कोहिनूर मिल के एक कोकणी मजदूर को अपने बेटे के निठल्लेपन से चिढ़ पैदा होने लगी थी। वह सिनेमा देखने के अलावा कोई कामधाम नहीं कर रहा था। बाप ने उसे मिल में नौकरी दिलाने की कोशिश की, मगर बेटे ने साफ कह दिया कि वह तो फिल्मों में हीरो बनेगा। बेटे ने अपने दिल की बात ही नहीं कही थी, बल्कि वह बाकायदा फिल्मों में हीरो बना और खूब शोहरत बटोरी। यह हीरो थे भगवान दादा

भगवान दादा ने एक कॉमेडियन नूर मोहम्मद चार्ली की संगत पकड़ ली थी और उसी की तरह कॉमेडी कर मोहल्ले में अपने दोस्तों को हंसाने लगे थे। एक दिन फिल्म ‘बेवफा आशिक’ के लिए आॅडीशन देने पहुंच गए, जिसे शिराज अली हाकिम (जो बाद में ‘मुगले आजम’ अधूरी छोड़कर पाकिस्तान चले गए) बना रहे थे। नंबर आने पर डायरेक्टर ने भगवान से कहा कि कुछ करके दिखाओ। भगवान दादा ने उन दिनों अंग्रेजी फिल्म ‘द हंचबैक आॅफ नोत्रे दम’ देखी थी। फिल्म में कुबड़े किरदार की चाल चलकर दिखाई तो निर्देशक दादा गुंजाल खुश हो गए। भगवान हीरो बन गए।

यह मूक फिल्म जब रिलीज हुई तो भगवान दादा अपने पिता को साथ में दिखाने ले गए। सिनेमाघर में भगवान दादा की अदाओं पर जब दर्शकों की तालियां और सीटियां सुनीं और सिनेमाघर से बाहर बेटे को आॅटोग्राफ देते देखा, तो पिता की आंख से आंसू बहने लगे। दादा हीरो बन गए। लगा कि अब फिल्मवाले लाइन लगा कर उनके घर के सामने खड़े होंगे। मगर आठ महीने गुजर गए, कोई नहीं आया। एक दिन काम मांगने जा पहुंचे। निर्माता चंद्रावरकर पवार की फिल्म थी। काम करते हुए आठ-10 दिन हो गए थे। एक दिन निर्माता के एक असिस्टेंट को बातों ही बातों में बताया कि वह इससे पहले ‘बेवफा आशिक’ फिल्म कर चुके हैं। सहायक ने हैरानी से उनकी ओर देखा। नाम पूछा।

भगवान नाम सुनते ही असिस्टेंट हाथ पकड़ कर लगभग घसीटते हुए उन्हें पवार के पास ले गया और कहा कि जिस भगवान को हम कई महीनों से ढूंढ रहे हैं, यह वही भगवान है। पवार को यकीन नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि अच्छा ‘बेवफा आशिक’ का कुबड़ा भगवान जिस तरह से चलता था, वह चाल चलकर दिखाओ। भगवान ने दिखा दी। तब जाकर दोनों को यकीन हुआ। भगवान को पता चला कि आठ महीनों से उन्हें किसी फिल्म का प्रस्ताव नहीं मिल रहा था तो इसकी वजह यह थी कि कई निर्माताओं को लगा था कि भगवान दादा वाकई में कुबड़े हैं।

भगवान बाद में निर्माता-निर्देशक बने और उनकी बनाई हुई फिल्म ‘अलबेला’ (1951) को अपार सफलता मिली। इसके गाने ‘भोली सूरत दिल के खोटे…’ आज की पीढ़ी भी गुनगुनाती मिल जाएगी। एक के बाद एक सफलता से भगवान दादा लोकप्रिय हुए। मगर इसके बाद उनकी बनाई हुई फिल्में बॉक्स आॅफिस पर बुरी तरह फेल होने लगी। किशोर कुमार को लेकर उन्होंने ‘हंसते रहो’ नामक फिल्म शुरू की। इसे पूरी करने में भगवान का बंगला और कारें ही 77नहीं बल्कि पत्नी के जेवर तक बिक गए। इस तरह चॉल से शोहरत का सफर शुरू करने वाले भगवान दादा आखिर वक्त में चॉल में ही लौट आए। मगर उन्हें कभी अपनी शोहरत के गुम हो जाने का अफसोस नहीं हुआ।