Mahabharat 12th May Episode online Updates: दुर्योधन और भीम के बीच भीषण युद्ध हुआ लेकिन अपनी मां के आर्शीवाद के कारण दुर्योधन के शरीर का उपरी भाग वज्र का हो गया था। जिस वजह से उसपर भीम के किसी भी प्रहार का असर नहीं हो रहा था। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने भीम को उनकी प्रतिज्ञा याद दिलाई। जिसमें भीम ने दुर्योधन की जंघा तोड़ने की प्रतिज्ञा ली थी। जिसके बाद भीम ने दुर्योधन की जांघ तोड़ दी। यह देख कर बलराम जी भीम पर क्रोधित हो उठे और उन्होंने भीम का वध करने के लिए गदा उठा लिया। उन्होंने कहा कि भीम ने गदा युद्ध के नियमों को तोड़कर अपने गुरुजनों का अपमान किया है। मैं इसे जीवित नहीं छोड़ूंगा, जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने अपने दाउ भैय्या को सब समझाया और वो शांत हो गए। दुर्योधन के वध के साथ ही असत्य पर सत्य की जीत हुई।
वहीं वध से पहले अपने मित्र कर्ण की मृत्यु की सूचना से गांधारी नंदन दुर्योधन स्तब्ध रह गया था। वो उसके शव के पास फूट-फूट कर रोया था। इधर कुंती युधिष्ठिर और अर्जुन को बताती हैं कि कर्ण उनका ज्येष्ठ भ्राता था। जिसके बाद कर्ण का अंतिम संस्कार करने युधिष्ठिर अपने भाईयों के साथ पहुंचते हैं। लेकिन दुर्योधन वहां पहुंचकर उन्हें कर्ण का की चिता को अग्नि देने से रोक देता है और कहता है, कि भले ही कर्ण तुम लोगों का ज्येष्ठ भ्राता था लेकिन इस युद्ध में वो मेरी तरफ से लड़ कर वीरगति को प्राप्त हुआ है। इस लिए उसके अंतिम संस्कार पर मेरा अधिकार तुम लोगों से ज्यादा है।
वहीं इससे पहले युद्ध में कौरवों की तरफ से अंतिम योद्धा खुद दुर्योधन बचा है। जिस वजह से गांधारी अपने पुत्र दुर्योधन से कहती है कि अब तुम युद्ध में अकेले ही रह गए हो। इस लिए तुम जाओ और गंगा में स्नान करके उस अवस्था में मेरे सामने आओ जैसे कोई नवजात बालक अपनी मां के सामने होता है। जिसके बाद दुर्योधन गंगा स्नान के बाद पूर्ण रूप से नग्न हो कर अपनी मां गांधारी के पास जा रहा होता है, कि रास्ते में उसे भगवान श्री कृष्ण मिल जाते हैं वो उससे कहते हैं ये क्या अपनी मां से तुम पूरे नग्न कैसे मिल सकते हो, तुम तो बड़े हो। इसके बाद भगवान कहते हैं ये तो मर्यादा के विपरीत है। जिसके बाद दुर्योधन अपने जंघा से नीचे के भाग में केले का पत्ता लपेट कर गांधारी के सामने जाता है। गांधारी अपनी आंखों से क्षण भर के लिए पट्टी खोलती है औऱ दुर्योधन के जिस हिस्से पर उसकी नजर पड़ती है वो वज्र का हो जाता है।
बता दें बीते एपिसोड में कर्ण और अर्जुन में भयंकर युद्ध देखने को मिला था। इस दौरान दोनों ही तरफ से बाणों की वर्षा हुई। लेकिन अपने श्राप के कारण कर्ण अपने प्रतिद्वंदी अर्जुन के हाथों वीरगति को प्राप्त हो गया था। जब कर्ण युद्ध कर रहे होते हैं, उस दौरान उनके रथ का पहिया जमीन में धंस जाता है। तब उन्हें अपना श्राप याद आता है। उसके बाद क्रोधित हो कर वो अपना ब्रह्मास्त्र चलाने का प्रयास करते हैं, तब भगवान परशुराम के श्रॉप के कारण उनका ब्रह्मास्त्र भी नहीं आता है। इसके बाद जब कर्ण अपने रथ का पहिया निकालने जाता है, तो भगवान श्री कृष्ण के कहने से अर्जुन- निहत्थे कर्ण का सिर उसके धड़ से अलग कर देते हैं। वीरगति को प्राप्त करने से पहले कर्ण एक-एक करके सभी पांडवों को जीवनदान दे देता है। क्योंकि उसने माता कुंती को ये वचन दिया होता है कि युद्ध के बाद भी आपके पांच पुत्र जीवित रहेंगे।
अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा था, इसके बाद अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया था। जिसे ऋषि वेदव्यास ने रोक लिया। इसके बाद उन्होंने श्रृष्टि को बचाने के लिए दोनों का ब्रह्मास्त्र रोक दिया। इसके बाद अर्जुन ने अपना ब्रह्मस्त्र वापस ले लिया तो वहीं, अश्वत्थाामा ने अपना दिव्यस्त्र उत्तरा की कोख पर छोड़ दिया। जिसके बाद वासुदेव श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दे दिया कि वो जीवन भर भटकता रहेगा अपने गुनाह का पश्चाताप करते हुए। इसके अलावा भगवान ने कहा कि मैं अभिमन्यु के पुत्र और उत्तरा के गर्भ की रक्षा करूंगा।
अश्वथामा दुर्योधन के पास जब वापस आते हैं तो तब तक दुर्योधन दम तोड़ चुके होते हैं। अश्वथामा कहते हैं कि शुभ समाचार सुनने के लिए थोड़ी देर रुक जाते मित्र। पहले मैंने धृष्टद्युम्न को मारा इसके बाद पांचों पांडव पुत्रों को। अश्वथामा रो रहे हैं और कह रहे हैं कि तुम्हें इस हालत में अकेले छोड़कर मां नहीं जा सकता। दुर्योधन की चिता को आग लगाते हैं अश्वथामा। वहां, द्रौपदी अपने पुत्रों के शवों पर रो रही हैं और पांडवों से बबाण किसके हैं, यह पूछ रही हैं। अर्जुन बताते हैं कि यह बाण अश्वथामा के हैं। द्रौपदी कहती हैं कि मैं अपने पुत्रों के शव तब तक यहां लेकर बैठी रहूंगी जब तक तुम अश्वथामा का लहू मेरे पास नहीं लेकर आते। वासुदेव कहते हैं कि अश्वथामा का वद्ध असंभव है पांचाली। उसके पास अमर होने का वरदान है। लेकिन फिर भी पांडव अश्वथामा का सामना करने के लिए शिविर से निकल जाते हैं। और उन्हें प्रतीक्षा करने के लिए कहते हैं।
अपने पिता और अपने मित्र दुर्योधन की मृत्यु की वजह से बदले के लिए प्रतिशोध की ज्वाला में जल रहे, अश्वत्थामा ने सबसे पहले अपने पिता के हत्यारे धृश्ट्यूम्न को तलवार घोंप के पहले उसका वध किया। उसके बाद अपने शिविर में सो रहे पांडवों के पांच पुत्रों को सोते वक्त मौत के घाट उतार दिया है।
दुर्योधन के कहे अनुसार युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है। इस दौरान कौरवों का प्रधान सेनापति दुर्योधन ने अश्वत्थामा को बनाया है और आदेश दिया है कि पांडवों का सिर काट कर लाओ। जिसके बाद रात के अंधेरे में अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में उनका वध करने पहुंचा है। जहां उसने सबसे पहले द्रौपदी के भाई धृष्टद्यूम्न का वध कर दिया।
दुर्योधन अपनी मृत्यु से क्षण-क्षण लड़ रहा है। संजय ने जैसे ही ये बात धृतराष्ट्र को बताई वो फूट-फूट कर रोने लगे। इस दौरान संजय ने कहा कि आपके रोने से अब कुछ नहीं होगा। जब आप इस युद्ध को रोक सकते थे, तो भी आपने युद्ध को नहीं रोका। इसके बाद धृतराष्ट्र ने स्वीकार किया कि हां मैं रोक सकता था इस युद्ध को, लेकिन मैंने अपने पुत्र मोह की वजह से इसे नहीं रोका। जिसका परिणाम ये है कि आज मेरे सौ पुत्र वीरगति को प्राप्त हो गए।
दुर्योधन युद्ध के मैदान में अपनी घायल जंघा के साथ लेटे हुए हैं। वह कहते हैं कि पांडवों ने जिस तरह भीष्म पितामह को कपट से घायल किया वैसे ही मुझे किया है। उनके पास अश्वथामा और कुलगुरु आते हैं। वह कहते हैं कि हम तुम्हारी पराजय और विजय दोनों में तुम्हारे साथ हैं। दुर्योधन कहते हैं कि जब तक मैं जीवित हूं तब तक यह युद्ध समाप्त नहीं हो सकता। दुर्योधन, अश्वथामा को प्रधान सेनापति घोषित करते हैं। दुर्योधन कहते हैं कि अश्वथामा मुझे पांडवों का सिर कटा हुआ चाहिए। तब तक मैं अपने जीवन की डोर को पकड़े रखूंगा। अश्वथामा कहते हैं कि मैं इसी समय पांडवों से युद्ध करूंगा। कुलगुरु कहते हैं कि युद्ध की मर्यादा को तुम नहीं लांघ सकते और न ही नियम तोड़ सकते। लेकिन अश्वथामा नहीं मानते। दुर्योधन, अश्वथामा को विजयभव का आशीर्वाद देते हैं
गांधारी रोते हुए द्रौपदी से कहती हैं कि मेरे प्रिय पुत्र दुर्योधन और दुशासन को माफ कर दे पुत्री। चाहे मुझे बालों से पकड़कर सभा तक ले आ। मेरा अपमान कर ले। लेकिन उन्हें माफ कर दे। द्रौपदी रोती हुई गांधारी को चुप कर रही हैं।
द्रौपदी, हस्तिनापुर की महारानी बन गई हैं। और सबसे खूबसूरत शिविर में बैठी हुई हैं। द्रौपदी कहते हैं कि यह मेरे अपमान का शिविर है, यह उन लोगों का शिविर है जिन्होंने मुझे बालों से पकड़कर सभा में लाया गया था। यह वह जगह है जहां सब चुपचाप बैठकर सब कुछ देख रहे थे। मुझे यहां बैठना बड़ा अटपटा लग रहा है। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मुझे यहां बैठकर हंसना चाहिए या अपमान को याद करना चाहिए। गांधारी, द्रौपदी के पास आती हैंष और उन्हें हस्तिनापुर की महारानी कहकर प्रणाम करती हैं और पूछती हैं कि क्या आप मेरा प्रणा स्वीकार नहीं करेंगी। द्रौपदी का दिल पिघल जाता है। वह उन्हें ऐसा कहना के लिए मना करती हैं।
दुर्योधन और भीम के बीच भीषण युद्ध हुआ लेकिन अपनी मां के आर्शीवाद के कारण दुर्योधन के शरीर का उपरी भाग वज्र का हो गया था। जिस वजह से उसपर भीम के किसी भी प्रहार का असर नहीं हो रहा था। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने भीम को दुर्योधन की प्रतिज्ञा याद दिलाई। जिसमें भीम ने दुर्योधन की जंघा तोड़ने की प्रतिज्ञा ली थी। जिसके बाद भीम ने दुर्योधन की जंघा तोड़ दी। यह देख कर बलराम जी भीम पर क्रोधित हो उठे और उन्होंने भीम का वध करने के लिए गदा उठा लिया। उन्होंने कहा कि भीम ने गदा युद्ध के नियमों को तोड़कर अपने गुरुजनों का अपमान किया है। मैं इसे जीवित नहीं छोड़ूंगा, इसके बाद श्री कृष्ण, बलराम को समझाते हैं। वह कहते हैं कि क्या मर्यादाएं में भी पक्षपात किया जाता है। यह सुनकर बलराम शांत होकर वहां से चले जाते हैं। दुर्योधन के वध के साथ ही असत्य पर सत्य की जीत हुई।
दुर्योधन और भीम के बीच गदा युद्द होने जा रहा है। इस युद्ध से पहले बलराम जी अपने शिष्यों के पास पहुंचे हैं उन्हें देख कर भगवान श्री कृष्ण आश्चर्य चकित रह गए। लेकिन बलराम में दोनों को गदा युद्ध करने की अनुमति दे दी और दोनों में भयंकर गदा युद्ध चल रहा है।
दुर्योधन और भीम के बीच भीषण युद्ध हुआ लेकिन अपनी मां के आर्शीवाद के कारण दुर्योधन के शरीर का उपरी भाग वज्र का हो गया था। जिस वजह से उसपर भीम के किसी भी प्रहार का असर नहीं हो रहा था। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने भीम को दुर्योधन की प्रतिज्ञा याद दिलाई। जिसमें भीम ने दुर्योधन की जंघा तोड़ने की प्रतिज्ञा ली थी। जिसके बाद भीम ने दुर्योधन की जंघा तोड़ दी। यह देख कर बलराम जी भीम पर क्रोधित हो उठे और उन्होंने भीम का वध करने के लिए गदा उठा लिया। उन्होंने कहा कि भीम ने गदा युद्ध के नियमों को तोड़कर अपने गुरुजनों का अपमान किया है। मैं इसे जीवित नहीं छोड़ूंगा, इसके बाद श्री कृष्ण, बलराम को समझाते हैं। वह कहते हैं कि क्या मर्यादाएं में भी पक्षपात किया जाता है। यह सुनकर बलराम शांत होकर वहां से चले जाते हैं। दुर्योधन के वध के साथ ही असत्य पर सत्य की जीत हुई।
दुर्योधन और भीम में इस वक्त भीषण गदा युद्ध चल रहा है। इस दौरान भीम का कोई भी प्रहार दुर्योधन का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा है। क्योंकि उसकी माता गांधारी के आर्शीवाद होने की वजह से उसका शरीर वज्र हो गया है। जिसके बाद दुर्योधन भीम को बुरी तरह से पीटता हुआ नजर आ रहा है। ये देख कर अर्जुन चिंतित हो गए हैं, उन्होंने भगवान से कहा कि ऐसे युद्ध चला तो भीम भैय्या की पराजय निश्चित है। जिसके बाद द्वारिकाधीश भगवान ने अर्जुन से भीम को उनकी प्रतिज्ञा याद दिलाने के लिए कहा है। भगवान अर्जुन से कहे हैं कि दुर्योधन के पास माता गांधारी का आशीर्वाद है। वह अर्जुन से कहते हैं कि भीम को उनकी प्रतिज्ञा याद दिला दो।
दुर्योधन और भीम के बीच गदा युद्द होने जा रहा है। इस युद्ध से पहले बलराम जी अपने शिष्यों के पास पहुंचे हैं उन्हें देख कर भगवान श्री कृष्ण आश्चर्य चकित रह गए। लेकिन बलराम में दोनों को गदा युद्ध करने की अनुमति दे दी और दोनों में भयंकर गदा युद्ध चल रहा है।
दुर्योधन ने कहा कि तुम सब कायर हो। मैं निहत्था हूं और घायल हूं। अपने भाइयों का शव उठा चुका हूं। मेरे कंधे टूट चुके हैं। लेकिन वासुदेव अपने महारथियों से कहो कि मैं भयभीत नहीं हूं। आप सब कायर मेरे साथ एक साथ युद्ध करोगे या फिर अलग अलग। युधिष्ठर ने कहा कि तुम हम पांचों में से किसी एक को चुन लो अगर तुमने उसे परास्त कर लिया तो मैं हार मान लूंगा। दुर्योधन ने कहा कि मैं गदा युद्ध करूंगा। वासुदेव, युधिष्ठर से कहते हैं कि कोई वचन देने से पहले सोच लेना चाहिए था। भीम कहते हैं कि मैं दुर्योधन को मार दूंगा
सरोवर में छुपे दुर्योधन के पास पांडव पहुंच गए हैं। इस दौरान युधिष्ठिर ने कहा या तो बाहर आकर युद्ध करो या अपनी पराजय स्वीकार करो। इसके बाद दुर्यधन क्रोधित हो उठा औक उसने कहा मेरे ज्यादतर योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए हैं तो ये ना समझों पांडवों की मैं अकेला हूं। मैं अकेला ही पूरी नारायणी सेना से बढ़कर हूं। जिसके बाद दुर्योधन सरोवर से बाहर आकर पांडवों को युद्द के लिए ललकार रहा है। वहीं पांडव भी उसकी चुनौती को स्वीकार कर उसका वध करने के लिए तैयार हैं।
दुर्योधन सरोवर में छुप गया है और वो युद्धभूमि में नहीं आया है। जिसके बाद युधिष्ठिर भावुक हो गए और कहने लगे कि मुझे ये देख कर बहुर बुरा लग रहा है कि आज पितामह भीष्म, गुरुद्रोण और कर्ण जैसे योद्धा वाली सेना का योद्धा सरोवर में छुपा बैठा है। जिसके बाद भगवान ने उन्हें समझाया कि जब तक दुर्योधन जीवित है तब तक अपनी विजय मत मानिये और कौरवों की सेना को पराजित मत समझिए।
अपने मित्र कर्ण की मृत्यु के बाद दुर्योधन पर बेहद कम योद्धा बचे हैं। जिस वजह से वो युद्ध में ही नहीं आया। वहीं पांडव दुर्योधन का रणभूमि में इंतजार कर रहे थे। तब ही एक सैनिक ने आकर बताया कि उसने दुर्योधन को सरोवर की तरफ जाते देखा है, जिसके बाद युधिष्ठिर अपने भाईयों के साथ सरोवर के पास पहुंचे हैं जहां दुर्योधन छुपा बैठा है।
युधिष्ठर अपने भाइयों के साथ कर्ण का दाह संस्कार करने जा ही रहे होते हैं तभी दुर्योधन वहां पहुंचते हैं। कहते हैं कि आप यह नहीं कर सकते। आपका राधेय की चिता पर कोई अधिकार नहीं है। मैं जानता हूं यह आपका ज्येष्ठ भाई था। मैं इसका दाह संस्कार करूंगा। यह शव मेरे प्रिय राधेय का है किसी और का नहीं। दाह संस्कार केवल मैं कर सकता हूं। दुर्योधन अर्जुन से पूछते हैं कि तुमनें बाण अपने भाई पर चलाए थे या मेरे मित्र राधेय पर। वासुदेव कहते हैं कि दुर्योधन ठीक कह रहे हैं। राधेय के शव पर हम सबसे ज्यादा अधिकार इनका है। दुर्योधन कर्ण का दाह संस्कार कर रहे हैं। और उनकी चिता को आग लगा रहे हैं। दुर्योधन कहते हैं कि जब तक यह संसार रहेगा तुम मित्रता का प्रतीक रहोगे।