Uttar Ramayan: क्रौंच पक्षी के बध के दौरान वाल्मीकि के मुख से जो श्लोक फूटता है वह धरातल का पहला श्लोक बनता है। ब्रह्मा वाल्मीकि से कहते हैं कि तुम्हारे मुख से पहला काव्य फूटा है इसलिए तुम रामायण को काल्यरूप में लिखना। तुम्हारे द्वारा प्रभु श्रीराम का वर्णन किया जाना निश्चित है। इसलिए तुम्हे ये काव्य शक्ति प्रदान की गई है।
ब्रह्मा वाल्मीकि से आगे कहते हैं तुम नारद द्वारा बताए गए रामवर्णन का काव्यरूप में लिखो। मेरे आशीर्वाद से श्रीराम का गुप्त या प्रकट वृतांत तथा सीता और समस्त देव तथा असुरों का गुप्त या चरित्र जो हो चुका है और जो होने वाला है, अज्ञात होने पर भी ज्ञात हो जाएगा। ये परम् श्रृद्धि तुम्हें प्रदान की गई है कि तुम जो लिखोगे वही सत्य हो जाएगा। अतः तुम श्रीराम चंद्र की परम पवित्र और मनोरम गाथा को श्लोकबद्ध करके लिखो। जिससे पढ़ समस्त युगों का प्राणी धर्माचरण के द्वारा भक्ति और मुक्ति पाने के साधनों में प्रवृत्त हो।
ब्रह्मा से वाल्मीकि पूछते हैं ये कार्य उन्हें क्यों सौंपा गया है तो ब्रह्मा कहते हैं तुम्ही इसके परमयोग्य हो। तुम्हारी तपस्या से माता सीता की सेवा करने का तुम्हें भी सौभाग्य प्राप्त होगा। उनके जीवन में तुम्हें योगदान देना है। वाल्मीकि पूछते हैं कि प्रभु इतनी करुणा के साथ इसकी शुरुआत क्यों। ब्रह्मा वाल्मीकि को बताते हैं कि इसका काव्य का करुणारस प्रधान है। राम और सीता के वियोग से राम औऱ सीता के जीवन में जो सुख दिखाई दे रहा है वह जल्द ही समाप्त होने वाला है। वे एक-दूसरे से विछड़ जाएंगे। और….
श्रीराम स्नान के बाद अपने कक्ष से बाहर आते हैं और शंकर पूजन करते हैं। शिवलिंग में दूध चढा़ते हैं। तभी महाराज को शिवलिंग में शिवशंकर के दर्शन होते हैं। पूजा के बाद राम औऱ सीता मां कौशल्या के पास पहुंचते हैं। मां कौशल्या विष्णु भगवन की पूजा में होती हैं। इसके बाद वह महाराज से इच्छा जाहिर करती हैं कि वह दोनों माओँ के साथ एक लंबी यात्रा पर जाना चाहती हैं (चैत्र नवरात्रों में)। श्रीराम कहते हैं कि क्यों नहीं आपका आदेश मेरे लिए सर्वप्रथम है।
इधर सुबह हुई और श्रीराम को मां सीता उठाती हैं। वह कहती हैं उठिए स्वामी सूर्यदेव आपके उठने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इधर लक्ष्मण भी उठते हैं, उर्मिला से वह संवाद में कहते हैं कि आज बहुत विलंभ हो गया है, मैं महाराज श्रीराम का प्रथम सेवक हूं, वह क्या कहेंगेकि मुझे देरी हो गई। ऐसे में उर्मिला कहती हैं चिंता न करें स्वामी अभी महाराज अपने कक्ष में ही हैं। तो लक्ष्मण पूछते हैं तुम्हें कैसे पता। इसपर उर्मिला कहती हैं कि उन्हें गुप्तचरों से पता चला। लक्ष्मण कहते हैं, तुमने भी गुप्तचर रखलिए। उर्मिला कहती हैं कि जी, लक्ष्मण कहते हैं कि गुप्तचर रखने का अधिकार सिर्फ राजा का ही होता है, तो उर्मिला कहती हैं पत्नी का भी होता है। लक्ष्मण मुसकुराते हैं औऱ कहते हैं अच्छा तो हमारे बारे में क्या कहा गुप्तचरों ने। उर्मिला कहती हैं कि आपके बारे में तो दीदी ने सब बताया कि कैसे शूर्पणखा आपसे विवाह का प्रस्ताव लाई थी, क्यों नहीं कर लिया आपने विवाह ? इसपर लक्ष्मण ठहाका लगा कर हंसते हैं।
जब तक धरती में नदियों और पर्वतों की सत्ता रहेगी, तब तक रामायण रहेगी। ब्रह्मा जी ने वाल्मीकि को बताया कि राम सीता वियोग की घड़ी आने वाली है जिसमें वह भी अहम भूमिका निभाएंगे, इस घटना में उन्हें भी जानकी (लक्ष्मी) की मदद औऱ सेवा करने का मौका मिलेगा।
गुरु वाल्मीकि क्रौंच के वध से व्यथित जब आश्रम आते हैं तो भारद्वाज से कहते हैं यह जो मेरे शोकाकुल हृदय से श्लोक फूट पड़ा है, उसमें चार चरण हैं, हर चरण में अक्षर बराबर संख्या में हैं और इनमें मानो तंत्र की लय गूंज रही है अत: यह श्लोक के अलावा और कुछ हो ही नहीं सकता।पादबद्धोक्षरसम: तन्त्रीलयसमन्वित:।शोकार्तस्य प्रवृत्ते मे श्लोको भवतु नान्यथा।।वाल्मीकि भारद्वाज से कहते हैं ये तो काव्य रूप ले लिया है और संसार का यह पहला काव्य है। ब्रह्मा प्रकट होते हैं और वाल्मीकि से कहते हैं करुणा में से काव्य का उदय हो चुका है। वाल्मीकि को ब्रह्मा का आशीर्वाद मिलता है कि तुमने काव्य रचा है, तुम आदिकवि हो, अपनी इसी श्लोक शैली में रामकथा लिखना, जो तब तक दुनिया में रहेगी, जब तक पहाड़ और नदियां रहेंगे रामनाम का प्रचार रहेगा और जबतक रामनाम का प्रचार रहेगा तुम्हारा नाम रहेगा।
रामायण में सारस जैसे एक क्रौंच पक्षी का वर्णन भी आता है। भारद्वाज मुनि और ऋषि वाल्मीकि क्रौंच पक्षी के वध के समय तमसा नदी के तट पर थे। श्रीराम के समकालीन ऋषि थे वाल्मीकि। उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद राम का राज्याभिषेक हो चुका था। वे रामायण लिखने के लिए सोच रहे थे और विचार-विमर्श कर रहे थे लेकिन उनको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। तब नारद ने राम से परिचय काराया। क्रौंच पक्षी के वध से व्यथित हो जाते हैं।
देव ऋषि बताते हैं कि आप जो इतिहास लिखेंगे अपने काव्य में उसमें आपकी भी मुख्य भूमिका होगी। तीनों लोगों के महापुरुष श्रीराम का वर्णन आप अपने काव्य में करेंगे। जैसे सारी नदियां समुद्र में आके मिलती हैं। वैसे ही श्रीराम हैं। वह क्रोध में अग्नि और क्षमा में पृथ्वी की तरह विशाल और धैर्यवान हैं। श्रीराम कथा अनुपम है कल्याणकारी है सबसुखदाई है।
नारद मुनी देवऋषि वालमीकि की कुटिया पर पधारते हैं। वालमीकि देवऋषि के चरण धोते हैं औऱ उनका सत्कार करते हैं। वालमीकि कहते हैं कि हे देव कईदिनों से मन में एक काव्य लिखने की इच्छा हो रही हैजिससे कि संसार का भला हो। हे देवऋषि संसार में ऐसा कौन वीर वान और सच बोलने वाला मनुष्य कौन है जिसे देख कर ये काव्य लिखा जा सके। ऐसे में देवऋषि बताते हैं ये इच्छा आपके मन में ब्रह्मा जी की वजह से हुई है। आपके मन में ये इच्छा उन्हीं ने पैदा की है।
ब्रह्मा से वाल्मीकि पूछते हैं ये कार्य उन्हें क्यों सौंपा गया है तो ब्रह्मा कहते हैं तुम्ही इसके परमयोग्य हो। तुम्हारी तपस्या से माता सीता की सेवा करने का तुम्हें भी सौभाग्य प्राप्त होगा। उनके जीवन में तुम्हें योगदान देना है। वाल्मीकि पूछते हैं कि प्रभु इतनी करुणा के साथ इसकी शुरुआत क्यों। ब्रह्मा वाल्मीकि को बताते हैं कि इसका काव्य का करुणारस प्रधान है। राम और सीता के वियोग से राम औऱ सीता के जीवन में जो सुख दिखाई दे रहा है वह जल्द ही समाप्त होने वाला है। वे एक-दूसरे से विछड़ जाएंगे।
ब्रह्मा वाल्मीकि से कहते हैं कि तुम्हारे मुख से पहला काव्य फूटा है इसलिए तुम रामायण को काल्यरूप में लिखना। तुम्हारे द्वारा प्रभु श्रीराम का वर्णन किया जाना निश्चित है। इसलिए तुम्हे ये काव्य शक्ति प्रदान की गई है। तुम नारद द्वारा बताए गए रामवर्णन का काव्यरूप में लिखो। मेरे आशीर्वाद से श्रीराम का गुप्त या प्रकट वृतांत तथा सीता और समस्त देव तथा असुरों का गुप्त या चरित्र जो हो चुका है और जो होने वाला है, अज्ञात होने पर भी ज्ञात हो जाएगा। ये परम् श्रृद्धि तुम्हें प्रदान की गई है कि तुम जो लिखोगे वही सत्य हो जाएगा। अतः तुम श्रीराम चंद्र की परम पवित्र और मनोरम गाथा को श्लोकबद्ध करके लिखो। जिससे पढ़ समस्त युगों का प्राणी धर्माचरण के द्वारा भक्ति और मुक्ति पाने के साधनों में प्रवृत्त हो।
गुरु वाल्मीकि क्रौंच के वध से व्यथित जब आश्रम आते हैं तो भारद्वाज से कहते हैं यह जो मेरे शोकाकुल हृदय से श्लोक फूट पड़ा है, उसमें चार चरण हैं, हर चरण में अक्षर बराबर संख्या में हैं और इनमें मानो तंत्र की लय गूंज रही है अत: यह श्लोक के अलावा और कुछ हो ही नहीं सकता।पादबद्धोक्षरसम: तन्त्रीलयसमन्वित:।शोकार्तस्य प्रवृत्ते मे श्लोको भवतु नान्यथा।।वाल्मीकि भारद्वाज से कहते हैं ये तो काव्य रूप ले लिया है और संसार का यह पहला काव्य है। ब्रह्मा प्रकट होते हैं और वाल्मीकि से कहते हैं करुणा में से काव्य का उदय हो चुका है। वाल्मीकि को ब्रह्मा का आशीर्वाद मिलता है कि तुमने काव्य रचा है, तुम आदिकवि हो, अपनी इसी श्लोक शैली में रामकथा लिखना, जो तब तक दुनिया में रहेगी, जब तक पहाड़ और नदियां रहेंगे रामनाम का प्रचार रहेगा और जबतक रामनाम का प्रचार रहेगा तुम्हारा नाम रहेगा।
नारद के रामकथा सुनाने के अगले दिन वाल्मीकि गंगा के पास बहने वाली तमसा नदी पर स्नान के लिए जाते हैं। वहां नदी के पास क्रौंच पक्षी का एक जोड़ा अपने में मग्न था, तभी व्याध ने इस जोड़े में से नर क्रौंच को अपने बाण से मार गिराता है। रोती हुई मादा क्रौंच भयानक विलाप करने लगी। इस हृदयविदारक घटना को देखकर वाल्मीकि का हृदय इतना द्रवित हुआ कि उनके मुख से अचानक श्लोक फूट पड़ा:-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शास्वती समा।
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्।।
अर्थात- निषाद। तुझे कभी भी शांति न मिले, क्योंकि तूने इस क्रौंच के जोड़े में से एक की, जो काम से मोहित हो रहा था, बिना किसी अपराध के ही हत्या कर डाली।
रामायण में सारस जैसे एक क्रौंच पक्षी का वर्णन भी आता है। भारद्वाज मुनि और ऋषि वाल्मीकि क्रौंच पक्षी के वध के समय तमसा नदी के तट पर थे। श्रीराम के समकालीन ऋषि थे वाल्मीकि। उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद राम का राज्याभिषेक हो चुका था। वे रामायण लिखने के लिए सोच रहे थे और विचार-विमर्श कर रहे थे लेकिन उनको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। तब नारद ने राम से परिचय काराया। क्रौंच पक्षी के वध से व्यथित हो जाते हैं।
ब्रह्मा ने वाल्मीकि को इतिहास लिखने का कार्य सौंपा है। देवऋषि नारद वाल्मीकि को उनके इतिहास के नायक से परिचय कराते हैं। वह रामगुणगान कर वाल्मीकि को उनके जीवन की घटनाओं से परिचय कराते हैं।
वाल्मीकि रामायण जैसे शास्त्र रचना को लेकर पूछते हैं कि ऐसा कौन है जो गुणवान, वीरवान, सच बोलने वाला और दृढ प्रतिज्ञ हो। नारद बताते हैं कि ब्रह्मा ने अपको इतिहास लिखने के लिए चुना है। और एक ऐसी घटना होने वाली है जिसके आप भी महत्वपूर्ण पात्र होंगे। वाल्मीकि पूछते हैं कि वह नायक कौन है। नारद बताते हैं कि आपके नायक इक्ष्वाकु वंश में पैदा हुए हैं। और राम के नाम से जाने जाते हैं। वह गंभीरता में समुद्र और धैर्य में हिमालय के समान हैं। 14 साल वनवास में काटने के बाद अभी राज्याभिषेक हुआ है..
राम की सभा में लव कुश राम कथा कहते हुए उस प्रसंग को दोहराते हैं और उनके जीवन में अंधकार छाने की बात कहते हैं। सीता को त्याग चुके राम के आगे दो बच्चों द्वारा इस प्रसंग के जिक्र पर राम और सभा में मौजूद सभी हैरान हो जाते हैं। वह गाते हैं और अपने परिचय में बताते हैं सीता के दो आंख के तारे, लव कुश हैं पित नाम हमारे।
राम को वनवासी बनाकर मंथरा भी 14 सालों तक एक वनवासी की तरह ही जीवन बिताए। राम जब राजा बनते हैं तो सबको कुछ ना कुछ भेंट देते हैं। लेकिन मंथरा की वहां मौजूदगी ना पाकर राम उसके बारे में पूछते हैं। कौशल्या बताती हैं कि वह भी 14 साल से अपने कक्ष से बाहर कदम नहीं रखे हैं। राम खुद मंथरा के कक्ष में पहुंचते हैं और माई कहकर बुलाते हैं। मंथरा राम को सामने पाकर खुद को दंडित करने का आग्रह करती है। वहीं राम मंथरा के मां का दर्जा देते हुए सम्मान करते हैं।