बीच में यानी मध्यांतर तक तो यह लगता है कि यह फिल्म ऊब पैदा कर रही है। पर बाद में, धीरे-धीरे, इसमें एक गति आती है और अंत में तो इसका प्रभाव बेहद मार्मिक हो जाता है। वैसे तो खेल को लेकर, खासकर क्रिकेट को लेकर, इधर काफी फिल्में बन रही हैं पर ‘जर्सी’ उन सबमें इसलिए अलग है कि यह खेलते हुए जान की बाजी लगाने का किस्सा सामने लाती है। और सिर्फ खेल के लिए नहीं अपने बेटे की निगाह में ऊंचा बने रहने के लिए भी।
शाहिद कपूर ने इसमें अर्जुन तलवार नाम के पंजाब के ऐसे क्रिकेटर की भूमिका निभाई है जो छत्तीस साल का हो चुका है और दस साल पहले क्रिकेट खेलना छोड़ चुका है। वह अपने दौर का धमाकेदार बल्लेबाज रहा है। दनादन चौके-छक्के मारनेवाला। लेकिन हालत ऐसे बनते हैं कि उसे क्रिकेट खेलना छोड़ना पड़ता है। हालात के ही कारण उसे क्रिकेट की दुनिया में फिर लौटना पड़ता है। हालांकि कोच से लेकर साथी खिलाड़ी तक उसे स्वीकार नहीं करना चाहते। क्या वो अपनी तमन्ना पूरी कर पाएगा, क्या फिर से रणजी ट्राफी खेल पाएगा, आखिर उसने क्रिकेट खेलना क्यों छोड़ा था- इन सारे सवालों के जवाब एक एक कर मिलते हैं और अंत में जो राज खुलता है वह चौंकानेवाला है।
शाहिद कपूर ने ऐसे शख्स की भूमिका निभाई है जो अपनी पत्नी विद्या (मृणाल ठाकुर) की नाराजगी लगातार झेलता है क्योंकि वह नौकरी से निलंबित होने के बाद आर्थिक रूप से बदहाल है और जो अपने बेटे किट्टू (रोहित कामरा) के जन्मदिन पर उसके लिए पांच सौ रुपए की जर्सी नहीं खरीद पाता। शाहिद चाहे क्रिकेट के मैदान में हों या घर में, अपनी छाप छोड़ते रहते हैं। मृणाल ठाकुर और रोहित कामरा अपनी अपनी भूमिकाओं में प्रभावशाली है। पंकज कपूर जो अर्जुन के कोच बने हैं, दर्शकों को भाते हैं। फिल्म बेटे की खुशी के लिए कुछ भी करेगा का जज्बा लिए हुए है। यह निर्देशक तिन्नानुरी की इसी नाम से बनी तेलुगु फिल्म की रीमेक है।