Mahabharat Episode 11 April 2020 Updates: शकुनि ने दुर्योधन को भड़काना शुरू कर दिया है। शकुनी अपने भांजे से कहता है कि तुम्हें अपने अधिकार के लिए लड़ना होगा जाओ और जाकर छीन लो अपना हक। शकुनी की बात सुनकर दुर्योधन काफी ज्यादा नाराज होता है और अपने पिता धृतराष्ट्र से नाराजगी जाहिर करता है। वहीं महाराज धृतराष्ट्र हस्तिनापुर के लिए युवराज की घोषणा करते हैं। जेष्ठ पांडू पुत्र युधिष्ठर को युवराज बनाया जाता है। महाराज धृष्टराष्ट्र की आंखे खुलती हैं और मोह माया से परे देखते हुए वह युधिष्ठर को युवराज घोषित करते हैं।
युधिष्ठर के युवराज बनते ही सबसे ज्यादा दुख दुर्योधन और उसके मामा शकुनि को होता है। दुर्योधन निराशा के सागर में डूब ही रहा होता है लेकिन उसका मामा शकुनि उसे राह दिखाते हुए कहता है कि अभी खेल खत्म नही हुआ है। अब कुछ ऐसा होगा जिससे पांडवों का खात्मा हो जाएगा और तुम युवराज बनोगे। शकुनि ने जैसा चाहा था आखिरकार वैसा ही हुआ धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से वारणाव्रत में भगवान शिव के उत्सव में शामिल होने के लिए कहा। महाराज की आज्ञा मानते हुए युधिष्ठिर ने तुरंत हामी भर दी। वहीं दुर्योधन ने युधिष्ठिर से कहा कि भ्राता श्री वहां पर आपके ठहरने की उचित व्यवस्था कर दी गई है।….

Highlights
इधर युधिष्ठिर धृतराष्ट्र से मिलने जाते हैं उधर शकुनि पांडव और कुंति से मिलने जाते हैं। युधिष्ठिर को देख ज्येष्ठ पिता और माता उनसे आने का कारण और वारणाव्रत जाने की बात पूछते हैं। युधिष्ठिर वारणाव्रत जाने की बात कहते हुए अपने साथ चारों भाईयों और माता को भी साथ ले जाने का जिक्र करते हैं। ये बात सुन दुर्योधन काफी खुश होता है और कहता है इसमें पूछने वाली क्या बात है भ्राताश्री। ऐसे में हमारे अनुजों का जी बहलेगा...
दुर्योधन को लेकर पांडव अपने-अपने संदेह जाहिर करते हैं। लेकिन युधिष्ठर भाईयों के संदेह को लेकर कहते हैं कि वह अभिमानी जरूर है लेकिन कायर नहीं। वह लड़ सकता है लेकिन षड्यंत्र नहीं कर सकता है। हालांकि सारे पांडव भाई दुर्योधन के बनाए भवन पर शक जाहिर करते हैं..
अंधेरे में आक्रमण करने बहुत सोच समझ कर करना चाहिए। शकुनि भांजे से कहता है कि ना तो पिता नहीं माता को इस षड्यंत्र के बारे में पता चलना चाहिए..
रुक्मिणी ने विद्रोह करते हुए कहा कि वह शिशुपाल के गले में वरमाला नहीं डालेंगीं। ऐसे में रुक्मिणी श्रीकृष्ण को पत्र लिखती हैं। स्वयंवर में श्रीकृष्ण बिन बुलाए पहुंचते हैं और रुक्मिणी को ले जाते हैं। विदर्भ का राजकुमार और रुक्मिणी का भाई वासुदेव कृष्ण से हारकर मौत की गुहार लगाता है लेकिन कृष्ण उसको ये कहते हुए माफ कर देते हैं कि तुम्हारा कोई अपराध नही है तुम बस अपनी बहन की रक्षा कर रहे थे।
शकुनि ने जैसा चाहा था आखिरकार वैसा ही हुआ धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से वारणाव्रत में भगवान शिव के उत्सव में शामिल होने के लिए कहा। महाराज की आज्ञा मानते हुए युधिष्ठिर ने तुरंत हामी भर दी। वहीं दुर्योधन ने युधिष्ठिर से कहा कि भ्राता श्री वहां पर आपके ठहरने की उचित व्यवस्था कर दी गई है।
विदुर के ज्ञान से धृतराष्ट्र काफी ज्यादा प्रभावित नजर आ रहे हैं। वहीं महाराज धृतराष्ट्र विदुर से पूछ रहे हैं कि क्या युधिष्ठिर को अकेले भेजना ठीक होगा या नही जिसपर विदुर कहता है कि युधिष्ठर को अकेले जाना ठीक नही ऐसे में सबको लगेगा की महाराज के दरबार में आपसी फूट है ऐसे में बेहतर होगा कि आप दुर्योधन को भी भेजने का फैसला करें।
बलराम को इस बात से काफी दुख हुआ कि पांडव उससे मुलाकात करने नही आए। हालांकि कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम को समझाते हुए उनका गुस्सा शांत कर देते हैं। आखिरकार बलराम का गुस्सा शांत होता है और वो पांडवों को आशिर्वाद देते हैं।
अंगराज कर्ण ने दुर्योधन और शकुनि का साथ देने से ये कहते हुए मना कर दिया कि वो उनका साथ नही देगा क्योंकि उसका काम युद्ध करना है पासा फेंकना नही। वहीं शकुनि कर्ण को दुर्योधन के प्रति उसकी मित्रता याद दिलाता है।
जहां एक ओर दुर्योधन अपने मामा के पीछे अंहकार की तरफ जा रहा है वहीं दूसरी तरफ युधिष्ठर ने धर्म का रास्ता चुना है।
संयज महाराज से कहता है कि पूरा नगर युधिष्ठिर के साथ है ऐेसे में उनके पास इतनी ताकत है कि अगर वो चाहें तो फिर आपके सिर से भी मुकुट उतार सकता है। संंजय की बात सुनकर महाराज काफी ज्यादा भयभीत हो जाते हैं।
विदर्भ का राजकुमार और रुक्मिणी का भाई वासुदेव कृष्ण से हारकर मौत की गुहार लगाता है लेकिन कृष्ण उसको ये कहते हुए माफ कर देते हैं कि तुम्हारा कोई अपराध नही है तुम बस अपनी बहन की रक्षा कर रहे थे।
कुलगुरू, द्रोणाचार्य और सभीजन चाहते हैं कि युधिष्टर ही राजा बनें। लेकिन महाराज धृतराष्ट्र के मन में है कि वह अपने बेटे दुर्योधन को ही राजा बनाएं। दुर्योधन राजनीति नहीं जानता। वह तो अपने अभिमान और गुरूर के लिए ये सब कर रहा है। उसके सीने में क्रोध का एक नर्क दहक उठा है, जिसे हवा दे रहा है शकुनी।
इधर महाराज धृतराष्ट्र को लग रहा है कि कहीं उनके अंधे होने का दंड उनके बेटे दुर्योधन को न मिले। उन्हें हर एक व्यक्ति कि याद आती है कि किसने दुर्योधन के राजा बनने पर सहमति जताई तो कौन चाहता है कि युधिष्ठर हस्तिनापुर की बागडोर संभाले।
धृतराष्ट्र अपने सारथी संजय से पूछता है कि नगर में माहौल कैसा है। संयज महाराज से कहता है कि पूरा नगर युधिष्ठिर के साथ है ऐेसे में उनके पास इतनी ताकत है कि अगर वो चाहें तो फिर आपके सिर से भी मुकुट उतार सकता है। संंजय की बात सुनकर महाराज काफी ज्यादा भयभीत हो जाते हैं।