मनोज बाजपेई आज फिल्म जगत के श्रेष्ठ चरित्र अभिनेताओं में शामिल हैं। सालों संघर्ष करने के बाद उन्हें जो मुकाम मिला है, वो उसकी कद्र करते हैं और आज भी अपनी जमीन को नहीं भूले हैं। वो अच्छी कला की कद्र करते हैं और इसके लिए आदमी का स्टेटस मायने नहीं रखता। उनके कला प्रेम से ही जुड़ा एक किस्सा है जब उनके पिता ने गांव में नाचने वाले (नचनिया) को साथ बिठाने पर उन्हें टोक दिया था। मनोज बाजपेई ने अपने पिता को बड़ा ही दिलचस्प जवाब दिया था।
उन्होंने पिता से कहा था कि वो भी इस समाज के लिए नचनिया ही हैं। एक्टर ने इस दिलचस्प किस्से का जिक्र लल्लनटॉप के एक शो में किया था। उन्होंने बताया था, ‘अच्छा लिखने वाला, अच्छा गाने वाला, अच्छा बजाने वाला.. आप उसकी इज्जत बहुत ज्यादा करते हैं। इन सब में मेरी रुचि पहले से ही रही है। गांव में एक लड़का मेरे घर पर आता है, उसका नाम है जवाहिर। जब भी मैं जाता हूं, जवाहिर मुझसे मिलने चला आता है।’
उन्होंने आगे बताया था, ‘वो नचनिया है, नाचता है शादियों में। मेरे सामने वो नीचे बैठता है तो मैं उससे कहता हूं, तू नीचे नहीं मेरे बगल में बैठ। गांव का समाज अलग होता है लेकिन मैं उसे बगल में बैठाता हूं। इसलिए, क्योंकि मुझे उसकी कला बहुत पसंद है। मेरे पिताजी कहते हैं- यार तुम उसे ऊपर बिठाते हो, तुम चले जाओगे फिर यहां पर गड़बड़ हो जाएगा। मैंने उनसे कहा कि नहीं, आपका बेटा भी इस समाज के लिए नचनिया ही है। वो और मैं एक ही दर्जे में हैं और उसकी कला मुझे बहुत पसंद है।’
मनोज बाजपेई के अंदर एक खूबी ये भी है कि वो जो ठान लेते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। चाहे उसे पूरा करने के रास्ते में लोग उनका मज़ाक ही क्यों न बनाएं। वो जब अपना गांव छोड़कर दिल्ली आए थे पढ़ने के लिए तब वो अंग्रेजी बिलकुल नहीं जानते थे। इस बात का उनके दोस्त खूब मजाक उड़ाते थे लेकिन उन्होंने कभी इस बात को दिल पर नहीं लिया।
वो अंग्रेजी नहीं जानते थे फिर भी दिल्ली यूनिवर्सिटी की अपनी परीक्षा इंग्लिश में ही देते थे। उन्होंने अंग्रेजी सीखने के लिए दोस्त भी विदेशी बनाए थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, ‘दिल्ली यूनिवर्सिटी में मैंने कोई भी बिहार के दोस्त नहीं बनाया था जानबूझ कर। क्योंकि वो मुझसे हिंदी या भोजपुरी में बात करते, जो मुझे करनी नहीं थी। मैंने एक नाइजीरियन दोस्त बनाया था एक केन्या का लड़का दोस्त था जिनसे मैं अंग्रेजी में बातें करता था।’