फिल्म- शाकुंतलम (3/5)
निर्देशक – गुणाशेखर
कलाकार – सामंथा रुथ प्रभु, देव मोहन और अल्लू अरहा
साउथ की ब्यूटीफुल एक्ट्रेस सामंथा रुथ प्रभु (Samantha Ruth Prabhu) की बहुचर्चित फिल्म ‘शाकुंतलम’ (Shaakuntalam) को सिनेमाघरों में 14 अप्रैल को रिलीज कर दिया गया। इसे रिलीज से पहले ही फैंस काफी पसंद कर रहे थे और सोशल मीडिया पर खूब पॉजिटिव रिस्पांस भी मिले थे। लोगों ने रिलीज से पहले ही इसे हिट बता दिया था। ऐसे में अब रिलीज के बाद भी लोग इस पर जमकर प्यार लुटा रहे हैं। हिंदी के साथ-साथ अन्य भाषाओं तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम में रिलीज की गई इस फिल्म को 2 डी और 3डी में रिलीज किया गया है। डायरेक्टर गुणाशेखर ने माइथोलॉजिकल कैरेक्टर के जरिए भव्यता को प्रदर्शित करने की कोशिश की है। क्लासिक परंपरा और मर्यादा को बरकरार रखती है।
कालिदास के ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ पर आधारित ये फिल्म संस्कृत साहित्य के एक क्लासिक नाटक का एक फिल्मी रूप है। बेशक ये चुनौती है क्योंकि धीमी गति से होने वाले संस्कृत नाटक को फिल्मी पर्दे पर लाना आज के दौर में काफी मुश्किल होता है। क्योंकि एक फिल्म की सफलता उसके बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पर आंकी जाती है। ऐसे में ऐसी फिल्मों को एंटरटेनमेंट के स्तर पर बनाना और भी मुश्किल हो जाता है। ढाई घंटे की इस फिल्म को निर्देशक गुणाशेखर ने इसका निर्माण इस तरह से किया है कि इसमें संस्कृत की क्लासिक परंपरा और मर्यादा भी सुरक्षित रहती है।
इसमें बीच में युद्ध के सीन्स भी दिखाए गए हैं, जो कुछ रोमांच पैदा करते हैं और कुर्सी से बांधे रखने में मदद करते हैं। फिल्म में आपको शकुंतला का चरित्र ऐसा लगेगा कि मानो वो खुद एक प्रकृति हो। गुणाशेखर ने फिल्म में ये वाला पहलू भी ठीक से रेखांकित किया है, जिस तरह शकुंतला के पालक पिता ऋषि कण्व के आश्रम में सिंह-शावकों और वन लताओं के साथ शकुंतला के स्नेह को दिखाया गया है, जो कि कालिदास की दृष्टि को दिखाता है। फिल्म में जहां सामंथा की एक्टिंग शकुंतला के रोल में सभी का दिल जीत रही है। वहीं, अल्लू अरहा की एंट्री सभी लाइमलाइट को ही चुरा लेती हैं।
शकुंतला की भूमिका सामंथा रुथ प्रभु ने निभाई है और दुष्यंत की भूमिका देव मोहन ने। फिल्म थ्री डी मे बनी है, इसलिए प्रकृति के कई दृश्य बेहद मनोहर और आकर्षक लगते हैं। ये फिल्म यूं तो मूल रूप से तेलुगू में बनी है पर हिंदी सहित पांच अन्य भारतीय भाषाओं में भी इसे पेश किया गया है।
फिल्म में गुणाशेखर ने एक और सीन बेहद सादगी के साथ फिल्माया है, जिसमें शकुंतला की पीड़ा दिखती है। इसे उन्होंने सीता की पीड़ा से जोड़ दिया है। वो सीन कुछ ऐसा है कि जब दुष्यंत द्वारा नहीं पहचाने जाने के बाद शकुंतला स्तब्ध रह जाती है तो वो पृथ्वी से कहती है कि जैसे सीता को अपने भीतर समा लिया था वैसे ही मुझे भी अपने अंदर समा लें। इस प्रकार गुणाशेखर सीता और शकुंतला के दर्द को एक ही परिप्रेक्ष्य में रख देते हैं। निर्देशक ने राजा का क्या कर्तव्य होता है और किसानों के लिए उसके मन में क्या भावना होनी चाहिए इसे भी इस फिल्म के माध्यम से उठाया है। हालांकि ये बीते दिनों के किसान आंदोलन का प्रभाव लगता है।