Mahabharat 4rth May Episode online Updates: महाभारत के महासंग्राम का पहला दिन की समाप्ति के बाद युधिष्ठिर ने देखा कि घायलों की संख्या से ज्यादा वीरगति को प्राप्त होने वालों की संख्या है। जिसे देख कर वो चिंतित हो गया और उसने वासुदेव श्री कृष्ण से कहा कि, केशव कल के युद्ध में क्या होगा इसपर भगवान ने युधिष्ठिर को जवाब दिया कि युद्ध भूमि तो किसी ना किसी को वीरगति को प्राप्त होना ही पड़ता है। किंतु तुम चिंता मत करो युधिष्ठिर, जिनके पक्ष में सर्वश्रेष्ठ धनुरधर हो और महाबली भीम जैसा योद्धा हो उस पक्ष की जीत निश्चित है। इस विनाशकारी युद्ध के अंत में विजय आपकी ही होगी। वहीं पितामह भीष्म के पांडवों की सेना को विध्वंस करने वाले रूप को देख कर अर्जुन भयभीत हो गए उन्होंने भगवान से कहा पितामह के रहते हम इस युद्ध को कभी जीत नहीं पाएंगे।
इससे पहले भगवान श्री कृष्ण के ज्ञान के बाद जहां एक ओर अर्जुन ने गांडीव उठा लिया तो वहीं दूसरी ओर पितामह भीष्म ने युद्ध का शंखनाद कर दिया। जिसके बाद दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध चल रहा है। इस दौरान पितामह भीष्म और गुरु द्रोण पांडवों की सेना को अपने बाणों से धराशाई करते दिख रहे हैं। इस दौरान पितामह का सामना अर्जुन से हो गया। दोनों कुछ देर घमासान युद्ध चला लेकिन युधिष्ठिर ये देख कर भयभीत हो गया कि पितामह तो अर्जुन के रोके भी नहीं रुक रहे हैं। इस दौरान अभिमन्यु पितामह से युद्ध के लिए आगे बढ़ा। जिसके बाद पितामह ने अपने बाणों से उसे भी घयाल कर दिया लेकिन उसका वध ना करने की वजह से रथ दूसरी तरफ मोड़ लिया। महाभारत के इस युद्ध में भाई-भाई के लहु का प्यासा दिखाई दे रहा है।
वहीं इससे पहले भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपने अविनाशी स्वरूप के दर्शन कराए हैं। श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा मेरी शरण में आजाओ पार्थ, क्योंकि मैं ही सर्वत्र हूं। मैं अविनाशी हूं परम पिता हूं। सूर्य और चंद्र से पुरातन हूं और किसी वृक्ष पर खिली कली से भी ज्यादा नवीनतम हूं। इसके बाद भगवान ने कहा मैं सबकुछ हूं और मैं कुछ भी नहीं। भगवान ने कहा मै ही ऋषियों में वेदव्यास हूं, राजाओं में रामचंद्र हूं और मैं ही सबसे बड़ा धर्म भी, मैं ज्ञान हूं बुद्धि हूं और तेज भी मैं ही हूं। भगवान ने अर्जुन से कहा मैं तुम में हूं और दुर्योधन में भी मैं ही हूं। मैं ना नर हूं ना स्त्री हूं और ना ही नपुंसक, ये युद्ध मेरी ही मर्जी से हो रहा है। इसका निर्णय भी मेरी ही मर्जी से आएगा।
इसके बाद अर्जुन ने कहा आप तो हमारे साथ ही पले बड़े हुए हैं। तो फिर आप अविनाशी कैसे हुए। इसके बाद भगवान ने अर्जुन से कहा तुम सिर्फ शरीर देख रहे हो पार्थ, मैं आत्मा की बात कर रहा हूं। ये सब मेरी इच्छा अनुसार जी रहे हैं और मृत्यु को प्राप्त कर मुझमें ही लौट आएंगे। इसके बाद भगवान ने अर्जुन से कहा कि जब-जब अधर्म की वृद्धि होती है तो सत पुरुषों के उद्धार के लिए मैं जन्म लेता हूं। ऐसा युगों-युगों से होता आया है और आगे भी होता रहेगा। मेरी शरण में आ जाओ पार्थ तुम्हें मुक्ति का मार्ग मिल जाएगा।
महाभारत के युद्ध में गंगा पुत्र भीष्म और अर्जुन के बीच घनघोर युद्ध होने वाला है। जिसे लेकर अर्जुन ने शंखनाद किया है। इस शंखनाद को सुनकर द्रौपदी समझ गई है कि ये युद्ध जरूर अर्जुन और पितामह के बीच होने वाला है। वहीं युद्धभूमि से आ रहे अभी तक के परिणाम से द्रौपदी संतुष्ट नजर आ रही है।
पितामह भीष्म युद्धभूमि में अकेले ही कहर बरपा रहे हैं। इस दौरान अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि यदि पितामह का वध नहीं किया तो वो हमें इस युद्ध में कभी विजय नहीं होने देंगे। इसके बाद भगवान ने अर्जुन का रथ पितामह की तरफ मोड़ दिया और अर्जुन ने पितामह को शंखनाद कर के युद्ध का आहवान किया है।
महाभारत का पहले दिन का युद्ध समाप्त हो गया है। युधिष्ठिर अपने शिविर में वासुदेव श्री कृष्ण से कह रहा है कि पहले दिन घायलों से ज्यादा मरने वालों की गिनती है। इसके बाद भगवान ने उससे कहा अर्जुन और भीम जैसे योद्धा होने की वजह से आपकी विजय पक्की है। चिंता मत करिए कल सुबह यु्द्ध की प्रतिक्षा कीजिए।
दुर्योधन की मां और हस्तिनापुर के सम्राट धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी अपनी देवरानी कुंती से मिलने पहुंची हैं। इस दौरान गांधारी कुंती से राजभवन चलने को कह रही हैं। लेकिन कुंती ने जाने से मना कर दिया है। वो कह रही हैं कि मैं यहीं विदुर के घर में रहकर ही प्रत्येक दिन युद्ध के समाचार सुनती रहूंगी।
मत्स्य देश के राजा ने अपने पुत्र उत्तर के युद्ध में हिम्मत के साथ युद्ध करने वा उनके युद्ध में वीरगति को प्राप्त होेने पर विराट देश के राजा गर्व कर रहे हैं। उनका वध मगध नरेश महारथी शल्य ने किया है।
महाभारत का महासंग्राम शुरू हो चुका है। इस दौरान दुर्योधन ने अपने योद्धाओं से कहा है कि भीष्म का खास ख्याल रखा जाए। युद्ध में वो घायल ना हो जाएं क्योंकि वो एक मात्र ऐसे योद्धा हैं जो हमें इस युद्ध में विजय कराएंगे।
पितामह भीष्म और अभिमन्यु में जोरदार युद्ध हुआ। लेकिन पितामह के बाणों ने अभिमन्यु को घायल कर दिया। जिसके बाद पितामह ने अभिमन्यु से कहा मैं तुम्हारे प्राण ले नहीं सकता और तुम मुझे मार पाओगे नहीं, इस लिए मैं अपना रथ मोड़ कर दूसरी दिशा में जा रहा हूं।
अभिमन्यु पितामह के बाणों से छलनी-छलनी हो गया है। लेकिन फिर भी वो पितामह का मार्ग रोक रहा है। जिसके बाद पितामह ने अर्जुन का आहवान करते हुए कहा कि अपने पुत्र को ले जाओ मैं इसके प्राण नहीं लेना चाहता हूं।
पितामह भीष्म और अभिमन्यु में जोरदार युद्ध हुआ। लेकिन पितामह के बाणों ने अभिमन्यु को घायल कर दिया। जिसके बाद पितामह ने अभिमन्यु से कहा मैं तुम्हारे प्राण ले नहीं सकता और तुम मुझे मार पाओगे नहीं, इस लिए मैं अपना रथ मोड़ कर दूसरी दिशा में जा रहा हूं।
पितामह भीष्म और अर्जुन के बीच घनघोर युद्ध हो रहा है। इस बीच पूरी रणभूमि में दोनों ही तरफ से बाणों की घनघोर वर्षा हो रही है। अभिमन्यु लेने आया भीष्म से टक्कर।
धृतराष्ट्र के सारथी संजय को गुरु वेद व्यास ने दिव्य दृष्टि दी है। इस वजह से वो हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र को आंखो से देख कर युद्ध का पूरा लेखा जोखा सुना रहा है। महाराज ने उससे कहा निरंतर युद्ध पर दृष्टि बना कर रखो।
पितामह भीष्म ने रणभूमि में युद्ध का शंखनाद फूंक दिया है। इसके बाद दोनों ही तरफ की सेना जोरदार युद्ध करती नजर आ रही हैं। इससे पहले दुर्योधन अपने छोटे भाई युयुत्सु पर क्रोधित हो गया था। क्योंकि युयुत्सु उसका शिविर छोड़ कर धर्मराज युधिष्ठिर के शिविर में जा मिला था।
अभिमन्यु पितामह के बाणों से छलनी-छलनी हो गया है। लेकिन फिर भी वो पितामह का मार्ग रोक रहा है। जिसके बाद पितामह ने अर्जुन का आहवान करते हुए कहा कि अपने पुत्र को ले जाओ मैं इसके प्राण नहीं लेना चाहता हूं।
पितामह भीष्म और अभिमन्यु में जोरदार युद्ध हुआ। लेकिन पितामह के बाणों ने अभिमन्यु को घायल कर दिया। जिसके बाद पितामह ने अभिमन्यु से कहा मैं तुम्हारे प्राण ले नहीं सकता और तुम मुझे मार पाओगे नहीं, इस लिए मैं अपना रथ मोड़ कर दूसरी दिशा में जा रहा हूं।
पितामह भीष्म और अर्जुन के बीच घनघोर युद्ध हो रहा है। इस बीच पूरी रणभूमि में दोनों ही तरफ से बाणों की घनघोर वर्षा हो रही है। अभिमन्यु लेने आया भीष्म से टक्कर।
धृतराष्ट्र के सारथी संजय को गुरु वेद व्यास ने दिव्य दृष्टि दी है। इस वजह से वो हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र को आंखो से देख कर युद्ध का पूरा लेखा जोखा सुना रहा है। महाराज ने उससे कहा निरंतर युद्ध पर दृष्टि बना कर रखो।
पितामह भीष्म ने रणभूमि में युद्ध का शंखनाथ फूंक दिया है। इसके बाद दोनों ही तरफ की सेना जोरदार युद्ध करती नजर आ रही हैं। इससे पहले दुर्योधन अपने छोटे भाई युयुत्सु पर क्रोधित हो गया था। क्योंकि युयुत्सु उसका शिविर छोड़ कर धर्मराज युधिष्ठिर के शिविर में जा मिला था।
दुर्योधन का सौतेला छोटा भाई युयुत्सु उसके शिविर को छोड़कर धर्म के मार्ग पर चलने के लिए युधिष्ठिर के शिविर में शामिल हो गया।
य़ुधिष्ठिर कौरवों के शिविर में आया और युद्ध से पहले उसने पितामह भीष्म गुरु द्रोण सहित कुलगुरु कृपाचार्य का आर्शावाद लिया। जिसके बाद सभी ने उसे विजय होने का आर्शीवाद दिया। ये देख कर दुर्योधन सब गुरुओं सहित पितामह भीष्म पर क्रोधित हो उठा।
पितामह भीष्म के पास युधिष्ठिर पहुंचे हैं। उन्होंने पितामह भीष्म से कहा कि मैं आपसे इस युद्ध की अनुिमति लेने आए हैं। इस दौरान पितामह ने युधिष्ठि से कहा कि मैं इस वक्त आर्शीवाद में सिर्फ घाव दे सकता हूं।
भगवान श्री कृष्ण के गीता के उपदेश सुनने के बाद तथा उनका अविनाशी रूप देखने के बाद, अर्जुन ने उनकी बात मानके हुए गांडीव को उठा लिया है। इसकी खबर जब संजय ने धृतराष्ट्र को दी तो वो चिंतित होकर कह रहा है, कि संजय ये देख कर मुझे बताओ की अर्जुन पहला बाण किस पर चला रहा है।
भगवान के विराट रूप के दर्शन करने के पश्चात और उनसे गीता के उपदेश सुनने के बाद अर्जुन ने युद्ध करने का निर्णय लिया है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा मेरी शरण में आजाओ पार्थ गांडीव उठाओ और युद्ध करो। इसके बाद अर्जुन ने भगवान के चरण स्पर्श करके अपना धनुष उठा लिया है।
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा सारे रिश्तों और दूसरे मार्गों को त्यागों पार्थ और मेरी शरण में आजाओ। जो मेरी शरण में आता है मैं उसे सभी पापों से मुक्त करके अपनी भक्ति प्रदान करता हूं। वंदना करनी है तो मेरी करो, ध्यान लगाना है तो मुझमें लगाओ।