Mahabharat 18th April Episode Updates: महाभारत इतिहास का एक ऐसा युद्ध है जो ना उससे पहले कभी हुआ ना उसके बाद कभी होगा। भयंकर विध्वंस की इस गाथा में अंत में न्याय और सच्चाई की जीत हुई थी। लेकिन महाभारत की कहानी इतनी भी सहज और सरल नहीं थी जिन्हें कुछ शब्दों में बयां किया जा सके। इस वीरगाथा में एक वीर है तो दूसरा परमवीर है। भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के राज्यअभिषेक से पहले शिशुपाल का वध कर दिया जिसके उपरांत युधिष्ठिर का राज तिलक हुआ।
वहीं ज्ञान और राजनीति के ज्ञाता और पांडवों के काका विदुर ने राज तिलक के बाद धर्मराज युधिष्ठिर को राजनीति और शासन को कैसे करें इसका ज्ञान दिया। उन्होंने कहा जो राजा दूसरे के धन संपत्ति और स्त्री पर अपनी नजर रखता है वो सदैव ही असंतुष्ट रहता है और उसका नाश हो जाता है। विदुर की इस बात को सुनकर अहंकारी दुर्योधन उनकी तरफ हीन भावना से देखना शुरू कर देता है।
द्रौपदी दुर्योधन का अपमान करती है जिसके बाद दुर्योधन अपने अपमान से बहुत ज्यादा दुखी है और ठान लेता है कि वो इसका बदला पांडवों और द्रौपदी से लेकर ही रहेगा। जिसपर कर्ण, दुर्योधन को युद्ध करने की सलाह देते हैं लेकिन मामा शकुनि चाल चलते हुए अपने भांजे दुर्योधन से कहता है कि तुम्हारे अपमान का बदला मैं लेकर ही रहूंगा और पांडवों को आमंत्रित करूंगा चौसे के खेल के लिए युधिष्ठिर वैसे भी मुझे हराकर संतुष्ट हो चुका है कि मेरे पासे मेरे हिसाब से नही चलते लेकिन मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अगर इस बार मैं हारा तो वनवास ले लूंगा।
शकुनि ने धृतराष्ट्र को भड़काते हुए कहा कि दुर्योधन को इन्द्रप्रस्थ की कामना है। जिसपर धृतराष्ट्र उससे कहता है कि पांडव काफी शक्तिशाली हैं और ऐसा कर पाना संभव नही जिसपर शकुनि उनसे कहता है कि आप इन्द्रप्रस्थ तो नही दे सकते लेकिन अपने पुत्र दुर्योधन की बात सुनकर उसका मन बहलाव जरूर कर सकते हैैं। शकुनि धृतराष्ट्र से हस्तिनापुर आने के आमंत्रण देने के लिए कहता है।
दुर्योधन अपने अपमान से बहुत ज्यादा दुखी है और उसने ठान ली है कि वो इसका बदला पांडवों से लेकर ही रहेगा। जिसपर कर्ण, दुर्योधन से युद्ध करने की सलाह देते हैं लेकिन मामा शकुनि चाल चलते हुए अपने भांजे दुर्योधन से कहता है कि तुम्हारे अपमान का बदला मैं लेकर ही रहूंगा और पांडवों को आमंत्रित करूंगा चौसे के खेल के लिए युधिष्ठिर वैसे भी मुझे हराकर संतुष्ट हो चुका है कि मेरे पासे मेरे हिसाब से नही चलते लेकिन मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अगर इस बार मैं हारा तो वनवास ले लूंगा।
दुर्योधन इन्द्रप्रस्थ का भ्रमण कर रहा होता है जहां पर हर चीज माया की बनी होती है लेकिन वासत्विक प्रतीत हो रही होती है। दुर्योधन इसी माया के जाल में फंसकर पानी में गिर पड़ता है। दुर्योधन को पानी में गिरा देख द्रौपदी जोर जोर से हंसने लगती हैं और दुर्योधन का मजाक उड़ाते हुए कहती हैं कि अंधे का पुत्र अंधा।
शकुनि जान बूझकर जुएं का खेल सम्राट युधिष्ठिर से हार गया ताकि उसको इस बात का यकीन हो जाए कि मामा शकुनि के पासे उनके इशारे पर काम नही करते हैंं। आखिरकार ऐसा ही होता है और पांडवों को इस बात का यकीन हो जाता है कि शकुनि के पासे उसका कहा नही सुनते बल्कि जुआं केवल भाग्य का खेल है।
भगवान कृष्ण अपनी बहन से विदा लेकर भाई बलराम संग अपने धाम को निकल चुके हैं वहीं दूसरी तरफ सब लोगों के जाने के बावजूद दुर्योधन और मामा शकुनि वहीं पर रुक हैं।
कृष्ण ने धृतराष्ट्र और भीष्म को समझाते हुए कहा कि मुझे ऐसा लग रहा है कि कुछ अनहोनी होने वाली है। आप दोनों आने वाली अनहोनी के लिए सचेत रहें। वहीं कृष्ण द्वारिका के लिए प्रस्थान कर रहे हैं। पांडव लगातार कृष्ण को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
दुर्योधन को इस बात का डर सता रहा है कि कहीं पांडवों द्वारा हस्तिनापुर पर कब्जा न कर लिया जाए। वहीं कर्ण दुर्योधन की बात से सहमत नही है वहीं दूसरी ओर मामा शकुनि उसे कुछ देर शांत रहने की सलाह दे रहा है।
कर्ण को इस बात का अफसोस है कि महारथियों से भरी सभा में सबके सामने शिशुपाल का वध कर दिया गया लेकिन किसी ने कुछ नही बोला जिसपर मामा शकुनि उससे कहते हैं कि ये सब उस कृष्ण की वजह से हो रहा है।
जहां एक ओर दुर्योधन की आखों में लालच साफ नजर आ रही है वो युधिष्ठिर के यज्ञ से खुश नही है उसके अलावा बाकी राजाओं की आखों में भी कोई न कोई सपना है लेकिन अंगराज कर्ण की आखें एकदम खाली हैं। शायद वो किसी सपने को तलाश कर रहे हैं।
महाभारत की कहानी इतनी भी सहज और सरल नहीं थी जिन्हें कुछ शब्दों में बयां किया जा सके। इस वीरगाथा में एक वीर है तो दूसरा परमवीर है। भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के राज्यअभिषेक से पहले शिशुपाल का वध कर दिया जिसके उपरांत युधिष्ठिर का राज तिलक हुआ।
ज्ञान और राजनीति के ज्ञाता और पांडवों के काका विदुर ने राज तिलक के बाद धर्मराज युधिष्ठिर को राजनीति और शासन का करने का ज्ञान दिया। उन्होंने कहा जो राजा दूसरे के धन संपत्ति और स्त्री पर अपनी नजर रखता है वो सदैव ही असंतुष्ट रहता है और उसका नाश हो जाता है। विदुर की इस बात को सुनकर अहंकारी दुर्योधन उनकी तरफ हीन भावना से देखना शुरू कर देता है।
महाभारत के रचयता महर्षि वेद व्यास ने युधिष्ठिर के राज्यअभिषेक के बाद पांडवों और कौरवों को एक साथ खड़ा देख कहा ये चित्र बेहद दार्शिनिक है, पता नहीं फिर एक साथ आप सब कहां और किस हालाम में मिलेंगे। जिसके बाद भयभीत होते हुए युधिष्ठिर ने पूछा आप ऐसे क्यों कह रहे हैं ऋषिवर, जिसके बाद वेद व्यास ने कहा ये मत पूछो बस आगे का वक्त देखो।
इंदप्रस्त में पहुंचे तमाम राजाओं और परमवीरों की सभा में युधिष्ठिर का राज्यअभिषेक हुआ है। वहीं इससे पहले भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन से शिशुपाल का वध कर दिया था।
भरी राजसभा में भगवान कृष्ण को गालियों से संबोधित करने वाले शिशुपाल के सौ अपराध क्षमा करने के बाद आखिरकार द्वारिकाधीश भगवान ने उसका अंत अपने सुदर्शन से कर ही दिया।
राजसभा में भगवान श्री कृष्ण का घोर अपमान कर रहा है शिशुपाल, इस बीच उसने पितामाह भीष्म से लेकर पांडवों को भी अपशब्द बोले हैं।
पितामाह भीष्म ने कहा युधिष्ठिर से कहा कि आए हुए अतिथियों की पूजा करके उनका मान बढ़ाओ। इस पर युधिष्ठिर ने कहा पहले किसकी पूजा करूं, इस पर पितामाह ने कहा जहां वासुदेव श्री कृष्ण विराजे हों वहां किसी और की पूजा से शुरुआत हो ही नहीं सकती। इस लिए सबसे पहले वासुदेव की ही पूजा करके उनका सत्कार करो।
इंदप्रस्त में पांडवों का मान बढ़ाने समग्र भारतवर्ष के एक से बढ़कर एक योद्धा और राजा पहुंचे हैं। इस दौरान महाराज द्रुपद, दुर्योधन, कर्ण, सिंधु नरेश जैयदरत,गांधार नरेश शकुनी, और हस्तिनापुर के नरेश धृतराष्ट्र भी पहुंचे हैं।
भगवान कृष्ण सहित पितामाह भीष्म के सामने शुरू हुआ पांडवों का राजशुई यज्ञ। युधिष्ठिर कर रहे पूजा।
कृष्ण की बुआ को इस बात का आभास हो गया है कि शिशुपाल का वध कृष्ण के हाथों होगा। कृष्ण की बुआ उससे कह रही हैं कि तुम मेरे इकलौते पुत्र और अपने भाई को नही मार सकते मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं कि तुम ऐसा मत करो। कृष्ण की बुआ उनसे कहती हैं कि तुम मुझे वचन दो कि तुम मेरे पुत्र के हर अपराध पर जब भी गुस्सा होगे तो सामने मेरा चेहरे का स्मरण करते हुए उसे क्षमा कर देना जिसपर वासुदेव कृष्ण कहते हैं कि बुआ मैं ये तो नहीं कर सकता लेकिन तुम्हारे पुत्र के 100 अपराधों को अवश्य क्षमा करूंगा जो अपराध मृत्युदंड के बराबर होंगे।
शिशुपाल के रुप में उसकी माता ने राक्षस को जन्म दिया है। शिशुपाल के जन्म से उसकी माता बहुत ज्यादा दुखी हैं। जिसपर एक आकाशवाणी होती है कि शिशुपाल को मत फेंको ये बच्चा परमवीर बनेगा।