Mahabharat 10th May Episode online Updates: भीम और दुःशासन के बीच युद्ध में भीम की विजय होती है। जिस हाथों से दुःशासन ने पांचाली के केश पकड़े थे उस हाथ को भीम उखाड़ देते हैं। भीम अपनी गदा से दु:शासन का सिर भी फोड़ देते हैं। भीम घोर गर्जना के साथ कहते हैं-‘कौरवों की सभा में रजस्वला द्रौपदी के केश खींचकर उसके वस्त्रों का हरण करने वाले दु:शासन! आज तेरा ख़ून पी लूंगा।’ फिर उसकी छाती चीरकर लहू-पान करने लगते हैं। भीम का भयानक रूप देख सैनिक-चित्रसेन के साथ भागने लगते हैं।
दुःशासन की मौत के बाद दुर्योधन टूट जाता है। वहीं अश्वत्थामा दुर्योधन को पांडवों से संधि करने की बात कहते हैं लेकिन दुर्योधन ये करने से इंकार कर देता है। दुर्योधन कर्ण को युद्ध करने के लिए कहता है। कर्ण इसके बाद अपना रथ अर्जुन के रथ के समीप ले जाते। दोनों के बीच भयंकर युद्ध होता है। अर्जुन को कर्ण घायल कर देते हैं। तभी कृष्ण अपनी माया से सूर्यास्त कर देते हैं और युद्धविराम की घोषणा हो जाती है।
इससे पहले आपने देखा कि भगवान श्री कृष्ण के सुझाए मार्ग से पांडव अपनी विजय में रोड़ा बन रहे द्रोणाचार्य को अपने रास्ते से हटाने में कामयाब होते हैं। दरअसल श्री कृष्ण पांडवों से कहते हैं कि गुरुद्रोण को पराजित करने का एक ही तरीका है वह है अश्वत्थामा का वध। उसके वध से वो अवश्य ही शस्त्रों का त्याग कर देगें। श्री कृष्ण के कहने पर भीम अश्वत्थामा नाम के एक हाथी का वध कर देते हैं और द्रोण को बताते हैं कि मैंने अश्वत्थामा को मार दिया। बेटे के वध की खबर सुनकर द्रोणाचार्य अपने शस्त्र त्याग देते हैं। वह कहते हैं, ‘मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मेरा बेटा अश्वधामा तुम सबसे पराजित हो गया, लेकिन युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलता इसलिए मैं अपने शस्त्रों को त्याग रहा हूं।’ जैसे ही वो शस्त्र रखते हैं तुरंत द्रुपद पुत्र दृष्टद्यूम्न उनका मस्तक धड़ से अलग कर देता है।
अपने पराक्रम के बूते द्रोणाचार्य एक एक करे पहले विराट देश के राजा का वध करते हैं। उसके बाद अपने गुरुभाई और मित्र राजा द्रुपद का भी वध कर देते हैं। यह देख कर पांडव सेना में जहां खलबली मच जाती है। तो वहीं दुर्योधन इस बात से बिल्कुल भी संतुष्ट नजर नहीं आता है। वो द्रोणाचार्य ेस कहता है मुझे इनका नहीं बल्कि पांडवों का वध चाहिए। जिसेक बाद गुरुद्रोण कहते हैं कि पांडवों को मार पाना इतना आसान नहीं है। तो दुर्योधन क्रोधित हो कर कहता है। आप भी पितामह की तरह युद्ध मेरी तरफ से कर रहे हैं किंतु आपका मन पांडवों के पास ही लगा हुआ है।
सूर्यास्त होने के बाद अर्जुन पर बाण नहीं चलाने को लेकर दुर्योधन शिविर में नाराजगी जाहिर करता है। वहीं शकुनि भी अंगराज को भलाबुरा बोलते हैं। दुर्योधन कहता है कि विजय हमारी थी तुमने क्यों जाने दिया। कर्ण कहते हैं कि अगर विजय आज थी तो कल भी हमारी ही होगी। मैं भीष्मपितामह के बनाए नियमों को तोड़ अर्जुन पर बाण नहीं चला सकता था।
दुःशासन की मौत के बाद दुर्योधन टूट जाता है। वहीं अश्वत्थामा दुर्योधन को पांडवों से संधि करने की बात कहते हैं लेकिन दुर्योधन ये करने से इंकार कर देता है। दुर्योधन कर्ण को युद्ध करने के लिए कहता है। कर्ण इसके बाद अपना रथ अर्जुन के रथ के समीप ले जाते। दोनों के बीच भयंकर युद्ध होता है। अर्जुन को कर्ण घायल कर देते हैं। तभी कृष्ण अपनी माया से सूर्यास्त कर देते हैं और युद्धविराम की घोषणा हो जाती है।
भीम और दुःशासन के बीच युद्ध के अंत में भीम की विजय होती है। जिस हाथों से दुःशासन ने पांचाली के केश पकड़े थे उस हाथ को भीम उखाड़ देते हैं। भीम अपनी गदा से दु:शासन का सिर भी फोड़ देते हैं। भीम घोर गर्जना के साथ कहते हैं-'कौरवों की सभा में रजस्वला द्रौपदी के केश खींचकर उसके वस्त्रों का अपहरण करने वाले दु:शासन! आज तेरा ख़ून पी लूंगा।' फिर उसकी छाती चीरकर लहू-पान करने लगते हैं। भीम का भयानक रूप देख सैनिक-चित्रसेन के साथ भागने लगते हैं।
महाभारत के युद्ध में भीम दुःशासन को युद्ध के लिए ललकारते है। भीम को द्रोपदी के भरीसभा में केश खींचने और एक स्त्री को अपमान करने की सारी बातें याद आती है। उसे ये अपने प्रण की भी याद आती है। दु:शासन का भंयकर युद्ध होता है।
अपने पुत्र अश्वत्थामा के वध के बाद द्रोणाचार्य सारे शस्त्र नीचे रख देते हैं। जैसे ही द्रोण शस्त्र त्यागते हैं दृष्टद्यूम द्रोण का गला काट देते हैं। इसके बाद उनकी चिता पर पहुंचे पांडवों पर अश्वत्थाम क्रोधित हो उठता है। वह कहता है पांडवों तुमने मेरे पिता का वध छल से किया है। इसके लिए मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा। मेरी पिता की मृत्यु का भुगतान तुम्हें अवश्य भोगना पड़ेगा।
पितामह भीष्म बाणों की शैय्या पर लेटा हुए हैं। इस दौरान युधिष्ठिर ने भीष्म को बताया कि मैंने द्रोणाचार्य का वध झूठ के बल पर करवाया है। इसे सुनकर पितामह बेहद मायुस हो गए की धर्मराज ने झूठ बोला है। इसके बाद वासुदेव श्री कृष्ण ने पितामह से कहा पांडवों के पास और कोई तरीका नहीं था द्रोण का वध करने का क्योंकि द्रोण को पांचों पांडव मिल कर भी नहीं मार सकते थे। इसके बाद भगवान ने कहा द्रोण अधर्म के साथ थे और धर्म की स्थापना के लिए उनका वध अनिवार्य था।
अपने पुत्र अश्वत्थामा के वध की खबर सुनते ही द्रोणाचार्य ने सारे शस्त्र रख दिए थे। जिसके बाद दृष्टद्यूम ने द्रोण का गला काट दिया। इसके बाद उनकी चिता पर पहुंचे पांडवों पर अश्व्त्थामा खौल उठा। उसने कहा कि पांडवों तुमने मेरे पिता का वध छल से किया है। इसके लिए मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा। मेरी पिता की मृत्यु का भुगतान तुम्हें अवश्य भोगना पड़ेगा।
दृष्टद्यूम ने अश्वत्थामा के वध की खबर सुनकर अपने शस्त्र त्यागे बैठे द्रोणाचार्य का वध कर दिया। द्रोणाचार्य के वध पर अर्जुन इस कदर क्रोधित हो गए कि वो दृष्टद्यूम का वध कर करने के लिए तैयार हो गए। जिसके बाद पांचाली ने अर्जुन को पिछला सबकुछ याद दिलाया। तब जाकर अर्जुन शांत हुए।
द्रोणाचार्य , युधिष्ठिर से पूछते हैं कि क्या मेरे बेटे अश्वधामा का वध हो गया है तो युधिष्ठिर हां कहते हैं। वहीं युधिष्ठिर का झूठ सुनकर धृतराष्ट्र चौंक जाते हैं। वह कहते हैं, कृष्ण ने मेरे बच्चों को झूठ बोलना भी सिखा दिया।
भीम ने अश्वत्थामा नाम के हाथी का वध कर के जैसे ही गुरुद्रोण को बताया तो द्रोण ने भीम की बात ना मानते हुए धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा, कि क्या ये सच है कि मेरा पुत्र अश्वत्थामा मारा गया। जिसके बाद युधिष्ठिर ने कहा हां अश्वत्थामा मारा गया। जिसके बाद गुरुद्रोण की आंखों के आंसू रुक नहीं रहे और उन्होंने अपना धनुष बांण रख दिया है।
गुरुद्रोण ने विराट नरेश और कांपिल्य नरेश द्रुपद का वध कर दिया है। लेकिन दुर्योधन उसके बाद भी दुर्योधन संतुष्ट नहीं है। उसने द्रोण से कहा मुझे इन नरेशों की मृत्यु नहीं बल्कि पांडवों का शव चाहिए। जिसके बाद जब गुरुद्रोण ने उससे कहा कि पांडवों को मारना आसान नहीं है। जिसके बाद दुर्योधन क्रोधित हो उठा और उसने कहा कि आप तो पितामह की तरह मेरी तरफ से होकर भी पांडवों का पक्ष ले रहे हैं।
रणभूमि में गुरुद्रोण का कहर जारी है। उन्होंने पहले विराट नरेश का वध कर दिया। उसके बाद उनसे लड़ने आए उनके गुरुभाई और मित्र द्रुपद का भी वध कर दिया। ये देख कर हस्तिनापुर के सम्राट धृतराष्ट्र काफी प्रसन्न नजर आ रहा है।
विराट नरेश और गुरुद्रोण के बीच घमासान युद्ध हो रहा है। विराट नरेश ने द्रोण को युद्धभूमि छोड़कर शिक्षा देने की सलाह दी। जिसके बाद द्रोण ने उनपर अपने बाणों से प्रहार कर उनका वध कर दिया।
विराट नरेश और गुरुद्रोण के बीच घमासान युद्ध हो रहा है। विराट नरेश ने द्रोण को युद्धभूमि छोड़कर शिक्षा देने की सलाह दी। जिसके बाद द्रोण ने उनपर अपने बाणों से प्रहार कर उनका वध कर दिया।
विराट नरेश और गुरुद्रोण के बीच घमासान युद्ध हो रहा है। विराट नरेश ने द्रोण को युद्धभूमि छोड़कर शिक्षा देने की सलाह दी। जिसके बाद द्रोण ने उनपर अपने बाणों से प्रहार कर उनका वध कर दिया।
इंद्र औऱ ब्रह्मा जी ने गुरुद्रोण को दिव्यस्त्र का प्रयोग ना करने की सलाह दी है। लेकिन फिर भी युद्ध भूमि में खड़े द्रोण उनसे कहा कि मैं अपने धर्म के मार्ग पर हूं। इस लिए मुझे दिव्यस्त्र का प्रयोग करना ही पड़ेगा।
दुर्योधन को घटोत्कच ने अपने शक्ति से बहुत अधिक परेशान किया। जिसके बाद दुर्योधन कर्ण से कहा कि अपनी शक्ति का प्रयोग करके इस वीर योद्धा को मारो वरना ये कुछ देर में मेरे भी प्राण ले लेगा। जिसके बाद कर्ण ने अपने शक्ति बाण का प्रयोग घटोत्कच पर कर के उसका वध कर दिया।
भीम के पुत्र घटोत्कच ने अपने बल से पूरी कौरव सेना में खलबली मचा दी है। उसने दुर्योधन को खूब पीटा उसके बाद कर्ण भी उसके सामने बेबस नजर आ रहा है।