टुनटुन (11 जुलाई, 1923- 24 नवंबर, 2003)
उमा देवी खत्री हरियाणा में पैदा हुई। कम उम्र में माता-पिता का निधन हो गया। उत्तर प्रदेश में उनके एक चाचा ने उन्हें पाला-पोसा। पढ़ाया-लिखाया इसलिए नहीं कि लड़की बिगड़ जाएगी। उमा रेडियो और नूरजहां की दीवानी थी। फिर एक दिन फिल्मों में गायिका बनने के लिए उमा देवी भाग कर मुंबई पहुंचीं। मगर किस्मत ने उन्हें गायिका उमा नहीं अभिनेत्री टुनटुन के रूप में मशहूर किया।
फिल्मों में संघर्ष करने वाले ज्यादातर कलाकारों के लिए पहला मौका बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। इसके लिए वह किसी भी तरह का अनुबंध साइन करने के लिए तैयार रहते हैं। मगर वही अनुबंध उनके कॅरियर में परेशानी का सबब बन जाता है और कुछ अच्छे मौके उनके हाथ से निकल जाते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ था उमादेवी खत्री यानी टुनटुन के साथ। मधुबाला और लता मंगेशकर को ‘महल’ (1949) के जिस गाने ‘आएगा आने वाला…’ ने पहचान दिलवाई, वह गाना पहले टुनटुन को गाना था। मगर अनुबंध के कारण वह कारदार स्टूडियो के अलावा किसी और की फिल्म में नहीं गा सकती थीं।
रेडियो सुन कर गाना सीखने वालीं उमा भी फिल्मों में गायिका बनना चाहती थीं। सो वह एक दिन घर से भाग मुंबई पहुंच गर्इं। लोगों के यहां बरतन धोए, झाड़ू लगाई। बदले में सिर्फ रहने की जगह मांगी, उनके घर कभी खाना नहीं खाया, न कोई तनख्वाह ली। फिर उमा की मुलाकात अरुण कुमार आहूजा से हुई। आहूजा मशहूर अभिनेता गोविंदा के पिता थे। उन्होंने कई संगीतकारों से उमा को मिलवाया। संगीतकार अल्लारखा ने उनसे एक गाना भी गवाया और इसके लिए 200 रुपए दिए। मगर उमा तो नौशाद के साथ गाना चाहती थीं। आखिर किसी तरह वह निर्माता-निर्देशक एआर कारदार से मिलीं, जिन्होंने उमा को अपने संगीतकार नौशाद के पास भेज दिया।
नौशाद ने जब उमा को सुना तो समझ गए कि छरहरी-सी यह लड़की गाना-वाना तो जानती नहीं है। आवाज में उतार-चढ़ाव है नहीं मगर गाने का जुनून सवार है। चूंकि नौशाद उन दिनों कई फिल्मों में काम कर रहे थे, तो उन्हें लगा एकाध फिल्म में उमा से गवा लेंगे। इस तरह उमा का कारदार स्टूडियो के साथ अनुबंध हुआ, जिसमें किसी दूसरे निर्माता की फिल्म में गाने की मनाही थी। 500 रुपए तनख्वाह मुकर्रर हुई। नौशाद ने उमा से ‘दर्द’ (1947) में ‘अफसाना लिख रही हूं…’ गवाया। यह गाना खूब लोकप्रिय हुआ। आश्चर्य की बात है कि फिल्म की दो हीरोइनों में से एक सुरैया चाहती थी कि यह गाना उन पर फिल्माया जाए। जबकि सुरैया खुद बढ़िया गायिका थीं। मगर यह गाना फिल्म की दूसरी अभिनेत्री मुनव्वर सुल्ताना पर फिल्माया गया। इसके बाद उमा को कई फिल्में मिलीं। फिल्मिस्तान जैसी कंपनी की फिल्म ‘महल’ निर्देशित कर रहे कमाल अमरोही ने ‘आएगा आने वाला गाना…’ उमा से गवाना तय किया। चूंकि उमा कारदार स्टूडियो के अनुबंध से बंधी थीं, लिहाजा यह गाना नहीं गा सकीं। सिनेमा इतिहास में यह गाना बहुत महत्त्व रखता है क्योंकि ‘आएगा आने वाला…’ गाने ने नई गायिका लता मंगेशकर और अभिनेत्री मधुबाला को फिल्मों में जमा दिया था।
बहरहाल, ‘अफसाना लिख रही हूं…’ गाने पर मोहन नामक एक युवा ऐसा लट्टू हुआ कि सब कुछ छोड़छाड़ कर मुंबई आ गया उमा से मिलने। वह उमा के घर में ही रहने लगा। दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ने लगा। नौशाद ने समझाया कि यह करियर बनाने का वक्त है, इश्क करने का नहीं। मगर इश्क के सुरूर ने उमा को सब कुछ भुला दिया और उन्होंने से शादी कर ली। नतीजा धीरे-धीरे उमा को काम मिलना बंद हो गया। जब फाकों की नौबत आई तो उमा नौशाद के पास पहुंचीं। उन्होंने कहा कि तुम्हारा गला गाने के काम का नहीं बचा। लिहाजा अभिनय करो। नौशाद की सलाह सुन कर उमा ने तुरंत कहा कि अभिनय करेंगी तो सिर्फ दिलीप कुमार के साथ। तब कारदार दिलीप कुमार को लेकर ‘बाबुल’ (1949) बना रहे थे। ‘बाबुल’ में उमा को एक किरदार मिल गया। इसी फिल्म के बाद लोगों ने उमा को टुन टुन कहना शुरू किया। उसके बाद उमा देवी खत्री हमेशा के लिए टुन टुन बन गईं और लगभग पांच सौ फिल्मों में उन्होंने अभिनय कर एक पूरी पीढ़ी को अपनी अदाओं से हंसाया।

