राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई देशों पर टैरिफ लगा दिया है, वे इसे लिबरेशन डे का नाम देते हैं। उनके लिए टैरिफ लगाना एक तरीके का ‘राष्ट्रवाद’ बन चुका है, वे इसे अमेरिका की प्रगति से जोड़कर देखते हैं। उनके लिए टैरिफ से सीधा मतलब है कि अमेरिका को जबरदस्त मुनाफा होगा, उसका राजस्व भरेगा और सभी मुल्कों के साथ व्यापार में एक समानता आएगी।

ट्रंप ने किस पर कितना टैरिफ लगाया?

ट्रंप ने भारत पर भी 27 फीसदी टैरिफ लगाया है। एशिया के कई दूसरे मुल्कों पर भी भारी टैकिफ लगा है, इसमें चीन भी शामिल है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका जैसे देशों को भी नहीं बख्शा है। इस टेबल में देखिए, किस देश पर कितना टैरिफ लगाया है-

देशटैरिफ (%)
भारत27
चीन34
यूरोपीय संघ20
जापान24
दक्षिण कोरिया25
स्विट्जरलैंड31
यूनाइटेड किंगडम10%
ताइवान32%
मलेशिया24

ट्रंप का रेसिप्रोकल टैरिफ अलग दिखता है

अब राष्ट्रपति ट्रंप ने रेसिप्रोकल टैरिफ की जो परिभाषा दी थी, उसके मुताबिक तो दूसरे देशों पर इस बार टैरिफ नहीं लगा है। इसी वजह से जानकार मानते हैं कि ट्रंप की इस थ्योरी में कुछ गड़बड़ है, टैरिफ कैलकुलेट करने का तरीका कुछ अजीब है। असल में राष्ट्रपति ट्रंप ने तो स्पष्ट कहा था कि अमेरिका दूसरे देशों के आयात पर उतना ही टैरिफ लगाएगा जितना वो देश अमेरिका के आयात पर लगाएगा। लेकिन अभी जो टैरिफ लगाए गए हैं, वो इस कथन के ही विपरीत दिखाई देते हैं।

अब समझने वाली बात यह है कि US Trade Representative ने जो बयान जारी किया था, उसमें सिर्फ इतना कहा गया कि रेसिप्रोकल टैरिफ इस तरीके से कैलकुलेट किए गए हैं जिससे दूसरे देशों के साथ चल रहे व्यापारिक घाटे को पाटा जा सके। अब यह जो परिभाषा दी जा रही है, असल में तो इसे रेसिप्रोकल टैरिफ की व्याख्या नहीं कहा जा सकता। अगर अमेरिका को रेसिप्रोकल टैरिफ ही लगाना होता तो वो उतना टैरिफ दूसरे देश पर लगाता जितना उस पर लग रहा होता। लेकिन यहां तो सिर्फ व्यापारिक घाटे को पाटने की कोशिश हो रही है।

Reciprocal Tariffs Explained

भारत के उदाहरण से समझिए

इसे भारत के उदाहरण से समझने की कोशिश की जा सकती है। इस समय भारत का अमेरिका के साथ करीब 46 बिलियन डॉलर का ट्रेड डेफिसिट चल रहा है। अब अमेरिका ने जो 27 फीसदी टैरिफ लगाया है, उससे यह बिल्कुल नहीं लगता कि अमेरिका उतना टैरिफ लगाना चाहता है जो भारत लगाता है, इससे उलट कोशिश यह हुई है कि भारत के एक्सपोर्ट को ही अमेरिका में पूरी तरह न्यूट्रलाइज कर दिया जाए। दूसरे शब्दों में बोलें तो भारत का इस समय अमेरिका के साथ ट्रड सरपल्स चल रहा है, उसे खत्म करने की तैयारी है।

एक दिलचस्प बात यह भी पता चलती है कि वर्तमान में अमेरिका में जो सरकार चल रही है, उसे ट्रेड डेफिसिट से खासा दिक्कत है, वो इसे पूरी तरह गलत मान रही है। जबकि किन्हीं दो देशों में ट्रेड डेफिसिट होना कोई गलत बात नहीं है, बल्कि इसे वहां की जरूरत के हिसाब से देखना चाहिए। अभी तो अमेरिका मान रहा है कि कई देशों के साथ जारी ट्रेड डेफिसिट की वजह से अमेरिकी मार्केट में ही डिमांड खत्म सी हो गई है, 1997 से अब तक 90 हजार से ज्यादा फैक्ट्रियां बंद हुई हैं।

लेकिन ट्रंप की इस नाराजगी में एक तथ्य छिप गया है। यह समझना जरूरी है कि कुछ देशों के साथ ट्रेड डेफिसिट में चला जाता है तो कुछ देशों के साथ सरप्लस में। एक और उदाहरण से इस बात को समझा जा सकता है। मान लीजिए किसी देश में चावल की खपत ज्यादा होती है, ऐसे में क्या उस देश से उम्मीद की जानी चाहिए कि वो किसी ऐसे देश से आयात ज्यादा करे जहां आटे की ज्यादा पैदावार हो? ऐसी उम्मीद इसलिए नहीं की जा सकती क्योंकि चावल वाले देश में आटे की उतनी डिमांड ही नहीं है। हां अगर वही देश अगर खेती से जुड़ी कोई मशीन कहीं से आयात करेगा, तब उस देश के साथ उसका ट्रेड डेफिसिट होगा, जानते हैं क्यों- क्योंकि चावल वाले देश में उन मशीन की जरूरत तो काफी होगी, लेकिन वहां वो प्रड्यूज ही नहीं होतीं।

मजे की बात यह है कि अगर ट्रंप की नजर से रेसिप्रोकल टैरिफ को समझें तो वे आने वाले दिनों में भारत पर और ज्यादा टैरिफ लगा सकते हैं, वो भी इसलिए क्योंकि उन्हें ट्रेड डेफिसिट खत्म करना है, उन्हें समान टैरिफ लगाने से कोई मतलब नहीं है।