चला गया।
असली सूत्रधार कौन?
इधर, वायसराय ने 25 जून से पहले ही अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा कर दी थी और 2 सितंबर, 1946 को अंतरिम सरकार बन गई। इसमें पं. जवाहर लाल नेहरू गवर्नर जनरल की परिषद के उपाध्यक्ष बनाए गए। परिषद में नेहरू के अलावा 12 सदस्य थे। ऐसे में नेहरू संविधान सभा के सूत्रधार माने जाते हैं, लेकिन वास्तव में सूत्रधार वायसराय का कार्यालय बना हुआ था। नेहरू और वायसराय के बीच कड़ी थे बेनेगल नरसिंह राव। राव का चयन ब्रिटिश सरकार ने वायसराय की इजाजत से किया था।
एक बात जो नेहरू ने छिपाई
बेनेगल नरसिंह राव वह शख्स थे, जिन पर जिन्ना भरोसा करते थे। यह बात अलग है कि वह जिन्ना को संविधान सभा का बहिष्कार खत्म करने के लिए मना नहीं पाए थे। हलांकि, राव की भूमिका इससे कहीं बड़ी थी, जो संविधान सभा की बैठक के पहले ही हफ्ते में पं. नेहरू के एक रहस्योद्घाटन से भी साबित हुई। नेहरू ने अपने भाषण में बताया कि संविधान सभा का कार्यालय कई महीनों से काम कर रहा है। जाहिर है, इसमें पर्दे के पीछे राव की जो भूमिका थी, उसके बारे में सदस्यों को कुछ पता नहीं था। हालांकि, नेहरू इससे अच्छी तरह वाकिफ थे। दरअसल, राव नवंबर, 1945 से ही ब्रिटिश योजना में संविधान संबंधी कार्यों में लगे हुए थे।
राजेंद्र प्रसाद को दो बातों को लेकर खेद रह ही गया
संविधान सभा को संविधान बनाने में करीब तीन साल लगे। काफी मेहनत और चर्चा के बाद एक मजबूत संंविधान बन कर तैयार हुआ। लेकिन, समापन सत्र में अपने भाषण में राजेंद्र प्रसाद ने दो बातों को लेकर खेद जताया। उन्होंने कहा कि इन दोनों बातों को संविधान का हिस्सा बनाने में व्यावहारिक दिक्कतें थीं, पर इसका यह मतलब नहीं कि यह खेद का विषय नहीं है। उन दो बातों के बारे में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
