Mahabharat 13th May Episode online Updates: बाणों की शैय्य पर लेटे पितामह भीष्म को ये पता चल चुका है कि युधिष्ठिर हस्तिनापुर के नए सम्राट बन गए हैं। जिसके बाद उन्होंने अपनी मां गंगा से कहा कि वो अपने प्राण त्यागना चाहते हैं, लेकिन एक बार वो वासुदेव श्री कृष्ण के अंतिम बार दर्शन करना चाहते हैं। इसके बाद पांडवों के साथ वासुदेव गंगा पुत्र के पास पहुंच जाते हैं। जिसके बाद पितामह भीष्म ने भगवान श्री कृष्ण के हाथों से अपने माथे पर अपनी मातृभूमि हस्तिनापुर की मिट्टी का तिलक लगवाया और उसके उपरांत ओम का उच्चारण करते हुए अपने प्राणों को त्याग दिया। उनके प्राण त्यागने के बाद पांडव फूट-फूट कर रोते दिखे। पितामह के शव पर देवताओं ने आसमान से फूल बरसाए हैं। भारत वर्ष के सबसे महान योद्धा के अंत के साथ ही महाभारत की महान गाथा का भी समापन हो गया है।

वहीं इससे पहले श्रीकृष्ण कहते हैं कि आप युधिष्ठिर को अपनी अंतिम शिक्षा देकर उसे धन्य करें पितामह। भीष्म कहते हैं कि आपके होते मैं शिक्षा देने वाला कौन? तब श्रीकृष्ण कहते हैं मेरे पास ज्ञान है लेकिन आपके पास अनुभव। इन्हें अनुभव देने वाला कोई नहीं हैं पितामह।फिर युधिष्ठि को भीष्म पितामह राजधर्म की, राजनीति आदि की शिक्षा देते हैं। वहीं इसके बाद भीष्म अर्जुन को धर्म का ज्ञान देते हैं वो कहते हैं, कि सारी उम्र मैं जिसे धर्म समझता आया वो सिर्फ मेरी प्रतिज्ञा थी। आज मेरी ही वजह से ही हस्तिनापुर की ये हालत हो गई है। तुम कभी अपने देश से बढ़कर किसी भी प्रतिज्ञा को मत समझना वरना तुम भी किसी दिन मेरी तरह बाणों की शैय्या पर घायल पड़े होगे। कोई भी प्रतिज्ञा या वचन देने से पहले सौ बार सोचना प्रिय अर्जुन, इसके बाद अर्जुन रोते हुए कहते हैं कि पितामह मैं आपको जाने नहीं दूंगा।

अंतिम भाग में  दिखाया गया था कि महाभारत के युद्ध में विजय होने के उपरांत धृतराष्ट्र ने राज सिंहासन त्याग दिया। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण के हाथों युधिष्ठिर का राज्यअभिषेक होता है। इस मौके पर द्रौपदी के साथ युधिष्ठिर के चारों पांडव भाई भी मौजूद रहे। इससे पहले पांडव हस्तिनापुर में पहुंचे थे इस दौरान कुंती, पांडु पुत्रों को गांधारी से मिलवाने ले जाती है। जिसके बाद वहां धृतराष्ट्र भी आ जाता है और युधिष्ठिर से कहता है, कि अब तुम राज्य करो और मैं वन की ओर प्रस्थान करूंगा। इसके बाद अर्जुन उनसे ना जाने की बात कहता है। लेकिन उसकी मां कुंती अर्जुन से कहती हैं ज्येष्ठ को जाना ही पड़ेगा, तब ही अतीत को पीछे छोड़ वर्तमान आगे बढ़ेगा। इसके बाद गांधारी और कुंती भी धृतराष्ट्र के साथ वन जाने की तैयारी करते हैं।

धृतराष्ट्र, कुंती, गांधारी, विदुर सभी वन में रहने के लिए जा रहे हैं। पांडव पुत्र उन्हें प्रणाम करने के लिए आए हैं लेकिन द्रौपदी नहीं आईं। धृतराष्ट्र को द्रौपदी का हुआ वह अपमान याद आता है जो दुशासन और दुर्योधन ने किया था। लेकिन उन्होंने रोका नहीं था। धृतराष्ट्र, गांधारी से कहते हैं कि पटरानी द्रौपदी को ले आओ। द्रौपदी गांधारी को जाने से रोकती हैं और वह रो रही हैं। द्रौपदी कहती हैं कि आप इस जगह की आत्मा हैं। गांधारी कहती हैं कि इस आत्मा को कभी न कभी जाना ही होता है। जो हुआ उसे भूल जाओ। आओ तुम्हारे ज्येष्ठ पिताश्री तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। द्रौपदी, धृतराष्ट्र का आशीर्वाद लेती हैं और कहती हैं कि मुझे क्षमा कर दें। धृतराष्ट्र कहते हैं कि क्षमा तो मुझे मांगनी चाहिए पुत्री। तुम्हारी कोख उजड़ी, तुम्हारा भरी सभा में अपमान हुआ और मैंने कुछ नहीं कहा। द्रौपदी, धृतराष्ट्र को जंगल में जाने से रोक रही हैं।

 

 

Live Blog

20:40 (IST)13 May 2020
पितामह के स्वर्ग सिधारने पर देवताओं ने बरसाए फूल

बाणों की शैय्य पर लेटे पितामह भीष्म को ये पता चल चुका है कि युधिष्ठिर हस्तिनापुर के नए सम्राट बन गए हैं। जिसके बाद उन्होंने अपनी मां गंगा से कहा कि वो अपने प्राण त्यागना चाहते हैं, लेकिन एक बार वो वासुदेव श्री कृष्ण के अंतिम बार दर्शन करना चाहते हैं। इसके बाद पांडवों के साथ वासुदेव गंगा पुत्र के पास पहुंच जाते हैं। जिसके बाद पितामह भीष्म ने भगवान श्री कृष्ण के हाथों से अपने माथे पर अपनी मातृभूमि हस्तिनापुर की मिट्टी का तिलक लगवाया और उसके उपरांत ओम का उच्चारण करते हुए अपने प्राणों को त्याग दिया। उनके प्राण त्यागने के बाद पांडव फूट-फूट कर रोते दिखे। पितामह के शव पर देवताओं ने आसमान से फूल बरसाए हैं। भारत वर्ष के सबसे महान योद्धा के अंत के साथ ही महाभारत की महान गाथा का भी समापन हो गया है।

19:54 (IST)13 May 2020
पितामाह भीष्म ने त्यागे प्राण

पितामह भीष्म ने भगवान श्री कृष्ण के हाथों से अपने माथे पर अपनी मातृभूमि हस्तिनापुर की मिट्टी का तिलक लगवाया और उसके उपरांत अपने प्राणों को त्याग दिया। उनके प्राण त्यागने के बाद पांडव फूट-फूट कर रोते दिख रहे हैं। पितामह के शव पर देवताओ ने आसमान से फूल बरसाए हैं। इस वक्त भारतवर्ष का सबसे बड़ा योद्धा मातृभूमि पर धराशायी पड़ा हुआ है।

19:44 (IST)13 May 2020
वासुदेव के दर्शन के बाद पितामह ने दिया अर्जुन को ज्ञान

बाणों की शैय्य पर लेटे पितामह भीष्म को ये पता चल चुका है कि युधिष्ठिर हस्तिनापुर के नए सम्राट बन गए हैं। जिसके बाद उन्होंने अपनी मां गंगा से कहा कि वो अपने प्राण त्यागना चाहते हैं, लेकिन एक बार वो वासुदेव श्री कृष्ण के अंतिम बार दर्शन करना चाहते हैं। इसके बाद पांडवों के साथ वासुदेव गंगा पुत्र के पास पहुंच जाते हैं। जिसके बाद गंगा पुत्र भगवान के दर्शन के उपरांत धरती छोड़ने की इच्छा जताते हैं। लेकिन श्री कृष्ण पितामह से कहते हैं कि जाने से पहले युधिष्ठिर को राजनीति का ज्ञान दे दीजिए। इसके बाद पितामह ने युधिष्ठिर को कुछ ज्ञान की बात बताई। उसके बाद उन्होंने अर्जुन को बताया कि मेरी तरह कभी कोई ऐसी प्रतिज्ञा मत लेना जिसे तुम्हारे राज्य का सर्वनाश हो जाए। मैंने हस्तिनापुर से ज्यादा हस्तिनापुर के राज्य सिंहासन के लिए अपना दायित्व निभाया। जिसके परिणाम स्वरूप आज ये दिन देखने को मिल रहा है। मैं हस्तिनापुर का दोषी हूं। मैं द्रौपदी का दोषी हूं और मेरी वजह से ही ये युद्ध हुआ यदि मैं चाहता तो ये युद्ध रोक सकता था।

19:34 (IST)13 May 2020
गांधारी ने किया नई पटरानी का स्वागत, द्रौपदी ने धृतराष्ट्र को वन जाने से रोका

धृतराष्ट्र, कुंती, गांधारी, विदुर सभी वन में रहने के लिए जा रहे हैं। पांडव पुत्र उन्हें प्रणाम करने के लिए आए हैं लेकिन द्रौपदी नहीं आईं। धृतराष्ट्र को द्रौपदी को हुआ वह अपमान याद आ रहा है जो दुशासन और दुर्योधन ने किया था। और उन्होंने रोका नहीं था। धृतराष्ट्र, गांधारी को कहते हैं कि पटरानी द्रौपदी को ले आओ। द्रौपदी गांधारी को जाने से रोकती हैं और वह रो रही हैं। द्रौपदी कहती हैं कि आप इस जगह की आत्मा हैं। गांधारी कहती हैं कि इस आत्मा को कभी न कभी जाना ही होता है। जो हुआ उसे भूल जाओ। आओ तुम्हारे ज्येष्ठ पिताश्री तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। द्रौपदी, धृतराष्ट्र का आशीर्वाद लेती हैं और कहती हैं कि मुझे क्षमा कर दें। धृतराष्ट्र कहते हैं कि क्षमा तो मुझे मांगनी चाहिए पुत्री। तुम्हारी कोख उजड़ी, तुम्हारा भरी सभा में अपमान हुआ और मैंने कुछ नहीं कहा। द्रौपदी, धृतराष्ट्र को जंगल में जाने से रोक रही हैं। 

19:26 (IST)13 May 2020
युधिष्ठिर ने राजा बनते ही नियुक्त किए मंत्री

युधिष्ठिर का भरी राज्य सभा में सबके सामने राज्यअभिषेक हुआ है। इसके बाद युधिष्ठिर ने अपने चारों अनुज भाइयों सहित महात्मा विदुर को उनके कार्य सौंप दिए। युधिष्ठिर ने भीम को युवराज घोषित किया अर्जुन को बाहरी सीमाओं का रक्षक बनाया नकुल और सहदेव को अपना अंगरक्षक बनाया और विदुर को हस्तिनापुर का प्रधान नियुक्त किया। इसेक साथ ही युधिष्ठिर ने कहा कि अव वक्त आ गया है अतीत को भूल कर वर्तमान में जीने का। लेकिन गुरुद्रोण, पितामह भीष्म और अंगराद कर्ण का सिंहासन हमेशा खाली रहेगा क्योंकि वो इस युग के महान वय्कितित्व के स्वामी थे।

19:17 (IST)13 May 2020
युधिष्ठिर का हुआ राज्यअभिषेक

महाभारत के युद्ध में विजय होने के उपरांत धृतराष्ट्र ने राज सिंहासन त्याग दिया है। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण के हाथों युधिष्ठिर का राज्यअभिषेक हो रहा है। इस मौके पर द्रौपदी के साथ युधिष्ठिर के चारो पांडव भाई भी मौजूद हैं।

19:14 (IST)13 May 2020
धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से वन जाने की इच्छा जताई

महाभारत के महासंग्राम के बाद पांडव हस्तिनापुर में पहुंच चुके हैं। इस दौरान कुंती पांडु पुत्रों को गांधारी से मिलवाने ले जाती है। जिसके बाद वहां धृतराष्ट्र भी आ जाता है और युधिष्ठिर से कहता है कि अब तुम राज्य करो और मैं वन की ओर प्रस्थान करूंगा। इसके बाद अर्जुन उनसे ना जाने की बात कहता है। लेकिन उसकी मां कुंती अर्जुन से कहती हैं ज्येष्ठ को जाना ही पड़ेगा, तब ही अतीत को पीछे छोड़ वर्तमान आगे बढ़ेगा। इसके बाद गांधारी और कुंती भी धृतराष्ट्र के साथ वन जाने की बात कहते हैं। 

19:02 (IST)13 May 2020
धृतराष्ट्र ने की भीम को मारने की कोशिश

पांडव धृतराष्ट्र से आर्शीवाद लेने हस्तिनापुर पहुंचे हैं। इस दौरान वो युधिष्ठिर से कहता है कि एक एक कर के सभी पुत्र मेरा आर्शीवाद प्राप्त करो। जिसके बाद जब भीम उसके चरण स्पार्श करने जाता है तो वो उसे गले से लगने की बात कहता है। किंतु भगवान श्री कृष्ण, भीम को रोक देते हैं और भीम की जगह पुतले को आगे करवा देते हैं। जैसे ही भीम धृताराष्ट्र को गले लगाने के लिए पुतला आगे करता है। धृतराष्ट्र से अपने बाहुबल से कुचल देता है। 

13:02 (IST)13 May 2020
पांडवों को श्राप देने जा रही गांधारी को वेदव्यास ने रोका

महाभारत के युद्ध में पांडवों ने कौरवों की सेना पर विजय प्राप्त कर ली है। इस दौरान गांधारी शोक में डूबी है और उससे मिलने ऋषि वेदव्यास पहुंचे हैं। इस दौरान उन्होंने गांधारी से कहा कि जो हुआ है, उसका जिम्मेदार दुर्योधन स्वयं है। इसके लिए तुम पांडु पुत्रों को श्राप नहीं दे सकती हो। इसके बाद गांधारी ने कहा ऋषिवर मेरे पुत्रों को और हस्तिनापुर के सभी योद्धाओं को छल से मारा गया है क्या वो ठीक था। इस बात का जवाब देते हुए ऋषि वेदव्यास ने कहा कि जो हुआ वो अनिवार्य था। यदि इसके बाद भी तुम्हें लगता है कि पांडु पुत्रों को श्राप देना चाहिए तो दे सकती हो। वो इसे भी आर्शीवाद मानकर ग्रहण कर लेंगे।

12:52 (IST)13 May 2020
भगवान ने धृतराष्ट्र से कहा मुझे पता थी आपकी मंशा

जब धृतराष्ट्र ने पुतले को अपने बाहुबल से दबा कर तोड़ दिया तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने रोते धृतराष्ट्र से कहा कि मैं जानता था अपने पुत्रों की मृत्यु पर आप पांडवों से कितने नाराज है। इस लिए मैंने भीम की जगह पुतला आगे कर दिया था। इसके बाद भीम कहते हैं कि ज्येष्ठ पिताश्री यदि आपका क्रोध अभी भी शांत ना हुआ हो तो मैं सामने आ जाता हूं। जिसके बाद धृतराष्ट्र कहता है मुझे क्षमा कर दो पुत्र मैंने क्रोध वश ये सब किया था।

12:49 (IST)13 May 2020
धृतराष्ट्र ने भीम को दबा के मारने की साजिश

पांडव धृतराष्ट्र से आर्शीवाद लेने हस्तिनापुर पहुंचे हैं। इस दौरान वो युधिष्ठिर से कहता है कि एक एक कर के सभी पुत्र मेरा आर्शीवाद प्राप्त करो। जिसके बाद जब भीम उसके चरण स्पार्श करने जाता है तो वो उसे गले से लगने की बात कहता है। किंतु भगवान श्री कृष्ण, भीम को रोक देते हैं और भीम की जगह पुतले को आगे करवा देते हैं। जैसे ही भीम धृताराष्ट्र को गले लगाने के लिए पुतला आगे करता है। धृतराष्ट्र से अपने बाहुबल से कुचल देता है। 

12:36 (IST)13 May 2020
धृतराष्ट्र से आर्शीवाद लेने पहुंचे पांडव

धृतराष्ट्र से आर्शीवाद लेने पांडव पहुंचे हैं। इस दौरान धृतराष्ट्र भगवान कृष्ण पर धृतराष्ट्र क्रोधित होते दिख रहे हैं। क्योंकि भगवान बार-बार धृतराष्ट्र को महाराज कह रहे हैं। धृतराष्ट्र कह रहा है, मुझे बार बार महाराज मत कहो, क्योंकि अब मैं महाराज नहीं हूं।

12:26 (IST)13 May 2020
विदुर ने धृतराष्ट्र से कहा पांडवों का आर्शीवाद देकर वन की ओर प्रस्थान कीजिए

विदुर और धृतराष्ट्र महाभारत के महासंग्राम के बाद वार्ताालाब कर रहे हैं। इस दौरान विदुर ने अपनी भीगी पलकों से धृतराष्ट्र से कहा कि विजय पांडु पुत्र हस्तिनापुर में पधार चुके हैं। मेरा अनुरोध है कि आप पांडवों को आर्शीवाद दीजिए और वन की ओर प्रस्थान कीजिए। आप हस्तिनापुर का अतीत हैं और युधिष्ठिर वर्तमान। इसलिए वर्तमान को क्षत्रीय की तरह स्वीकार कर अपने कर्मो का फल भोगने वन में चले जाइए आपके साथ राज माता भी जाने के लिए तैयार हैं।

12:17 (IST)13 May 2020
हस्तिनापुर पहुंचे विदुर ने धृतराष्ट्र को बताया दोषी

आज हस्तिनापुर का एक एक वीर योद्धा वीरगति को प्राप्त हो चुका है। इस दौरान युद्ध से पहले रामहल को छोड़कर जाने वाले विदुर एक बार फिर हस्तिनापुर धृतराष्ट्र से मिलने आए हैं। इस दौरान अपने पुत्र दुर्योधन की मृत्यु से शोक में डूबा धृतराष्ट्र कहता है कि सबकुछ खत्म हो गया। मेरे पुत्र दुर्योधन को भीम ने मार दिया। इस बात पर थोड़ा शोक प्रकट कर लो विदुर, लेकिन महात्मा विदुर महाभारत के युद्ध का दोषी धृतराष्ट्र को ही ठहरा देते हैं। वो कहते हैं कि आज जो इस राज्य का हाल हुआ है उसके लिए आप जिम्मेदार हैं महाराज, पांडवों ने तो धर्म के मार्ग पर चलते हुए युद्ध किया है। किंतु इस युद्ध में आप राजा की तरह निर्णय नहीं ले पाए, बल्कि आपने सिर्फ एक पिता की तरह सभी पहलुओं पर विचार किया। जिसका परिणाण इस युद्ध का नतीजा आपके सामने है।

12:03 (IST)13 May 2020
अश्वत्थामा ने उत्तरा की गर्भ में छोड़ा ब्रह्मास्त्र

अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा था, इसके बाद अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया था। जिसे ऋषि वेदव्यास ने रोक लिया। इसके बाद उन्होंने श्रृष्टि को बचाने के लिए दोनों का ब्रह्मास्त्र रोक दिया। इसके बाद अर्जुन ने अपना ब्रह्मस्त्र वापस ले लिया तो वहीं, अश्वत्थाामा ने अपना दिव्यस्त्र उत्तरा की कोख पर छोड़ दिया। जिसके बाद वासुदेव श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दे दिया कि वो जीवन भर भटकता रहेगा अपने गुनाह का पश्चाताप करते हुए। इसके अलावा भगवान ने कहा कि मैं अभिमन्यु के पुत्र और उत्तरा के गर्भ की रक्षा करूंगा।

11:55 (IST)13 May 2020
अश्वथामा का वध असंभव, भगवान ने पांडवों को बताया

अश्वथामा दुर्योधन के पास जब वापस आते हैं तो तब तक दुर्योधन दम तोड़ चुके होते हैं। अश्वथामा कहते हैं कि शुभ समाचार सुनने के लिए थोड़ी देर रुक जाते मित्र। पहले मैंने धृष्टद्युम्न को मारा इसके बाद पांचों पांडव पुत्रों को। अश्वथामा रो रहे हैं और कह रहे हैं कि तुम्हें इस हालत में अकेले छोड़कर मां नहीं जा सकता। दुर्योधन की चिता को आग लगाते हैं अश्वथामा। वहां, द्रौपदी अपने पुत्रों के शवों पर रो रही हैं और पांडवों से बबाण किसके हैं, यह पूछ रही हैं। अर्जुन बताते हैं कि यह बाण अश्वथामा के हैं। द्रौपदी कहती हैं कि मैं अपने पुत्रों के शव तब तक यहां लेकर बैठी रहूंगी जब तक तुम अश्वथामा का लहू मेरे पास नहीं लेकर आते। वासुदेव कहते हैं कि अश्वथामा का वद्ध असंभव है पांचाली। उसके पास अमर होने का वरदान है। लेकिन फिर भी पांडव अश्वथामा का सामना करने के लिए शिविर से निकल जाते हैं। और उन्हें प्रतीक्षा करने के लिए कहते हैं।