बॉलीवुड गीतकार जावेद अख्तर सेक्युलरिज्म के मुद्दे पर मुखर नजर आते हैं। वह अक्सर तमाम राजनीतिक पार्टियों को भी इस मुद्दे पर घेरते दिखाई पड़ते हैं। ऐसा ही एक मौका तब आया था जब उनका सामना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से हुआ था। तब जावेद अख्तर ने दिवंगत राजनेता वाजपेयी से सेक्युलरिज्म से लेकर आरएसएस द्वारा संचालित शिशु मंदिरों तक पर सवाल पूछा था।

जावेद अख्तर ने इस इंटरव्यू के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी से सवाल करते हुए कहा था कि जिस तरह आप मदरसे की शिक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं, क्या आप उसी तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा बनाए गए शिशु मंदिर में बच्चों को दी जाने वाली साम्प्रदायिक शिक्षा को खत्म करके एक समान शिक्षा की पद्धति लागू करेंगे?

जावेद अख्तर ने कहा था कि चाहे मदरसे हों या शिशु मंदिर, वहां बच्चों की घुट्टी में जहर भरा जाता है, उन्हें साम्प्रदायिक शिक्षा दी जाती है। ऐसे में क्या आप भारत की एकता, अखंडता, शांति और भाईचारे के खिलाफ जो शिक्षा पद्धति चल रही है, उसे दूर कर एक समान और अच्छी शिक्षा की पॉलिसी बनायेंगे?

‘आपने शिशु मंदिर को देखा नहीं है’: जावेद अख्तर के प्रश्न का जवाब देते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, “पहले जो आपने शिशु मंदिर का हवाला दिया है, तो इसपर मुझे लगता है कि आपने शायद उसे करीब से देखा ही नहीं है। शिशु मंदिर में सांप्रदायिक भेदभाव जैसी कोई चीज नहीं है, क्योंकि मैं उससे जुड़ा रहा हूं। हां, शिशु मंदिर में देशभक्ति की शिक्षा जरूर दी जाती है और हर भारतीय भारत से प्यार करें, इससे तो किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए।”

पढ़ाई ही तय करेगी, जहर फैले या नहीं: वाजपेयी ने आगे कहा था, ‘अगर किताबों में कुछ ऐसी चीजें छप गई हैं या पढ़ाई में कुछ ऐसी चीजें शामिल हो गई हैं, जो भाईचारे में रुकावट हों या इतिहास को गलत तरीकों से परिभाषित करती हों तो उसपर हमारी सरकार विशेष ध्यान देगी।’ पूर्व पीएम वाजपेयी ने कहा था कि पढ़ाई के जरिये ज़हर नहीं फैलाना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं कि पढ़ाई ही बंद कर दी जाए, क्योंकि ज़हर फैलना और ना फैलना पढ़ाई ही यह तय करेगी।

शिशु मंदिर से ही पढ़े थे वाजपेयी: ग्वालियर में जन्में अटल बिहारी वाजपेयी की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई शिशु मंदिर में ही हुई थी। उनके पिता स्कूल में शिक्षक थे। शिशु मंदिर के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई विक्टोरिया कॉलेज से की थी। पूर्व पीएम वाजपेयी शिक्षा में संस्कृति और संस्कारों के समावेश के पक्षधर थे और तमाम मौकों पर इसकी पैरवी करते रहते थे।