दिग्गज गायक और अभिनेता किशोर कुमार 33 साल बाद भी अपनी शानदार आवाज़ और गानों की वजह से करोड़ों भारतीयों के दिलों में जिंदा हैं। किशोर कुमार के गाने प्यार दीवाना होता है, तेरे बिना जिंदगी से, मेरे सपनों की रानी, रूप तेरा मस्ताना, ऐसे ना मुझे तुम देखो, प्यार मांगा है तुम्हीं से जैसे सुपरहिट गाने आज भी लोगों की जुबान पर हैं। लेकिन एक ऐसा वक्त भी था जब सुरों के सरताज किशोर कुमार के गानों पर बैन लगा दिया गया था।
यह बात उस समय की है जब देश में आपातकाल लगा हुआ था। सरकार ने देश के सैकड़ों नेताओं, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को आपातकाल के दौरान जेल में डाल दिया था। उसी समय तत्कालीन इंदिरा सरकार आपातकाल को सही बताने के लिए बॉलीवुड के सितारों से ऑल इंडिया रेडियो पर सरकार के 20 सूत्रीय प्रोग्राम को प्रमोट करने के लिए मदद चाहती थी। कई बॉलीवुड सितारों ने सरकार के प्रोग्राम को प्रमोट भी किया।
इसी दौरान किशोर कुमार से एक कार्यक्रम में गाना गाने के लिए कहा गया। किशोर कुमार इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसी दौरान किशोर कुमार ने एक इंटरव्यू में यह कह दिया कि “मैं किसी के आदेश पर गाने नहीं गाता”। फिर क्या था किशोर कुमार के इनकार से सरकार नाराज हो गई। इस इनकार का खामियाजा किशोर कुमार को भुगतना पड़ा। इंदिरा गांधी और संजय गांधी के करीबी देश के तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ला ने ऑल इंडिया रेडियो पर किशोर कुमार के गाने बैन कर दिए।
दराती से पैर कटने के बाद बदली आवाज़
किशोर की आवाज़ को लेकर उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने एक बार एक इंटरव्यू में बताया था कि बचपन से किशोर कुमार की आवाज़ इतनी अच्छी नहीं थी। अशोक कुमार ने इंटरव्यू में कहा था बचपन में किशोर की आवाज़ फटे बांस जैसी थी। फिर एक बार किशोर कुमार का पांव सब्जी काटने वाली दराती पर पड़ गया, दराती पर पैर पड़ने के कारण उनके पैर की उंगली कट गई थी। डॉक्टर ने किशोर की उंगुली का इलाज करने के बावजूद उन्हें लगातार दर्द होता रहा। कई दिनों तक जोर-जोर से रोने की वज़ह से किशोर कुमार को ऐसा रियाज हुआ कि उनकी आवाज़ ही बदल गई।
अपने शहर खंडवा से था बहुत प्रेम
किशोर कुमार को अपने शहर खंडवा से बहुत प्रेम था। जब कभी किशोर कुमार खंडवा आते थे तो शहर की गलियों में खूब घूमा करते थे। घर के पास लाला जी की दुकान पर दोस्तों के साथ खूब जलेबियां खाते थे। मुंबई में नाम शोहरत कमाने के बाद भी किशोर कुमार की इच्छा थी उनका अंतिम संस्कार खंडवा में ही किया जाए। हालांकि खंडवा के जिस घर में किशोर दा का बचपन बीता आज वो घर खंडहर बन चुका है ।

