Uttar Ramayan : उत्तर रामायण में इस वक्त दिखाया जा रहा है कि सीता ने लव-कुश को जन्म दिया है। वाल्मीकि शत्रुघ्न के हाथों दोनों बच्चों का जातक संस्कार करवाते हैं। इधर श्रीराम को सीता का सपना आता है, वह सोते हुए अचानक उठ बैठते हैं। तभी सेवा में खड़े लक्ष्मण श्रीराम से पूछते हैं भैया क्या हुआ? श्रीराम बताते हैं कि उन्हें एक स्वप्न आया जिसमें उन्हें सीता की आवाज सुनाई दी। अनुज कहते हैं शायद भाभी किसी कष्ट में हो और आपको आवाज दिया हो। राम कहते हैं उसे कष्ट नहीं हो सकता। और हो भी तो उसे मेरी जरूरत नहीं है। वह दुर्गा का रूप धारण कर गई है उसे कष्ट नहीं हो सकता। उसके स्वर में उल्लास था। लक्ष्मण कहते हैं फिर अयोध्या के राजकुमार ने जन्म लिया हो।
इससे पहले देख चुके हैं कि दैत्य लवनासुर से दुखी होकर समस्त ऋषि मुनि अयोध्या की ओर प्रस्थान करते हैं। अयोध्या पहुंचे ऋषियों का सत्कार प्रभु श्री राम ने उनके पैर धोकर किया करते हैं। राजा राम से ऋषियों ने सहायता की मांग की जिसपर ऋषि मुनियों को प्रभु वचन देते हैं कि आपकी हर पीड़ा का हम इलाज करेंगे। इस दौरान ऋषि ने बताया कि एक लवनासुर नाम का दैत्य है जो ऋषि मुनियों को बहुत परेशान करता है। उसके पास भगवान शिव द्वारा दिया गया त्रिशूल है जिससे वो किसी को भी मार सकता है। इसी वजह से उसे कोई परास्त नहीं कर सकता है।
ऋषियों से प्रभु श्रीराम कहते हैं कि रघुवंशी अपनी शरणागत की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर देंगे। अब आप निश्चिंत हो जाइए। हमें अब ये देखना है कि रघुवंश के राजकुमारों में से कौन ये बीड़ा उठाता है। कौन अपने प्राण दांव पर लगाता है। राम के प्रश्नों का उत्तर देते हुए भरत कहते हैं कि महाराज आप जिस किसी की ओर संकते करें वह आपकी आज्ञा पालन का सौभाग्य समझेगा।
शत्रुघ्न कहते हैं- महाराज निर्णय लेने से पहले हमारी एक प्रार्थना अवश्य सुन लें। राम कहते हैं, कहो। शत्रुघ्न कहते हैं कि आज तक आपने मुझे अपनी सेवा का कोई अवसर नहीं दिया। लक्ष्मण भैया ने आपके साथ 14 वर्ष वनवास काटा और भरत भैया ने भी अयोध्या में रहते हुए वैसे ही वनवास के कष्ट सहे। वह फल खाकर रहे। मुझे छोटा समझ कोई सेवा नहीं दी गई परंतु अब अगर मेरे रहते बड़े भाईयों को उस दैत्य से लड़ने भेजा गया तो ये मेरे साथ अन्याय होगा। अब युद्ध में जाने की मेरी बारी है…
शत्रुघ्न पहुंचे च्यवन ऋषि के आश्रम पहुंचते हैं। शत्रुघ्न उनको प्रणाम करते हैं और वह बताते हैं कि श्रीराम ने उनके मदद हेतु उन्हें यहां भेजा है। च्यवन ऋषि उन्हें आशीर्वाद देते हैं और युद्ध की रणनीति का पाठ पढ़ाते हुए सूर्य वंश के पूर्वज मांधाता की कहानी सुनाते हैं। वह कहते हैं लवणासुर के समान इस तीनों लोक में कोई नहीं है। उसके पास शिव का दिया अलौकिक त्रिशुल है।
लवणासुर अपने राज्यसिंघासन पर विराजमान होता है। उसके समक्ष बंदीजनों को उपस्थित किया जाता है। कुछ ऋषियों को उसने बंदी बनाया होता है। इनका दोष होता है कि राज्य के समीप वह यज्ञ कर रहे होते हैं। ऐसे में उन्हें इसके लिए सजा दी जा रही होती है। ऋषिमुनी कहते हैं हमारे धर्म के मार्ग में बाधा डाल कर तुम पाप कर रहे हो। हर मानव को अधिकार है कि वह अपनी पसंद से ईश्वर को स्मरण करे। लवणासुर कहता है कि इस राज्य में हमारे अलावा औऱ कोई भगवान नहीं है। वह अब नाराज हो जाता है वह कहता है कि उन्हें उल्टालटका कर इनकी चमड़ी उधेड़ दो। तभी ऋषि कहते हैं कि तुम्हारे हाथों मरना हमें स्वीकार नहीं। हम योग के माध्यम से खुद को भस्म कर लेंगे। मुनीजन अग्नि प्रकट करते हैं। लेकिन वह अग्नि फूल बन जाती है। लवणासुर गुस्सा हो जाता है और आदेश देता है कि उन्हें कारागार में डाल दो।
सिया के आंचल में खिले ममता के दो फूल जिसकी मधुर सुगंध से पूरा जग महकने लगा। सीता अब बहुत खुश हैं। सीता बालकों के गले में पड़ी सूर्यवंशियों की माला देख बहुत हर्षित होती हैं। सीता कहती हैं कि अपने पिताश्री को नमस्कार करो।स्वामी अपने पुत्र का नमन स्वीकार करें। इधर श्रीराम सो रहे होते हैं। श्रीराम तुरंत उठ खड़े होते हैं। लक्ष्मण कहते हैं भैया क्या हुआ? श्रीराम बताते हैं मैंने सीता की आवाज उठी। लक्ष्मण कहते हैं कि कहीं भाभी कोई विपदा में तो नहीं। श्रीराम कहते नहीं सीता की आवाज में एक उल्लास था। लक्ष्मण कहते हैं संभवत: सूर्यवंशी कुल के नए सूर्य का उदय हुआ हो। इधर श्रीराम अनुज जा रहे होते हैं तभी सीता बच्चियों के हाथों पुष्म भिजवाती हैं। शत्रुघ्न कहते हैं कि यह फूल वह युद्ध में भी अपने साथ रखेंगे।
शत्रुघ्न दोनों सूर्यवंशी बच्चों का जातक संस्कार करते हैं। गुरूदेव कहते हैं कि इस बालक को अपनी गोद में लीजिए। इस बालक का मार्जन हमने कुश द्वारा किया है इसलिए इसका नाम कुश होगा। औऱ इस बालक का मार्जन हमेने लव द्वारा किया है इसलिए इस बालक का नाम लव होगा। इसके बाद चाचा अपने गले की मालाएं लव कुश को पहना देते हैं। सीता को इसका समाचार मिलता है। तो वह बहुत खुश हो जाती हैं।
शत्रुघ्न आश्रम में आते हैं, सभी शत्रुघ्न को देखने भीड़ के रूप में सामने आते हैं। वाल्मीकि शत्रुघ्न को आसन ग्रहण करने को कहते हैं। शत्रुघ्न कहते हैं कि वह श्रीराम केकहने पर आपसे आशीर्वाद लेने आया हूं, लवणासुर का अंत करने मैं निकला हूं, आपका आशीर्वाद चाहता हूं। गुरूदेव शत्रुघ्न कोआशीर्वाद देते हैं। तभी एक ऋषि कन्या दौड़ कर आती है औऱ गुरूदेव को समाचार सुनाती है। कन्या बताती है कि वनदेवी ने दो पुत्रों को जन्म दिया है। अब गुरूदेव को कहाजाता है कि जातक संस्कार की तैयारी करें। गुरूदेव कहते हैं कि यए बालक सूर्यवंशी हैं और उनके पिता इस वक्त नहीं है यहां। ऐसे में आप भी सूर्यवंशी हैं। आप बच्चों का जातक संस्कार करें।
शत्रुघ्न सेना संग वाल्मीकि आश्रम पहुंचे: शत्रुघ्न आश्रम के अंदर पहुंचते हैं। इधर, सीता कुछ ही पलों में लव कुश को जन्म देने वाली हैं। वाल्मीकि इस बीच बताते हैं कि उन्होंने दोनो बच्चों की कुंडलियां भी बना ली हैं। एक का नाम लव औऱ दूसरे का नाम कुश होगा। तभी गुरूदेव के पास एक ऋषि आते हैं, वह समाचार देते हैं कि अयोध्या के राजकुमार शत्रुघ्न आ रहे हैं। गुरूदेव आदेश देते हैं कि राजकुमार शत्रुघ्न को आदर सहित ले आओ। शत्रुघ्न की चरण वंदना की जाती है औऱ उन्हें पधारने के लिए कहा जाता है।
शत्रुघ्न सेना संग वाल्मीकि आश्रम पहुंचे: शत्रुघ्न आश्रम के अंदर पहुंचते हैं। इधर, सीता कुछ ही पलों में लव कुश को जन्म देने वाली हैं। वाल्मीकि इस बीच बताते हैं कि उन्होंने दोनो बच्चों की कुंडलियां भी बना ली हैं। एक का नाम लव औऱ दूसरे का नाम कुश होगा। तभी गुरूदेव के पास एक ऋषि आते हैं, वह समाचार देते हैं कि अयोध्या के राजकुमार शत्रुघ्न आ रहे हैं। गुरूदेव आदेश देते हैं कि राजकुमार शत्रुघ्न को आदर सहित ले आओ। शत्रुघ्न की चरण वंदना की जाती है औऱ उन्हें पधारने के लिए कहा जाता है।
लवणासुर को मारने निकल पड़े शत्रुघ्न, श्रीराम ने कहा पूर्वजों की इज्जत तुम्हारे हाथ में..: श्रीराम कहते हैं कि अपने काम में सफल हो। यह पहली बार है जब तुम सेना के साथ जा रहे हो सेना तुम्हारे नेतृत्व में आगे बढ़ रही है। रास्ते में वाल्मीकि के आश्रम जरूर जाना। श्रीराम सलाह देते हैं। राजा को सदा सेना के आगे रहना चाहिए। सेना हमेशा उसका आदर करती है, य़ए बात हमेशा याद रखना। अब जाओ विजय भव:। लवणासुर ने उस राज्य का नाश कर रखा है तुम्हें वहा रहकर पहले उस राज्य औऱ वहां की जनता का सही से ख्याल रखना है। तुम्हेम वहां रहना होगा। शत्रुघ्न कहते हैं भैया पर मैं आपके बगैर कैसे रहूंगा। श्रीराम कहते है एक राजा के जीवन में कितने त्याग होते हैं ये तो तुमने देख ही लिया। अब तुम भी एक राजा हो। इसी के साथ ही शत्रुघ्न सेना के साथ युद्ध के लिए आगे बढ़ते हैं।
श्रीराम ने शत्रुघ्न को दिया दिव्य बाण: श्रीराम बताते हैं कि ये विष्णु भगवान का बाण हैं।इस बाण से उन्होंने कई राक्षसों का संघार किया। ये शस्त्र इसलिए शत्रुघ्न को दिया जाता है ताकि वह लवणासुर को मार सके। श्रीराम कहते हैं कि याद रहे इसे तभी इसका करें जब जीवन औऱ मरन का मोड़ आ जाए। श्रीराम कहते हैं कि तभी मैंने इस बाण का रावण को मारने में भी इस्तमाल नहीं किया था। ध्यान रहे।
शत्रुघ्न सफर करते हुए बीच मार्ग में च्यवन ऋषि के आश्रम में पड़ाव डालते हैं। वह उनको प्रणाम करते हैं और अपने मकसद की चर्चा करते हैं। च्यवन ऋषि उन्हें आशीर्वाद देते हैं और युद्ध की रणनीति का पाठ पढ़ाते हुए सूर्य वंश के पूर्वज मांधाता की कहानी सुनाते हैं। वह कहते हैं लवणासुर के समान इस तीनों लोक में कोई नहीं है। उसके पास शिव का दिया अलौकिक त्रिशुल है।
लवणासुर के सैनिक कुछ ऋषियों को उसके सामने कोड़े मारते हुए पेश करते हैं। लवणासुर कहता है तुम्हें ज्ञात नहीं कि मेरे राज्य में वैदिक पूजा निषेध है। यज्ञ अनुष्ठान कर शक्ति प्राप्त करना पाप है। ऋषि कहते हैं कि पाप हम नहीं तुम कर रहे हो। लवणासुर कहता है कि यहां का भगवान सिर्फ मैं हूं। दैत्य गुस्सा हो उनको मृत्यु दंड देता है लेकिन सभी राक्षस के हाथों मरने के बजाय खुद ही अग्नि में अपने शरीर को भस्म कर लेते हैं।
राम अचानक उठते हैं तो लक्ष्मण इसका कारण पूछते हैं । राम कहते हैं लक्ष्मण, जैसे सीता की आवाज सुनाई दी। अनुज कहते हैं शायद भाभी किसी कष्ट में हो और आपको आवाज दिया हो। राम कहते हैं उसे कष्ट नहीं हो सकता। और हो भी तो उसे मेरी जरूरत नहीं है। वह दुर्गा का रूप धारण कर गई है उसे कष्ट नहीं हो सकता। उसके स्वर में उल्लास था। लक्ष्मण कहते हैं फिर अयोध्या के राजकुमार ने जन्म लिया हो।
दैत्य लवनासुर के वध को निकले शत्रुघ्न राम की आज्ञानुसार महर्षि वाल्मीकि से मिलते हैं। इसी दौरान सीता भी लव-कुश को जन्म देती हैं। वाल्मीकि शत्रुघ्न से ही दोनों बालकों का जातक संस्कार कराते हैं। वाल्मीकि दोनों बालकों को शत्रुघ्न की गोद में देते हैं। जातक संस्कार करते हैं और कहते हैं इस बालक का मार्जन हमनें कुश द्वारा किया है इसलिए इसका नाम कुश होगा। इस बालक का मार्जन हमने लव द्वारा किया है इसलिए इसका नाम लव होगा।
वाल्मीकि दोनों बालकों को शत्रुघ्न की गोद में देते हैं। जातक संस्कार कराते हैं और कहते हैं इस बालक का मार्जन हमनें कुश द्वारा किया है इसलिए इसका नाम कुश होगा। इस बालक का मार्जन हमने लव द्वारा किया है इसलिए इसका नाम लव होगा।
दैत्य लवणासुर का वध करने निकले शत्रुघ्न बीच में रुकते हैं। वह वाल्मीकि के आश्रम पहुंचते हैं जहां उनका सेवक स्वागत करते हैं। वाल्मीकि मन ही मन कहते हैं कि क्या संयोग है कि सीता के बच्चों का जन्म होने वाला है और कुमार शत्रुघ्न भी आए हैं।
वाल्मीकि सीता के पुत्रों के जन्म कुंडली बना चुके हैं। वह कहते हैं बालकों की कुंडली में पुष्प नक्षत्र औऱ लग्न में सूर्य हैं। जन्म से ही तेजस्वी होंगे। वह जल सीता को जल देते हैं ताकि बालकों के जन्म के दौरान कष्ट ना हो..
लवणासुर का वध करने शत्रुघ्न रण के लिए निकल चुके हैं। युद्ध में जाने से पहले शत्रुघ्न बड़े भाई और राजा राम का आशीर्वाद लेते हैं। श्रीराम लवणासुर के वध के लिए शत्रुघ्न को दिव्य वाण सौंपते हैं..
राम शत्रुघ्न को एक दिव्य वाण देते हुए कहते हैं- ये दिव्य और अमोल वाण देना चाहता हूं। पिछले प्रलय काल में इस वाण की रचना विष्णु ने की थी। सृष्टि की रक्षा के लिए इसे बनाया था। मैं ये अस्त्र इसलिए दे रहा हूं कि लवणासुर का वध करने के लिए इसकी आवश्यकता पड़ेगी। लेकिन इसका प्रयोग तभी करना जब प्राण पर बन आए।
शत्रुघ्न हट करते हैं कि लवणासुर को मारने का अवसर उन्हें ही मिलना चाहिए। सभी भाइयों को आपकी सेवा करने का मौका मिल चुका है लेकिन मुझे कभी नहींं मिला। मुझे हमेशा छोटा समझ ऐसा किया गया लेकिन मेरे होते मेरे बड़े भाइयों को उस दैत्य के वध के लिए जाने की जरूरत नहीं....
प्रभु श्री राम ने ऋषियों की मदद करने का बीड़ा अपने सबसे छोटे भाई शत्रुघन को दिया है। इस दौरान श्री राम ने कहा कि लवणासुर के अंत के बाद तुम्हें वहां का राजा बनाया जाएगा जिसका राज्य अभिषेक हम अभी यहीं करते हैं। इससे पहले धारावाहिक में आपने देखा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम प्रभु और साक्षात मां लक्ष्मी की प्रतिमा सीता माता अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए आज उस परिस्थिति में जा पहुंचे हैं जहां उनके पास सिर्फ एक दूसरे की यादों के अलावा और कुछ नहीं है।
शत्रुघ्न की बातों का प्रत्युत्तर करते हुए लक्ष्मण कहते हैं कि हम बड़े भाइयों के होते हुए तुम्हें उस राक्षस से युद्ध करने की क्या आवश्यकता है। सुना नहीं वहां प्राणों का संकट है। लक्ष्मण राम की तरफ मुखातिब होते हुए कहते हैं कि महाराज मैं ही उस राक्षस से निपट लूंगा। लेकिन शत्रुघ्न इसका विरोध करते हैं और वह युद्ध में जाने की लालसा जताते हैं। और कहते हैं कि मैंने पहले मांग की है। अगर मुझे ये अवसर नहीं दिया गया तो लगेगा कि महाराज को मेरी वीरता पर संदेह है...