साउथ इंडस्ट्री के सुपरस्टार प्रभास (Prabhas), सैफ अली खान (Saif Ali Khan) और कृति सेनन (Kriti Sanon) स्टारर फिल्म ‘आदिपुरुष’ (Adipurush) को लेकर विवाद जारी है। ओम राउत निर्देशित इस फिल्म में सैफ अली खान रावण का किरदार निभा रहे हैं।
2 अक्टूबर को आदिपुरुष का टीजर रिलीज हुआ था, जिसके बाद से ही रावण के लुक को लेकर कुछ लोगों द्वारा आपत्ति दर्ज कराई जा रही है। रावण के लुक की निंदा करने वालों में भाजपा और हिंदू महासभा से जुड़े नेता भी शामिल हैं।
भाजपा प्रवक्ता अजय सेहरावत ने ट्विटर पर रावण के लुक की तुलना अलाउद्दीन खिलजी से की है। मध्य प्रदेश के भाजपा मंत्री ने हनुमान के लुक पर सवाल उठाया। इस विवाद से एक बार फिर हिंदू देवी-देवताओं के मौजूदा स्वरूप के उद्भव पर बहस शुरू हो गई है।
हिंदू देवी-देवताओं का किसने बनाया चेहरा?
आज घर-घर में हिंदू देवी-देवताओं के तस्वीरों का मिलना बहुत आम हैं। लेकिन पहले यह संभव नहीं था। पहले देवी-देवताओं की आकृति सिर्फ मंदिरों में हुआ करती थी। वह आकृति पत्थरों पर उकेरी हुई होती थी, इसलिए हनुमान, गणेश आदि की मूर्तियों को छोड़ दें तो सिर्फ चेहरा देखकर देवी-देवताओं को पहचान पाना मुश्किल होता था। चेहरा के साथ-साथ शस्त्र और भंगिमाओं को भी देखने पर ही पहचान स्पष्ट हो पाती थी।
हिंदू देवी-देवताओं को सर्व सुलभ कराने का श्रेय केरल के किलिमानूर में पैदा हुए राजा रवि वर्मा को दिया जाता है। राजा रवि वर्मा किसी रियासत के ‘राजा’ नहीं थे। ‘राजा’ की उपाधि उन्हें तत्कालीन वायसराय ने उनकी प्रतिभा का सम्मान करते हुए दिया था। उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि राजा-महाराजा ही नहीं गांव-गली के आम लोग भी उन्हें जानते थे।
आज हम जितने भी देवी-देवताओं का चेहरा देखते हैं, वो दरअसल राजा रवि वर्मा की कल्पनाशीलता की देन हैं। भारत में ऑयल पेंटिंग को उरूज पर पहुंचाने वाले रवि वर्मा ने ही दुर्गा, सरस्वती, राधा, लक्ष्मी, कृष्ण, अर्जुन, सुभद्रा, जटायु वध और द्रौपदी चीरहरण जैसे सैकड़ों पौराणिक कथानकों और पात्रों को कैनवास पर उतारा था।
विवादों से भी रहा नाता
कहा जाता है कि राजा रवि वर्मा से तस्वीर बनवाने के लिए राजाओं-महाराजाओं का लाइन लगानी पड़ती थी। आलोचक उनके बनाए महाराणा प्रताप के पोर्ट्रेट को आज भी अतुलनिय मानते हैं। उनके काम का ऐसा जलवा था कि साल 1904 में उन्हें ‘केसर-ए-हिंद’ से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान आज के भारत-रत्न के समान है। उन्होंने 58 वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु से पहले लगभग 7,000 पेंटिंग बनाई थीं।
हालांकि उस समय सब कुछ उनके पक्ष में ही नहीं था। उनके विपक्ष में भी बहुत लोग थे। रवि वर्मा जितने विख्यात हुए, उतने कुख्यात भी। जाति भेद के कारण कई जातियों को मंदिर में प्रवेश वर्जित था। वर्ण व्यवस्था में जिन जातियों को नीचे की श्रेणी में रखा गया था उनके लिए अपने ईश्वर दर्शन भी दुर्लभ था। राजा रवि वर्मा ने हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरों को न केवल बनाया बल्कि प्रेस के जरिए उन तस्वीरों की हजारों-लाखों प्रतियां छपवाकर सस्ते में लोगों को बेच भी दिया। इसके बाद ईश्वर के दर्शन के लिए मंदिर में जाने की बाध्यता खत्म हो गई। हर समुदाय के घर में अब उसके देवी-देवता मौजूद थे।
इसके कारण राजा रवि वर्मा का जमकर विरोध हुआ। उन्होंने उर्वशी और रंभा की अर्धनग्न तस्वीरें भी बनाई थी। बताया जाता है कि जिन हिंदू देवियों की उन्होंने कैनवास पर उतारा, उनका चेहरा उनकी प्रेमिका ‘सुगंधा’ से मिलता था। सुगंधा को एक वेश्या की बेटी बताया जाता है। वेश्या की बेटी को देवी के रूप देने से कई हिंदू धर्मावलंबियों की भावना आहत हो गई। उन पर कई मुकदमे भी हुए थे। सत्याग्रह की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आक्रोशित लोगों ने मुंबई स्थित उनके प्रेस को आग के हवाले भी कर दिया था।
