स्कैम 1992 और राणा नायडू जैसी सुपरहिट सीरीज की कहानी लिखने वाले वैभव विशाल ने कहानियां लिखने के पीछे के कई दिलचस्प किस्से हमसे शेयर किए। जनसत्ता से बात करते हुए वैभव विशाल ने बताया कि उन्होंने क्यों कॉरपोरेट जगत से निकलकर पटकथा लेखन की ओर कदम बढ़ाया। साथ ही उन्होंने स्कैम 1992, राणा नायडू को लेकर भी किस्से शेयर किए।

क्यों छोड़ दी कॉरपोरेट जॉब?

वैभव ने कहा, ‘मुझे ऐसा लगने लगा, मैं अपने लिए क्या लीगेसी छोड़ रहा हूं। कॉरपोरेट जॉब में आपको बढ़िया ऑफिस और कार्ड मिल जाता है, मगर आप नौकर बनकर रह जाते हैं। हालांकि मुझे राइटिंग में इन जॉब्स का फायदा ही मिला जो मैंने इतने साल की हैं। मैं उसी वक्त जानता था कि मैं ज्यादा दिन यहां नहीं टिकूंगा। वही हुआ 2014 में मैंने छोड़ा और तब से मुड़कर नहीं दिखा।”

रिस्क है तो इश्क है डायलॉग पर बोले राइटर

रियल लाइफ इंसीडेंट पर कहानी लिखते वक्त क्या क्या सावधानी बरतनी होती है इस सवाल का जवाब देते हुए वैभव ने कहा, ”रियल लाइफ में जो हुआ है उसे सच्चाई के साथ दिखाना है साथ ही ये देखना है कि देखने वाले को मजा आए। तो हम बैलेंस बनाकर रखते हैं, कि जो हम दिखाएं उसमें सच्चाई से नहीं हटें और जो दिखाए वो इंटरेस्टिंग भी हो। जब मैं पहली बार स्कैम 1992 के डायलॉग लिख रहा था, उस वक्त मैं सोच रहा था कि उस वक्त हीरो कौन था, वर्ल्ड कप टीम इंडिया ने जीता नहीं था। तो क्रिकेट से कोई हीरो था नहीं, तो मैंने सोचा कि अमिताभ उस वक्त उभरता नाम थे, तो मैंने ऐसा सोचा कि हर्षद मेहता शायद फिल्मी आदमी हो, रियल लाइफ में मुझे नहीं पता हर्षद फिल्मी थे या नहीं। मैंने सोचा कि इश्क है तो रिस्क है वाला डायलॉग हर्षद मेहता पर जमेगा। मैंने केबीसी में ये डायलॉग सुना। तेजस्वी यादव ने ये डायलॉग चुनाव कैंपेन में इस्तेमाल किया था, एक बिहारी ने एक गुजराती के लिए ये डायलॉग लिखा था और एक बिहारी बोल रहा है एक गुजराती के लिए। तो ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी।”

क्या कहानी डायरेक्टर को सौंपने के बाद आपको दुख होता है जब डायरेक्टर उसे अपनी तरह से इस्तेमाल करते हैं और आपकी कहानी कई बार बदल जाती है? इस पर वैभव ने कहा, ”हंसी खुशी कर दे विदा कि रानी बेटी राज करेगी, हम रानी बेटी को खुशी खुशी विदा कर देते हैं। वो डायरेक्टर ही हो जाती है, फिल्ममेकर की हो जाती है। फिर जैसे वो दिखाएं हम उसे अपना मान लेते हैं। कई बार होता है कि हमें ऐसा लगता है, लेकिन सबको अधिकार है। निर्देशक भी अपना काम कर रहा।”

काश हमारा नाम ओपनिंग क्रेडिट में आता- वैभव विशाल

राइटर को उनका क्रेडिट नहीं मिलता, कहानी हीरो या फिर निर्देशक की हो जाती है क्या आपको ऐसा लगता है? इसका जवाब देते हुए वैभव ने कहा, पॉलिटिकली करेक्ट बोलने की कोशिश करूंगा तो कहूंगा ऐसा नहीं होता है, मगर ऐसा नहीं है, हां लगता है कई बार ऐसा, लेकिन मुझे ऐसे लोग मिले हैं जिन्होंने मुझसे मेरा क्रेडिट नहीं छीना गया। मेरा एक्सपीरियंस अच्छा रहा है। कई बार लगता है कि काश हमारा नाम ओपनिंग क्रेडिट में आता। क्योंकि फिल्म की कहानी सबसे पहले तो हमने ही लिखी है। बहुत गैप है भरने में टाइम लिखा है। सलीम जावेद ने खुद अपना नाम लिख दिया था फिल्म के पोस्टर्स में। तो पूरा हक मिलने में टाइम लगेगा।

जब वैभव पर हावी हो गया था राणा नायडू का किरदार

वैभव से जब हमने पूछा कि क्या कोई किरदार उनपर हावी होता है, इस पर उन्होंने कहा ”मैंने गांधी के ऊपर भी लिखा, हर्षद मेहता के ऊपर भी लिखा, मगर दोनों में मेरी कोशिश रहती है कि ये किरदार मेरे ऊपर हावी न हो। वैभव ने शेयर किया कि राणा नायडू और गांधी को वो एक साथ लिख रहे थे, यानी कि हिंसा और अहिंसा एक साथ। मगर दीवारें बनानी पड़ती हैं, थोड़ा सा माइंड को ट्रेंड करना पड़ता है हो जाता है। तकलीफ तब होती है जब किसी किरदार से आप इतना घुल जाते हैं कि वो आप पर हावी होने लगता है। राणा नायडू की जब मैं कहानी लिख रहा था उसमें एक सीन था उसे लिखते लिखते मैं रो रहा था। मेरे अंदर ये 7 दिन रहा। आगे से मैं ब्रेक लेकर लिखने लगा। बुरे कैरेक्टर आपके अंदर लिखने का माद्दा रखते हैं। मैं खुद को याद दिलाता हूं कि ये किरदार है।”

गालियां देनी बंद हो जाएंगी तो मैं लिखना बंद कर दूंगा- वैभव विशाल

राणा नायडू की भाषा पर बात करते हुए वैभव ने कहा, ”मेरा ये मानना है कि दुनिया में गाली बंद हो जाएगी तो मैं भी नहीं लिखूंगा। उस अभद्र भाषा का निर्माण मैंने नहीं किया है, गालियां मैंने नहीं बनाई हैं। हम समाज का प्रतिबिम्ब दिखाते हैं, जो हम दिखाते हैं वो समाज में प्रतिबिम्बित नहीं होता है। अगर गालियां दी जा रही हैं और लोग ऐसे बात करते हैं और मैं सही चित्रण करूंगा तो मैं वैसा ही लिखूंगा। हीरो ही खराब हो तो क्या कर सकते हैं हम। हमने नहीं कहा कि आइए आपको श्रवण कुमार मिलेगा।” एनिमल का जिक्र करते हुए वैभव ने कहा, ”एनिमल में कहा गया कि हमारा हीरो एनिमल है वो जानवर है। ऐसा ही राणा नायडू है, वो किरदार खराब है, हमने उसे छिपाकर नहीं रखा, हमने नहीं कहा वो भगवान के सामान है और आप उसे फॉलो करो। हम एंटी हीरो तो ऐसे ही दिखाएंगे। दाउद इब्राहिम को हम वैसे ही दिखाएंगे, अगर मेरा कैरेक्टर फ्रॉड है तो मैं उसे अच्छा नहीं बना सकता। और ये (राणा नायडू) नेटफ्लिक्स पर नंबर वन सीरीज थी पूरे विश्व में टॉप 50 शो में सिर्फ एक भारतीय शो था और वो था राणा नायडू, नकारात्माकता को सराहा जा रहा है लोग देख रहे हैं। आपको नहीं पसंद तो मत देखिए। कल को गाली गलौच नहीं सुनाई देगी, तो हम नहीं लिखेंगे।”

सेल्फ सेंसरशिप जरूरी- वैभव विशाल

ओटीटी के सेंसरशिप को लेकर बात करते हुए वैभव ने कहा कि हम सेल्फ सेंसरशिप अपनाते हैं। राणा नायडू के सीजन 2 में आपको फर्क दिखाई देगा। जिन्होंने बुरा कहा उन्हें मैं चाहता हूं कि वो खुशी खुशी देखें। ज्यादा भावुक नहीं होना चाहिए। वैभव ने कहा कि फायदा नहीं है कि मैं कहानी लिखूं और अपने बच्चों को न दिखा पाऊं। अपने मम्मी-पापा से न कह पाऊं कि वो इसे देखूं तो ये मेरे लिए भी शर्म की बात है। तो आपको राणा नायडू में फर्क दिखेंगा मैंने हिंसा और गाली गलौच कम की है लेकिन मनोरंजन फिर भी आपको पूरा मिलेगा।