राजीव सक्सेना
इधर दो-तीन बरस में ओवर द टाप या ओटीटी के तमाम प्लेटफार्म अचानक तेजी से सक्रिय होते नजर आए हैं। टीवी चैनलों की बढ़ती संख्या की वजह से घटती गुणवत्ता ओटीटी माध्यम के ग्राफ में बढ़ोतरी का कारण है। विगत दो बरस में देश में कोरोना की महामारी से अस्त-व्यस्त परिस्थिति और लंबी पूर्णबंदी के कारण सिनेमा थिएटर बंद रहना भी वेब सीरीज के धड़ल्ले से निर्माण और उनके निर्बाध प्रदर्शन का कारण साबित हुए हैं।
वेब सीरीज की स्ट्रीमिंग या प्रसारण, जिन ओटीटी प्लेटफार्म पर किया जा रहा है, उनमें से अधिकतर विदेशी हैं। कुछ ओटीटी प्लेटफार्म ही हमारे यहां से हैं लेकिन उनकी भी साझेदारी बाहर के देशों की प्रसारण संस्थाओं से है, लिहाजा इनकी सामग्री अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के अनुसार रखी गई है, जिनका उद्देश्य विशुद्ध रूप से मनोरंजन, अधिक उपभोक्ता और अधिक पैसा कमाना है। जाहिर है, भारतीय दर्शकों खास कर युवा दर्शक वर्ग के लिए इन तमाम ओटीटी की सामग्री पथभ्रष्ट करने वाली ही साबित हो रही है। ज्यादातर वेब सीरीज चाहे किसी भी कथानक पर आधारित हों, घुमा-फिरा कर उनमें महानगरों की उन्मुक्त जीवन शैली को अतिरिक्त खुलेपन के साथ दिखाया जाना अनिवार्य सा बना दिया गया है।
परिपक्व किस्म के किरदार हों या किशोर या युवा हर किसी को बिंदास दिखाए जाने की होड़ सी लगी है। कारपोरेट जगत की भीतरी कार्यप्रणाली, देर रात की पार्टियों में नशे में मस्त लड़के-लड़कियां, उच्च मध्यवर्गीय घरों में बनते-बिगड़ते-टूटते-जुड़ते रिश्तों की विषमताएं, छोटे या मझोले शहरों, कस्बों में घटिया राजनीतिक प्रश्रय के साथ पनपती गुंडागर्दी, नशे के कारोबार…तमाम तरह के छोटे-बड़े अपराध…ये सब वेब सीरीज की विषयवस्तु में शुमार हैं। यानी इन प्लेटफार्म का इस्तेमाल सही दिशा में तो बिल्कुल नहीं हो रहा है।
इसकी सीधी साफ वजह इन प्लेटफार्म का किसी तरह की निगरानी के दायरे में नहीं होना है। सरकारी प्रसारण यानी दूरदर्शन हो या सिनेमा या मनोरंजन चैनल इन सबको तो कितने ही कठोर नियम कानून के दायरे में रखा गया है। इसका भी सबसे बड़ा कारण देश के सबसे बड़े कुछ औद्योगिक घरानों का इन ओटीटी प्लेटफार्म से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़ना या पूंजी निवेश किया जाना है।
वेब सीरीज की सामग्री में भाषा का निम्नस्तरीय प्रयोग भी कारोबारी जगत का एक सोचा समझा षड्यंत्र ही है। स्कूल, कालेज के विद्यार्थी हों या कारपोरेट जगत से जुड़े युवा कार्यकर्ता, तथाकथित अत्याधुनिक शैली को फैशन बतौर इस्तेमाल करने की अंधी धुन में अभद्र समझी जाने वाली, निम्नवर्ग की गलियों तक को धड़ाधड़ रोजमर्रा की बोलचाल का हिस्सा बना रहे हैं। वेब सीरीज का इस मामले में सबसे बड़ा और अहम योगदान है। हिंदी या अन्य भारतीय भाषा की फिल्मों पर अब तक भारतीय संस्कृति को नुकसान पहुंचाने का जिम्मेदार ठहरा कर आरोप लगाए जाते रहे हैं लेकिन इनसे भी दस गुना आगे बढ़कर ये वेब सीरीज भारतीय युवा को तकरीबन एक अंधेरी गली की तरफ मोड़ने में लगी हैं।
फिर भी कुछ वेबसीरीज यहां काबिल ए जिक्र हो सकती हैं जिनमें फैमिलीमेन, आर्या, बेंडिट बेंड्स, पाताललोक, मिर्जापुर, अरण्यक, महारानी, पंचायत, सेल्यूट सियाचिन, राकेट बायज, बोस : डेड आर अलाइव, गुल्लक, सुतलियां हास्टेजेस, जेएल टेन, रूद्र, अपहरण, अनदेखी, सात कदम, करनजीत कौर, बेनकाब कोड एम, अभय, ब्लडी ब्रदर्स, लव हास्टल, आश्रम, माधुरी टाकीज आदि। इनमें कथानक में कुछ खास संदेश खूबसूरती से पिरोये गए हैं जो हमारे युवाओं को गलत दिशा में जाने से रोकने के लिए प्रेरित करते हैं।
‘महारानी’ वेब शृंखला में राजनीति की तमाम विडंबनाओं को रेखांकित किया गया है। भ्रष्टाचार के कीर्तिमान स्थापित करने वाले विभिन्न दलों के शातिर नेताओं के जाल में फंसने से नौजवान खुद को बचा सकते हैं। माधुरी टाकीज में छोटे कस्बों के स्थानीय नेताओं द्वारा युवकों को पथभ्रष्ट करने के कई सारे घटिया तरीकों से बचने के लिए चेतावनी दी गई है। प्रकाश झा सरीखे सुलझे हुए फिल्मकार ने आश्रम में अध्यात्म के आकर्षण में अपनी जिंदगी दांव पर लगाने वाले युवाओं को सचेत किया है। किस तरह राजनीति और अध्यात्म की जुगलबंदी देश के नौजवानों को गुमराह कर उनके इस्तेमाल से अपना उल्लू सीधा करती है,आश्रम में इसे खुलकर दिखाया गया है।