Uttar Ramayan : वाल्मीकि आश्रम में लव कुश का लालन पालन हो रहा है। अब लव कुश बड़े हो रहे हैं। वाल्मीकि लव कुश को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। मां सीता उन्हें अच्छे संस्कार दे रही हैं। ऋषि दोनों बालकों को रामायण का पाठ पढ़ा रहे हैं। लव कुश को अब राम सिया की कहानी का पता चलता है जिसे सुन कर लव भड़ उठते हैं।
इससे पहले दिखाया गया था वाल्मीकि के आश्रम में लव-कुश की किलकारियां गूंज उठी हैं। दोनों बच्चों के आगमन से सारे वातावरण में प्रसन्नता का माहौल है। दोनों बच्चों को देख माता सीता बेहद खुश हैं। मां सीता अपने लाडले लव-कुश को सुलाने के लिए लोरी गाती हैं। वहीं मुनिवर दोनों बच्चों की कुंडलियां बनाते हैं और लव-कुश के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।
मंत्री राजा राम से कहते हैं कि आपके राज्य में पूरी प्रजा खुश है हर तरफ हर्ष का माहौल होने के बावजूद प्रजा थोड़ी शिथिल हो रही है ऐसे में आपको कुछ ऐसा कार्य करना होगा जिससे स्थिरता में थोड़ा बदलाव आए। मंत्री कहते हैं कि उत्सवों के माध्यम से प्रजा का उत्साह बढ़ाया जा सकता है। मंत्री की बात सुनकर राजा राम प्रजा का उत्साह बढ़ाने के लिए उत्साव मनाने का फैसला करते हैं और कहते हैं कि पापों के नाश के लिए यज्ञ करवाना उचित होगा।
राम ने यज्ञ की तैयारी करते हुए मंत्री को आदेश दिया कि ये यज्ञ इतिहास का सबसे महान यज्ञ होना चाहिए इसमें तब तक लोगों को दान दो जब तक वो दान लेते-लेते थक न जाए। इस यज्ञ के लिए सभी लोगों चाहे वो कोई भी हो आमंत्रित किया जाए। वहीं अयोध्या में चारों ओर सीता माता को लेकर सवाल उठ रहे होते हैं कि हो सकता है कि महाराज राम सीता को त्यागकर दूसरी शादी कर लें।
राम जी को जब ये बात पता चलती है कि अयोध्या में उनकी शादी को लेकर बातचीत चल रही है तो वो काफी भड़क जाते हैं। राम जी कहते हैं कि सीता की पवित्रता को जानने के बाद भी लोगों ने ये कैसे सोचा कि वो दूसरा विवाह करेंगे। राजा राम ऋषियों से कहते हैं कि हमने प्रजा के लिए अपना सबकुछ त्याग दिया लेकिन मैं दूसरा विवाह नही करुंगा चाहे जो हो। ऋषि उनसे कहते हैं कि बिना पत्नी के यज्ञ करना संभव नही है।
इधर नगर में सब अयोध्या की बातें कर रहे हैं। सीता भी पूछती हैं कि क्या हुआ। उन्हें बताया जाता है कि अयोध्या में उत्सव मनाए जाने की तैयारी हो रही है। अश्वमेध के यज्ञ की बात सीता को पता चलती है, वहीं सीता को ये भी बताया जाता है कि अब श्रीराम का विवाह किया जा सकता है। यह सुन कर सीता को धक्का लगता है। कहा दाका बै रि
श्री राम ने यज्ञ की तैयारी करते हुए मंत्री को आदेश दिया कि ये यज्ञ इतिहास का सबसे महान यज्ञ होना चाहिए इसमें तब तक लोगों को दान दो जब तक वो दान लेते-लेते थक न जाए। इस यज्ञ के लिए सभी लोगों चाहे वो कोई भी हो आमंत्रित करो। इस यज्ञ में देव, राक्षस, किन्नर, सर्प सभी आएंगे।
अब वाल्मीकि लव कुश को ध्यान औऱ दिव्य दृष्टि से ज्ञान प्रदान कर रहे हैं। गुरू लव-कुश की कुंडलिनी जाग्रत करने के लिए उन्हें उपदेश देकर समझाते हैं कि इसे प्राप्त करने में कई जन्म लगे जाते हैं लेकिन गुरू कृपा से ये तुरंत जाग्रत हो जाती है।
श्रीराम अयोध्या में अश्वमेध यज्ञ करने का आदेश देते हैं। मंत्री राजा राम से कह रहे हैं कि आपके राज्य में पूरी प्रजा खुश है हर तरफ हर्ष का माहौल होने के बावजूद प्रजा थोड़ी शिथिल हो रही है ऐसे में आपको कुछ ऐसा कार्य करना होगा जिससे स्थिरता में थोड़ा बदलाव है और उत्सवों के माध्यम से प्रजा का उत्साह बढ़ाया जाए। मंत्री की बात सुनकर राजा राम प्रजा का उत्साह बढ़ाने के लिए उत्साव मनाने का फैसला करते हैं और कहते हैं कि पापों के नाश के लिए यज्ञ करवाना उचित होगा।
लव-कुश अब बड़े होने लगे हैं। लव कुछ को श्रीराम के सीता त्याग की कहानी का पता चलता है जिसके बाद लव भड़ जाता है औऱ अपनी मां से जानकी से पूछता है कि मा श्रीराम ने क्यों सीता का त्याग कर दिया। यह तो अत्याचार है, प्रजा की बातों में आकर उन्होंने अपराध किया है। ऐसे में सीता हैरानी से कहती हैं कि आगे की कहानी गुरूदेव ने नहीं बताई? उन्होंने ये नहीं बताया कि राजमहल में वह भी साधारण जीवन यापन कर रहे हैं? लव कुश कहते हैं कुछ भी हो उन्होंने ये गलत ही किया है।
प्रभु राम के यज्ञ की महिमा बढ़ाने के लिए अनेकों जगह से राजा महाराज पधार रहे हैं जिनमें बाली, भरत भी शामिल हैं। वहीं अपने भाई भरत को देखते ही प्रभु राम खुदको रोक नही पाते हैं और भाई भरत को गले लगा लेते हैं। प्रभु राम को देख भरत की आंखें छलक उठती हैं।
सीता की आंख प्रभु राम की महानता बताते हुए छलक उठती हैं वहीं कुटिया में एक महिला सीता से कहती है कि सीता के बारे में सोच सोचकर मुझे काफी तकलीफ होत है कि जितने दुख उस स्त्री ने सहे उतना और कौन सह सकता है जिसपर सीता कहती हैं कि आप बिल्कुल सही कह रही हैं सबको अपने कर्मों के अनुसार ही दुख मिलता है।
राम जी को जब ये बात पता चलती है कि अयोध्या में उनकी शादी को लेकर बातचीत चल रही है तो वो काफी भड़क जाते हैं। राम जी कहते हैं कि सीता की पवित्रता को जानने के बाद भी लोगों ने ये कैसे सोचा कि वो दूसरा विवाह करेंगे। राजा राम ऋषियों से कहते हैं कि हमने प्रजा के लिए अपना सबकुछ त्याग दिया लेकिन मैं दूसरा विवाह नही करुंगा चाहे जो हो। ऋषि उनसे कहते हैं कि बिना पत्नी के यज्ञ करना संभव नही है।
अयोध्या में चारों ओर सीता माता को लेकर सवाल हो रहे हैं कि अब वक्त आ गया है कि राजा राम को माता सीता को अयोध्या वापस बुला लेना चाहिए। वहीं चारों तरफ महाराज राम की शादी को लेकर भी बातें चल रही हैं।
राम ने यज्ञ की तैयारी करते हुए मंत्री को आदेश दिया कि ये यज्ञ इतिहास का सबसे महान यज्ञ होना चाहिए इसमें तब तक लोगों को दान दो जब तक वो दान लेते-लेते थक न जाए। इस यज्ञ के लिए सभी लोगों चाहे वो कोई भी हो आमंत्रित करो।
गुरू लव-कुश को गुप्त विद्या दे रहे हैं। गुरू लव-कुश की कुंडलिनी जाग्रत करने के लिए उन्हें उपदेश देकर समझाते हैं कि इसे प्राप्त करने में कई जन्म लगे जाते हैं लेकिन गुरू कृपा से ये तुरंत जाग्रत हो जाती है।
मंत्री राजा राम से कह रहे हैं कि आपके राज्य में पूरी प्रजा खुश है हर तरफ हर्ष का माहौल होने के बावजूद प्रजा थोड़ी शिथिल हो रही है ऐसे में आपको कुछ ऐसा कार्य करना होगा जिससे स्थिरता में थोड़ा बदलाव है और उत्सवों के माध्यम से प्रजा का उत्साह बढ़ाया जाए। मंत्री की बात सुनकर राजा राम प्रजा का उत्साह बढ़ाने के लिए उत्साव मनाने का फैसला करते हैं और कहते हैं कि पापों के नाश के लिए यज्ञ करवाना उचित होगा।
माता सीता के कथनों से लव-कुश सहमत नही होते और माता सीता से कहते हैं कि अगर किसी दिन उनकी भेंट राजा राम से हुई तो फिर वो उनसे ये सवाल अवश्य पूछेंगे कि उन्होंने अपनी पत्नी को लोगों के कहने पर वन में क्यों छोड़ दिया। लव-कुश कहते हैं कि हमारा संकल्प मजबूत है। हमारी भेंट राजा राम से अवश्य होगी।
लव-कुश अपनी माता से कह रहे हैं कि जब राजा ही ऐसा हो तो प्रचा का क्या होगा। जब सीता जी उनसे पूछती हैं कि बालकों तुम किस राजा की बात कर रहे हो। जब दोनो बालक अपनी मां से कहते हैं कि वो राजा राम की बात कर रहे हैं। राम जी का नाम सुन माता सीता काफी व्याकुल हो उठती हैं और लव-कुश से कहती हैं कि शायद तुम दोनों को गुरूदेव ने आगे की कहानी नही सुनाई है।
लव-कुश अपने गुरू से प्रभु श्रीराम के बारे में पूछ रहे हैं। लव-कुश कह रहे हैं कि जब राम जी को अपनी पत्नी की पवित्रता पर पूरा विश्वास था तो फिर उन्होंने उनका त्याग क्यों किया। राजगुरू उनसे कहते हैं कि राम ने जो किया वो राजधर्म के अनुसार ही किया। लेकिन दोनो बालक राम जी से काफी खफा नजर आते हैं।
इधर लवणासुर का वध होता है, उधर लवणासुर का त्रिशूल वापस शिव भगवान के पास जा पहुंचता है। लवणासुर की रानी को आभास होता है और वह रोने लगती है। यहां अयोध्या का पताका लहराता है। रघुवंशियों की जय होती है। सूर्य का उदय और अधंकार का नाश होता है। सारे ऋषि मुनी अति प्रसन्न होते हैं। सारे मंदिरों के कपाट खुलने लगते हैं। मंदिरों में पूजन शुरू होता है। लोग उत्सव मनाते हैं।