समय के साथ कलाकार अपनी कला को विस्तार देकर उसे नया आयाम देते हैं। वे विभिन्न शैलियों की दूरियों को खत्मकर उन्हें आपस में जुड़ने का भी अवसर प्रदान करते हैं। कुचिपुड़ी की वरिष्ठ नृत्यांगना वनश्री राव ने कुछ ऐसा ही प्रयास किया है। उन्होंने अपने साथ भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी और छऊ के कलाकारों को जोड़ रास यूनाइटेड की स्थापना की है।
पिछले वर्ष पुराना किला नृत्य समारोह में वनश्री राव और रास यूनाइटेड के कलाकरों ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को मोहित कर लिया था। उनकी प्रस्तुति में त्रिपुरासुर संहार, भक्त मारकंडेय रक्षक शिव, अभिमन्यु वध व महिषासुर मर्दिनी शामिल थे। छऊ और भरतनाट्यम नृत्य शैली में पहली पेशकश त्रिपुरासुर संहार में शिव और त्रिपुरासुर के संघर्ष को मोहक अंदाज में पेश किया गया।

वनश्री राव ने देवी शक्ति, वीर भक्ति व शृंगार पर नृत्य रचनाओं को परिकल्पित किया और उसे विभिन्न मंचों पर पेश किया। उन्होंने शिव-विष्णु और कृष्ण की साम्यता को दर्शाने वाली एक नृत्य रचना ‘प्राथर्ना’ पेश की। यह प्रस्तुति प्राचीन गं्रथों के श्लोकों, मंत्रों और कृतियों में पिरोई गई माधुर्यपूर्ण थी। वहीं उनकी नृत्य रचना मृत्युंजय भी काफी आकर्षक है। इसे पहली बार उन्होंने अपनी एकल प्रस्तुति के दौरान पेश किया था। बाद के दिनों में इसे उन्होंने अपनी शिष्याओं को भी सिखाया और रास के कलाकारोें के साथ भी इसे पेश किया। इस नृत्य को शिव पुराण के अंशों और महामृत्युंजय मंत्र में पिरोया गया था। इस प्रस्तुति में एक ओर वनश्री राव ने शिव और यमराज के द्वंद्व में रौद्र रस का निरूपण किया। वहीं दूसरी ओर शिव और भक्त मारकंडेय के भावों को विवेचित करते हुए भक्ति रस का संचार किया। उन्होंने हस्तमुद्राओं, भंगिमाओं और भावों के जरिए शिव के नीलकंठ, रुद्र, पशुपति, उमापति, महादेव, त्रयंबक, त्रिकालज्ञ रूपों को दर्शाया। इस अंश में नृत्य पर उनकी पकड़ और भावों की अभिव्यक्ति में स्फूर्ति का समावेश नजर आता है।

वनश्री राव ने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के फाउंटेन लॉन में नृत्य समारोेह में रास यूनाईटेड के कलाकारों के साथ नृत्य पेश किया। यह गुरु वनश्री राव और डॉ एस वासुदेवन ने इसकी परिकल्पना की थी। सशक्त संगीत गायक के वेंकटेश्वरन ने संगीतबद्ध किया था। महिषासुरमर्दिर्नी से नृत्य का समापन किया।छऊ, कुचिपुडी और भरतनाट्यम नृत्य शैलियों में इसमें देवी के रौद्र रूपों का निरूपण किया गया। यह नृत्य श्लोक या देवी सवर्भूतेषु, दुर्गादुर्गतिनाशिनी दुष्ट निशाचर विंध्यवासिनी, चंद्रघंटा घंटाधारिणी पर आधारित थी। इस पेशकश में दुवी के चंद्रघंटा रूप को विशेष रूप से विस्तारित किया गया। छऊ के कलाकारों ने दुरुस्त भ्रमरी व अंग संचालन पेश किया। प्रस्तुति के आरंभ में त्रिपुरासुर वध प्रसंग की व्याख्या कलाकारों ने प्रभावपूर्ण तरीके से किया। प्रस्तुति के अंत में महिषासुर मर्दिर्नी पेश किया गया।

यह पंडित जसराज के गाए जय जय हे महिषासुर मर्दिर्नी के संगीत पर आधारित था। भरतनाट्यम, छऊ और कुचिपुडी नृत्य शैली में पिरोई गई यह प्रस्तुति रौद्र रस से पूर्ण थी। यह उनकी यादगार प्रस्तुतियों में से एक है। नृत्यांगना वनश्री ने गुरु जयराम राव और गुरु वेम्पति चिन्ना सत्यम से नृत्य सीखा है। वे नृत्य को अपना जीवन मानती हैं। पिछले दिनों भूटान यात्रा का जिक्र करते हुए, वह कहती हैं कि इस दौरान मुझे अहसास हुआ कि मेरी ऊर्जा और सक्रियता का एकमात्र स्रोत नृत्य है। इसलिए जब तक सांसे चलती रहेंगी मैं युवा कलाकारों के साथ नृत्य करती रहूंगी।