फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ लगातार सुर्खियों में बनी हुई है। इस फिल्म को लेकर कुछ लोग समाज में जहर घोलने और प्रोपगेंडा फैलाने का आरोप लगा रहे हैं। फिल्म को बड़ी संख्या में लोगों का समर्थन मिल रहा है। कम बजट वाली यह फिल्म कमाई के मामले में रिकॉर्ड बना चुकी है। इसी बीच विवेक अग्निहोत्री ने अपना एक वीडियो शेयर किया है, जिसकी लोग खूब तारीफ कर रहे हैं।

वीडियो में विवेक अग्निहोत्री कह रहे हैं कि “जब मैं फिल्म बना रहा था, तब लोगों ने कहा कि पागल हो गए हो क्या? मरोगे। पर मुझे ये स्वीकार था, वो मरना भी स्वीकार था। भारत की पचास-पचास पुरानी समस्याएं चल रही हैं क्योंकि लोग उस पर बात करने से डरते हैं। हमने डाकुओं को महिमामंडित किया, हमने नक्सल लोगों को महिमामंडित किया, सम्ग्लर को महिमामंडित किया, हमने आतकियों को महिमामंडित किया, ये दुखद है। आतंकी कोई भी सताने से नहीं बनता।”

विवेक अग्निहोत्री आगे कहते हैं कि “यासीन मलिक को किसी ने नहीं सताया, हाफिज सईद को किसी ने नहीं सताया, बुरहान वानी को किसी ने नहीं सताया, अफजल गुरु को किसी ने नहीं सताया और कश्मीर पर मुझसे ज्यादा किसी के पास रिसर्च नहीं है। ये झूठ जिस पर 32 साल तक धंधा किया गया, उसको मैंने एक्सपोज किया है। एक नए भारत का निर्माण करें, भविष्य आपके हाथ में है।”

सोशल मीडिया पर लोग इस वीडियो को खूब शेयर कर रहे हैं और इस पर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। डॉ. सुषमा नाम की यूजर ने लिखा कि “कश्मीरी पंडितों पर सदियों से अत्याचार होते रहे हैं, वास्तव में 14वीं सदी से ही पर वे आतंकवादी नहीं बने।” राजेंद्र नाम के यूजर ने लिखा कि “बॉलीवुड ने एक तरफ डाकुओं को, स्मगलर्स को, नक्सलियों को, आतंकवादियों को महिमामंडित किया तो दूसरी ओर हिन्दू धर्म व हिन्दुओं को जलील करने का एक सिलसिला चलाया।”

अमित तेवतिया नाम के यूजर ने लिखा कि “आपकी बात सही है, अगर सताने से कोई आतंकी बनता तो कश्मीरी पंडित भी AK-47 उठा लिए होते।” अजीत नाम के यूजर ने लिखा कि “आपकी फिल्म में सब कुछ अच्छे से दिखाया गया है लेकिन सरकार क्या कर रही है कश्मीरी पंडितों के लिए इसके बारे में भी अपडेट देते रहिए क्योंकि हमें सिर्फ आपकी फिल्म की कमाई का ही अपडेट मिल रहा है।” बिपिन शाह नाम के यूजर ने लिखा कि “सच सच। यहूदियों पर सदियों से अत्याचार किया जा रहा था। वे आतंकवादी नहीं बने। हालांकि मुझे विश्वास नहीं है, लिटबार्ड हमें यह विश्वास दिलाना चाहेंगे कि दलित (मैं इस शब्द को भी अस्वीकार करता हूं क्योंकि यह केवल हमें विभाजित करने के लिए बनाया गया था) उत्पीड़ित थे। वे आतंकवादी नहीं बने।”

अंकिता आनंद नाम की यूजर ने लिखा कि “इस सबसे अनजान रहने के लिए मुझे शर्म आती है। दुख की बात है कि हम एक ऐसे युग में जी रहे थे जब राष्ट्र-विरोधी होना अच्छा था। मुझे भारत की वास्तविकता से जगाया है।” लोकेश नाम के यूजर ने लिखा कि “सताने से अगर कोई आतंकी बनता तो आज कश्मीरी पंडित भी आतंकी होते।”