स्मिता पाटिल ऐसी ही अभिनेत्री थीं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर हिंदी फिल्म जगत में अलग पहचान बनाई थी। वे एक राजनीतिक परिवार से थीं, उनके पिता शिवाजीराव पाटिल महाराष्ट्र सरकार में मंत्री थे। मगर स्मिता का मन कला की दुनिया में रमा हुआ था। उन्होंने ‘फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट आफ इंडिया’, पुणे से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

फिर मराठी टेलीविजन में बतौर समाचार वाचिका काम करने लगीं। उसी दौरान उनकी मुलाकात जाने-माने फिल्म निर्माता-निर्देशक श्याम बेनेगल से हुई। श्याम बेनेगल उन दिनों अपनी फिल्म ‘चरणदास चोर’ (1975) बनाने की तैयारी में थे। उन्हें स्मिता पाटिल में एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने अपनी फिल्म में स्मिता पाटिल को एक छोटी-सी भूमिका निभाने का अवसर दिया। इस तरह भारतीय सिनेमा जगत में ‘चरणदास चोर’ के जरिए श्याम बेनेगल और स्मिता पाटिल के रूप में कलात्मक फिल्मों के दो दिग्गजों का पदार्पण हुआ।

इसके बाद 1975 में श्याम बेनेगल ने फिल्म ‘निशांत’ में स्मिता को काम करने का मौका दिया। उसकी सफलता के बाद 1977 का साल स्मिता पाटिल के सिने कैरियर में अहम पड़ाव साबित हुआ। इस वर्ष उनकी ‘भूमिका’ और ‘मंथन’ जैसी सफल फिल्में प्रदर्शित हुर्इं।
सन 1977 में ही स्मिता की फिल्म ‘भूमिका’ भी प्रदर्शित हुई, जिसमें उन्होंने तीस-चालीस के दशक में मराठी रंगमंच की अभिनेत्री हंसा वाडेकर की निजी जिंदगी को रूपहले पर्दे पर बहुत अच्छी तरह साकार किया।

उसमें उनके अभिनय के लिए 1978 में ‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया। ‘मंथन’ और ‘भूमिका’ में उन्होंने कलात्मक फिल्मों के महारथी नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी, अमोल पालेकर और अमरीश पुरी जैसे कलाकारों के साथ काम किया और अपनी अदाकारी का जौहर दिखाया। फिल्म ‘भूमिका’ से शुरू हुआ स्मिता पाटिल का फिल्मी सफर ‘चक्र’, ‘निशांत’, ‘आक्रोश’, ‘गिद्ध’, ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’ और ‘मिर्च-मसाला’ जैसी फिल्मों तक जारी रहा।

स्मिता पाटिल को सत्यजित राय के साथ भी काम करने का मौका मिला। टेलीफिल्म ‘सद्गति’ उनके द्वारा अभिनीत श्रेष्ठ फिल्मों में गिनी जाती है। स्मिता पाटिल ने 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘चक्र’ में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाली महिला के किरदार को रूपहले पर्दे पर जीवंत कर दिया। इसके लिए उन्हें दूसरी बार ‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

अस्सी के दशक में स्मिता पाटिल ने व्यावसायिक सिनेमा की ओर रुख कर लिया। इस दौरान उन्हें अमिताभ बच्चन के साथ ‘नमक हलाल’ और ‘शक्ति’ जैसी फिल्मों में काम करने का अवसर मिला, जिसकी सफलता ने स्मिता पाटिल को व्यावसायिक सिनेमा में भी स्थापित कर दिया। अस्सी के दशक में स्मिता पाटिल ने व्यावसायिक सिनेमा के साथ-साथ समांतर सिनेमा में भी अपना सामंजस्य बनाए रखा।

इस दौरान उनकी ‘सुबह’, ‘बाजार’, ‘भींगी पलकें’, ‘अर्थ’, ‘अर्द्धसत्य’ और ‘मंडी’ जैसी कलात्मक फिल्में और ‘दर्द का रिश्ता’, ‘कसम पैदा करने वाले की’, ‘आखिर क्यों’, ‘गुलामी’, ‘अमृत’, ‘नजराना’ और ‘डांस-डांस’ जैसी व्यावसायिक फिल्में प्रदर्शित हुईं, जिनमें स्मिता पाटिल के अभिनय के विविध रूप देखने को मिले।

स्मिता पाटिल अपने सशक्त भावाभिनय के लिए याद की जाती हैं। अपने फिल्मी सफर में उन्होंने कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए, जिनमें मुख्य हैं- राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार- 1978, 1982, फिल्म फेयर पुरस्कार- 1978, 1981, 1982 और पद्मश्री- 1985।