राज कपूर को आज भी भारतीय सिनेमा के महान फिल्मकारों में से एक माना जाता है। वो अपने जमाने के पहले फिल्ममेकर थे जो 70 के दशक में बोल्ड फिल्में बनाया करते थे। इसके लिए उन्हें कई तरह के विवादों का भी सामना करना पड़ा था, उन्हें लेकर कहा जाता था कि वो अपनी फिल्मों में महिलाओं को अलग तरीके से पेश करने की कोशिश करते हैं। हालांकि वो उनका महिलाओं की खूबसूरती दिखाने का अपना तरीका था। उनकी फिल्म ‘बॉबी’, ‘राम तेरी गंगा मैली’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’,’प्रेम रोग’ में कुछ ऐसे सीन थे जिन पर तमाम लोगों ने आपत्ति जताई थी। राज कपूर ने खुद अपनी बेटी रितु नंदा की किताब में इसका जिक्र किया था।
‘राज कपूर: द वन एंड ओनली शोमैन’ नाम की किताब में राज ने उस समय के बारे में बताया जब उन्होंने अपनी फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के बारे में सीबीएफसी (केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड) से बातचीत की थी। इस फिल्म में जीनत अमान मुख्य भूमिका में थीं और फिल्म में उनके कपड़ों ने उन दिनों काफी हलचल मचाई थी। राज ने किताब में बताया, “हम न्यूडिटी से चौंक जाते हैं। हमें बड़ा होना चाहिए। जिस देश ने सात सौ मिलियन बच्चे पैदा किए हैं, वहां लोग पार्शियल न्यूडिटी से चौंक जाते हैं! हम इतने ढोंगी क्यों हैं? बच्चे पेड़ों पर नहीं उगते। वे बिस्तर पर बनते हैं। और एक सुंदर लड़की दिखाने में क्या अनैतिकता है? सिनेमा को गांवों में ले जाएं, उन्हें मनोरंजन दें। अब उनके पास मनोरंजन का एकमात्र साधन शराब बनाना, उसे पीना और बच्चे पैदा करना है।”
सेंसर बोर्ड से की थी बहस
राज ने इसके बाद भारत में सेंसर बोर्ड को ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ दिखाने के बारे में बात की और बताया, “जब फिल्म (सत्यम शिवम सुंदरम) पूरी हो गई, तो मैंने सेंसर बोर्ड से पूछा, ‘कौन सा अधिक हानिकारक है, ये या जिसे आप अनुमति दे रहे हैं? आप पूरे भारत में बैनर और पोस्टर देखते हैं। हर कोई बंदूक या तलवार या कुछ और जिससे मारना है, पकड़ रहा है, एक ऐसे देश में जो अहिंसा का प्रचार करता है! क्या आप ये नहीं समझ सकते कि यही हानिकारक है?”
लगता था महिलाओं का शोषण का आरोप
राज ने जोर देकर कहा कि वो महिलाओं का सम्मान करते हैं और उन्हें समझ में नहीं आता कि उन पर उनका शोषण करने का आरोप क्यों लगाया गया। उन्होंने कहा कि जब फेडरिको फेलिनी जैसे निर्देशक ने महिलाओं को न्यूड दिखाया, तो इसे कला के रूप में देखा गया, लेकिन जब उन्होंने कुछ ऐसा ही करने की कोशिश की, तो इसे शोषण के रूप में देखा गया। उन्होंने लिखा, “मैं महिलाओं का सम्मान करता हूं और मुझे समझ में नहीं आता कि मुझ पर उनका शोषण करने का आरोप क्यों लगाया जाता है। अगर फेलिनी किसी महिला को न्यूड दिखाते हैं, तो इसे कला माना जाता है। अगर मैं किसी महिला की सुंदरता को दिखाता हूं, तो इसे शोषण कहा जाता है।”
राज कपूर की फिल्मों में महिलाओं को हमेशा एक ही तरह से नहीं दिखाया जाता था क्योंकि 1970 के दशक के बाद इसमें एक महत्वपूर्ण बदलाव आया। उन्होंने इसे स्वीकार किया और लिखा, “जिस चीज ने 1950 के दशक की शुरुआत में मेरे काम को प्रभावित किया, जरूरी नहीं कि वही चीज 1980 के दशक के काम को भी प्रभावित करे। ऐसा नहीं है कि आदर्शवाद खो गया है। मैंने ऐसे विषय उठाए हैं जिनमें महिलाएं शायद पुरुषों की तुलना में अधिक सक्रिय हैं।”
राज कपूर की फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ भी एक विवादित फिल्म रही थी, जिसमें कई ऐसे सीन थे। लेकिन इसमें मंदाकिनी से पहले दीपिका चिखलिया ऑडिशन देने गई थीं। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…
