राजश्री प्रोडक्शन हमेशा से परिवार केंद्रित फिल्में बनाने के लिए मशहूर रहा है। फिल्म ‘ऊंचाई’ में भी परिवार को ही केंद्र बनाया गया है। बस एक पेंच है, इस बार परिवार कुछ अलग तरह का है। ये दोस्तों का परिवार है। यानी फिल्म का मूल संदेश ये है कि असल के दोस्त भी परिवार की तरह होते हैं।
जिन दोस्तों की कहानी फिल्म में दिखाई गई है वो हैं अमित (अमिताभ बच्चन), जावेद (बोमन ईरानी), ओम (अनुपम खेर ) और भूपेन (डैनी डेंग्जोप्पा)। सभी बुजुर्ग हैं। यानी सीनियर सिटीजन। और होता ये है कि इनमें एक भूपेन जो नेपाली मूल के हैं, उनका निधन हो जाता है और उनकी इच्छा ये थी की वो पर्वतारोहण करते हुए माउंट एवरेस्ट पर पहुंचे।
अब जब वो नहीं रहा तो उसके दोस्तों में ये राय बनती है कि अपने इस दोस्त की इच्छा पूरी की जाय और एवरेस्ट तक पहुंचा जाए। तीनों ट्रैकिंग पर निकल पड़ते हैं। पर ये इतना आसान थोड़े है। आखिर सभी बचे दोस्त उम्रदराज हड्डियाँ कमजोर हो चुकी हैं। हिमालय पर चढ़ना इतना मुश्किल है कि जवानों का दम फुल जाए। लेकिन वो कहावत है ना-हिम्मते मर्दा मददे खुदा। तो ये मर्द निकल पड़ते हैं। साथ में एक औरत माला (सारिका) भी।
एक और महिला है जो ट्रेनर या इंस्ट्रॅक्टर (परिणीति चोपड़ा) भी है। उसे पहाड़ से प्रेम है इसलिए अपने घर वालों की मर्जी के खिलाफ इस एडवेंचर में शामिल होती है। क्या इन दोस्तों की कोशिश सफल होगी? क्या ये पहाड़ पर चढ़ पाएंगे? यहां ये बताना भी जरूरी है कि ये यात्रा या ये अभियान हंसी और मजाक से भरपुर है और मजेदार संवादों से लबालब है।
कहानी कुछ इधर-उधर भी मुड़ती है और किरदारों के कुछ निजी किस्से भी हैं। जो फिल्म को गहराई भी देतें हैं। लेकिन कुल मिलाकर ये फिल्म जज्बाती मिजाज की है और कई जगहों पर रुला भी देती है। कई फिल्मों की तरह अमिताभ बच्चन इस पूरी फिल्म के केंद्र में हैं। आज भी उनकी डांसिंग का जवाब नहीं है। लेकिन अनुपम खेर और बोमन ईरानी के किरदार भी काफी दिलचस्प है।
परिणीति भी दमदार हैं। ‘ऊंचाई ‘ की सिनेमेटोग्राफी भी बहुत अच्छी है और प्रकृति या पहाड़ के कई रूप यहां मौजूद हैं। फिल्म में एक और संदेश है और वो ये कि चाहे आपकी उम्र कितनी भी क्यों न हो आपको कुछ नया और साहसिक करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।