Mahabharat Episode 7 April 2020:महाभारत में धीरे-धीरे कहानी अब पांडव और कौरव की शिक्षा तक पहुंच चुकी है। पांडव और कौरव द्रोणाचार्य के साथ शस्त्र पूजा करते हैं और प्रार्थना गीत गाते हैं। इस बीच भीष्म भी वहां पहुंच जाते हैं। सभी बालक अपने-अपने पसंदीदा शस्त्रों को निहारते हैं। भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वो हमेशा सद्भावना से सत्कर्म करते रहें। इधर, अश्वत्थामा अपने मामा कृपाचार्य से पूछते हैं कि क्या पिता और गुरु में कोई अंतर है, इस पर वो कहते हैं कि पुत्र पिता के साथ ही मां का भी होता है। वहीं, शिष्य पर केवल गुरु का अधिकार होता है।
अर्जुन का भोलापन और कार्य कुशलता देखकर आचार्य द्रोण खुश हो जाते हैं। द्रोण अश्वत्थामा को चक्रव्यूह के बारे में बता रहे थें कि तभी वहां अर्जुन पहुंच गया। द्रोण ने पूछा क्या तुम्हें खेलना नहीं है, इस पर अर्जुन कहने लगा कि जब गुरु शिक्षा दे रहे हों वो समय खेलने का नहीं होता है। इधर, द्रुपद की कड़वी बातों को याद करके द्रोण परेशान हो जाते हैं और आश्रम के बाहर निकलते हैं। तभी सामने अर्जुन को निशाना साधते देखते हैं और उससे पूछते हैं कि वो इस समय यहां क्या कर रहे हैं। इस पर अर्जुन ने कहा कि उसे ये करने की प्रेरणा भीम से मिली। अर्जुन कहते हैं कि जिस तरह अंधकार में भीम भैया के हाथ भोजन को ढूंढ़ लेते हैं ठीक उसी प्रकार मेरे हाथ भी निरंतर अभ्यास से अंधेरे में बाण चलाने लगेंगे।
वहीं दुर्योधन से द्रोण कहते हैं कि तुम बहादुर तो हो दुर्योधन लेकिन अपने घमंड से इसे बांध देते हो। राजपूतों को इतना घमंड शोभा नहीं देता, नम्र बनो दुर्योधन नम्र बनो। दूसरी तरफ शकुनि अपनी बहन गांधारी को कुंती और पांडवों के मोह से निकलने की सलाह देते हैं और दुर्योधन की फिक्र करने को कहते हैं। इसके जवाब में गांधारी उनसे कहती है कि भैया आप कुछ दिनों के लिए गांधार क्यों नहीं चले जाते हैं।
Highlights
तभी वहां बाकी सब बालक भी आ जाते हैं। दुर्योधन आचार्य द्रोण से कहते हैं कि वो उनके लिए मदद मांगने गए थे। इस पर द्रोण कहते हैं कि तुम बहादुर तो हो दुर्योधन लेकिन अपने घमंड से इसे बांध देते हो। राजपूतों को इतना घमंड शोभा नहीं देता, नम्र बनो दुर्योधन नम्र बनो। वहीं, भीष्म विदुर से भविष्य की चिंताओं को लेकर चर्चा कर रहे थें। विदुर पितामह से कहते हैं कि क्या ऐसे में युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करवाना उचित नहीं होगा।
द्रोणाचार्य अर्जुन की बातों से प्रसन्न हो गए और कहने लगें कि मैं तुम्हें सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी बनाउंगा। साथ ही उन्होंने अर्जुन को ब्रम्हास्त्र सिखाने का भी निर्णय लिया। कुछ समय पश्चात जब द्रोण गंगा नदी में ध्यान कर रहे थे कि तभी वहां एक मगर आ गया, पर ध्यान में मग्न द्रोण को ये पता नहीं चला। मगरमच्छ ने द्रोण पर हमला कर दिया कि तभी अर्जुन तुरंत बाण मारकर द्रोण को बचा लिया। खुश होकर द्रोण अर्जुन से कहते हैं कि तुम अपनी परीक्षा में सफल हुए, ये कोई घड़ियाल नहीं बल्कि एक यंत्र है।
द्रोण अश्वत्थामा को चक्रव्यूह के बारे में बता रहे थें कि तभी वहां अर्जुन पहुंच गया। द्रोण ने पूछा क्या तुम्हें खेलना नहीं है, इस पर अर्जुन कहने लगा कि जब गुरु शिक्षा दे रहे हों वो समय खेलने का नहीं होता है। इधर, द्रुपद की कड़वी बातों को याद करके द्रोण परेशान हो जाते हैं और आश्रम के बाहर निकलते हैं। तभी सामने अर्जुन को निशाना साधते देखते हैं और उससे पूछते हैं कि वो इस समय यहां क्या कर रहे हैं। इस पर अर्जुन ने कहा कि उसे ये करने की प्रेरणा भीम से मिली। अर्जुन कहते हैं कि जिस तरह अंधकार में भीम भैया के हाथ भोजन को ढूंढ़ लेते हैं ठीक उसी प्रकार मेरे हाथ भी निरंतर अभ्यास से अंधेरे में बाण चलाने लगेंगे।
धृतराष्ट्र के पूर्व सारथी अपने बेटे संग द्रोण के पास पहुंचे। जब द्रोण ने उनसे आने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका बेटा राधेय धनुर्विद्या सीखने की हठ किये हुए इसलिए वो द्रोण के पास आए हैं। द्रोण ने राधेय नाम का कारण पूछा तो सारथी ने बताया कि उनकी पत्नी का नाम राधा है इसी वजह से इसका नाम राधेय रखा। इस पर द्रोण कहते हैं कि इसके चेहरे पर जो तेज है वो इसके नाम से बढ़कर है, इसलिए इसका नाम कर्ण होना चाहिए।
कृपाचार्य से द्रोण कहते हैं कि वो अपनी भार्या कृपि से अभी नहीं मिल सकते क्योंकि व्यंग्य के बाण उन्हें बेहद चुभ रहे हैं। अपनी बहन के पास पहुंचकर वो उनसे इसका कारण पूछते हैं तो कृपि आचार्य द्रोण और राजा द्रुपद के दोस्ती की कहानी बताती हैं कि कैसे द्रुपद से मदद मांगने गए द्रोण वापस आए ही नहीं। उन्होंने शंका जतायी कि जरूर वहीं कुछ अनिष्ट घटा होगा।
अश्वत्थामा अपने मामा कृपाचार्य से पूछते हैं कि क्या पिता और गुरु में कोई अंतर है, इस पर वो कहते हैं कि पुत्र पिता के साथ ही मां का भी होता है। वहीं, शिष्य पर केवल गुरु का अधिकार होता है। अश्वत्थामा कहते हैं कि तब तो मैं पिता द्रोण का शिष्य ही बनकर रहूंगा। इधर, अर्जुन ने आश्रम में सबसे सटीक निशाना लगाया था। उनके निशाने से प्रसन्न द्रोण ने पूछा कि तुम्हारी पहचान क्या है वत्स? इस पर अर्जुन जवाब देते हैं कि मैं केवल आपका शिष्य हूं गुरुदेव
शस्त्रधारी ब्राम्हणों पर नहीं कर सकते विश्वास। उन्होंने कहा कि ये चाल धृतराष्ट्र के तात भीष्म ने चली है। वो आगे कहते हैं कि उन्हें तो बस दुर्योधन की चिंता है। गांधारी का सहारा लेना बंद करने की सलाह दे रहे हैं शकुनि। उनका कहना है कि गांधारी तो केवल शिव भक्ति और कुंती-कुंती करते रहती हैं। शकुनि ने कहा कि अगर दुर्योधन का राज्याभिषेक हो जाएगा तो वो निश्चिंत हो जाएंगे। इसके साथ ही, शकुनि धृतराष्ट्र को द्रोण के खिलाफ भी भड़काते हैं कि शायद अर्जुन का भोलापन द्रोण को अपनी ओर खींच ले।
पांडव और कौरव द्रोणाचार्य के साथ शस्त्र पूजा करते हैं और प्रार्थना गीत गाते हैं। इस बीच भीष्म भी वहां पहुंच जाते हैं। सभी बालक अपने-अपने पसंदीदा शस्त्रों को निहारते हैं। भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वो हमेशा सद्भावना से सत्कर्म करते रहें।
जंगल में लकड़ी इकट्ठा करने के बाद अचानक बारिश शुरू हो गई जिस कारण कृष्ण और सुदामा को वहीं पेड़ पर चढ़कर आसरा लेना पड़ा। इस बीच गुरु मां द्वारा दिए गए भोजन को सुदामा अकेले ही खा गए। इधर, इतनी तेज बारिश में कान्हा किसी मुसीबत में न फंस जाएं ये सोचकर गुरू मां विलाप कर रही थीं। सुबह जब बारिश रुकी उसके बाद कान्हा ने सुदामा से कहा अरे मित्र पोटली तो ले लो, इस पर सुदामा कहने लगे मुझे माफ कर दो कृष्ण, खाते-खाते मुझे पता ही नहीं चला कि कब चिवड़े समाप्त हो गए।
गुरू द्रोणाचार्य ने की अर्जुन की मदद, कुएं से निकाली गेंद: भीष्म पितामह को नन्हे अर्जुन बताते हैं कि आज उन्हें एक ऋषि मिले जिन्होंने उनकी कुएं में गिरी गेंट एक एक सिरकंडों़ को जो़ड़ कर निकाली। इसके बाद भीष्म पितामह को आभास होता है कि वह जरूर ही गुरू द्रोणाचार्य हैं।
गुरुदेव ने श्रीकृष्ण औऱ सुदामा को भेजा जंगल, चुन रहे लकड़ियां..: गुरु माता ने पोठली में चिवड़ा बांधके दिया है। ताकि कृष्ण और सुदामा रास्ते में भूखे न रहें।
इधर श्रीकृष्ण गुरुकुल में अपनी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। साथ में बलराम और सुधामा भी पढने उज्जैनी गए हैं। ऐसे में देवकी और वासुदेव कृष्ण विरह से पीड़ित हो रहे हैं। वह चाहते हैं कि कृष्ण उनके पास भी आएं और समय बिताएं। देवकी कहती हैं कि यशोदा ने तो कान्हा के साथ पल बिताए हैं लेकिन मेरा क्या।
धृतराष्ट्र ने की दुर्योधन की तरफदारी: गांधारी कहती हैं कि युधिष्ठिर हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनने योग्य है। लेकिन धृतराष्ट्र इसके लिए सहमती नहीं जताते।
भीष्मपितामह के पास पहुंते विधुर ने बताई सारी कहानी, दुर्योधन और भीम के बीच चल रही तना तनी : भीष्मपितामह भविष्य को लेकर काफी परेशान हैं। वह शकुनी को इसका दोषी मान रहे हैं। शकुनी ने नन्हे दुर्योधन को कहा कि वह भीम को विष खिलाए। दुर्योधन ने ये काम किया और भीम को नदी में बहा दिया। यह बताने दुर्योधन शकुनी के पास जाता है।
इधर मामा शकुनी ने दुर्योधन को कूटनीति का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया है। चौसर खेलते हुए शकुनी अपने भांजे को भड़काता है। वह कहता है कि उसका राज्य किसी और के हाथ न चला जाए। वह स्वयं हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी है। पांच पांडव से बचके रहना।
अभी तक महाभारत के एपिसोड में दिखाया गया कि सूर्यपुत्र कर्ण सारथी न बनकर धनुष चलाने की इच्छा जाहिर करते हैं। अपने पिता से वह कहते हैं कि जाति पाति और धर्म भेद कर्म को देखकर किया जाना चाहिए। वहीं जह एक ऋषि आते हैं तो कर्ण से भिक्षा मांगते हैं। करण दिल खोल कर दान करते हैं, जिससे ऋषि काफी खुश हो जाते हैं औऱ कर्ण को वरदान के रूप में कहते हैं कि उनकी हर इच्छा पूर्ण हो।