हाल ही में सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर फिल्म अभिनेत्री जाह्मवी कपूर का एक फोटो आया है जिसमें वे एक पायलट की ड्रेस में नज़र आ रही है। यह ट्वीट जाह्मवी फैन क्लब ने किया है। जी नहीं, जाह्मवी प्लेन नहीं उड़ा रही है बल्कि यह ड्रेसअप उन्होंने एक फिल्म की शूटिंग के लिए किया है। माना जा रहा है कि यह फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना के जीवन पर आधारित एक बायोपिक फिल्म हो सकती है। करगिल वॉर के बाद आने वाली पीढ़ी को गुंजन सक्सेना के बारे में पता नहीं हैं। कौन है गुंजन सक्सेना आइए जानते हैं।

करगिल की जंग में भारत पूरा दमखम दिखा रहा था। वायुसेना पूरी तरह मुस्तैद थी और हर एक पायलट ड्यूटी पर तैनात था। ऐसे में मदद को और तेज करने के लिए महिला पायलट्स को मैदान-ए- जंग में भेजा गया। इस युद्द के दौरान गुंजन सक्सेना और श्री विद्या रंजन दो महिला पायलट्स ने पाकिस्तान से सटे ईलाको में उड़ान भरकर भारतीय फौज को मदद जुटाने और सैनिकों को रेसक्यू करने की जिम्मेदारी ली थी। उनका काम सैनिकों तक मेडिकल सहायता पहुंचाना और फंसे हुए सैनिकों की जान बचाना था। हालात इतने खराब थे की पाकिस्तान आसपास के ईलाकों में दिखाई देने वाली किसी भी चीज पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा रहा था।

ऐसे में उत्तरी कश्मीर के दुर्गम और खतरनाक ईलाकों में इन दोनों बहादुर महिला पायलट्स को चीता हेलीकॉप्टर्स से सीमा पर डटे जवानों की मदद करने के लिए भेजा गया। लेकिन उस वक्त चीता हेलीकॉप्टर्स में सुरक्षा के लिए ना तो कोई हथियार हुआ करते थे और ना ही ये हेलीकॉप्टर्स सुरक्षा करने के लिए किसी विशेष तकनीक से युक्त थे। इस जोख़िम भरे काम को करने में गुंजन सक्सेना को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने गुंजन के हेलीकॉप्टर को निशाना बनाकर एक रॉकेट भी दागा था लेकिन यह निशाना चूक गया और रॉकेट पीछे पहाड़ियों में जाकर फट गया। इस हमले में गुंजन बाल-बाल बची लेकिन इसके बावजूद भी वे घबराई नहीं। गुंजन ने पूरी हिम्मत से काम लिया और रक्षा और बचाव कार्य में लगी रही। भारत के अन्य सैनिकों की तरह ही मरने-मारने वाला जोश लेकर जंग के मैदान में उतरी गुंजन के पास एक आइएनएसएएस रायफल भी था जिससे उन्हें जमीन पर लड़ने की ट्रेनिंग मिली हुई थी।

बतौर सैनिक गुंजन ने जिस बहादुरी से पाकिस्तान से जंग लड़ने में देश की मदद की और युद्द क्षेत्र में जो साहस दिखाया उसके लिए उन्हें सूर्यवीर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। गुंजन यह अवॉर्ड पाने वाली पहली महिला बनी। उस समय महिलाओं के लिए रक्षा क्षेत्र में ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं था। गुंजन और श्रीविद्या दोनों ने सात साल तक भारतीय वायुसेना में अपनी सेवाएं दी थी, जब उनकी पोस्टिंग उधमपुर में थी तो यूनिट में महिलाओं के लिए अलग वॉशरूम तक नहीं थे । इस तरह सुख-सुविधा रहित उन कठिनाई के दिनों में भी पूरी बहादुरी और ईमानदारी के साथ अपनी ड्यूटी निभानी वाली महिला पायलट गुंजन सक्सेना ने ही दिखा दिया था की भारतीय महिलाएं भी देश की रक्षा के लिए पुरुषों के बराबर कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती है।

करगिल युद्द के दौरान ऐसी हिम्मत दिखाने वाली गुंजन आर्मी परिवार से आती हैं। उनके पिता और भाई भी आर्मी में ही थे शायद यहीं कारण भी था की गुंजन ने भी आर्मी में जाने का मन बनाया था। दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद गुंजन ने एयरफोर्स ज्वॉइन किया था। गुंजन 1994 के एयरफोर्स के वुमन बैच की 25 महिला ट्रेनी पायलट में से एक थीं। जिस वक्त गुंजन ने एयरफोर्स ज्वॉइन किया था उस वक्त भारतीय सेना में महिलाओं की भागीदारी बेहद कम थी। उन्हें बहुत कम रक्षा कार्य करने का मौका दिया जाता था यहां तक की उनकी कार्य करने की अवधि भी बहुत अधिक नहीं होती थी । 7 साल के अपने छोटे कार्यकाल में गुंजन ने यह बड़ा काम कर दिखाया। गुंजन का कहना है कि एक हेलीकॉप्टर पायलट होते हुए देश के सैनिकों की जान बचाने से सुखद एहसास और कुछ नहीं हो सकता है।