आरती सक्सेना
कांतारा की कहानी और कथानक बेहतरीन है। इससे पहले भी बाहुबली, केजीएफ ,पुष्पा, केजीएफ 2, आर आर आर, आदि दक्षिण की कई फल्मों ने सफलता के झंडे गाड़े हैं। बालीवुड के दिग्गज निर्माता कई वर्षों से दक्षिण की हिट फिल्मों का पुनर्निर्माण हिंदी में कर रहे थे। अब उन पर रोक लग गई है। जो फिल्म पहले ही देखी जा चुकी है उसे हिंदी में दर्शक नहीं देखना चाहते। नतीजतन दक्षिण की हिंदी में बनीं फिल्में विक्रम वेधा, जर्सी, आदि कई फिल्मों को दर्शकों ने नकार दिया। एक नजर….
कांतारा के निर्माता-निर्देशक एक्टर ऋषभ शेट्टी के अनुसार सिनेमा में इन दिनों काफी सारे बदलाव हो रहे हैं। इसके बाद बालीवुड टालीवुड सेंडलवुड आधारित भेदभाव फीका पड़ रहा है। अब सिर्फ भारतीय सिनेमा नजर आ रहा है, जिसका जीता- जागता उदाहरण उनकी फिल्म कांतारा है जो ऋषभ शेट्टी ने सिर्फ कन्नड़ में ही बनाई। उनकी फिल्म को दर्शकों द्वारा इतना प्यार मिला कि बाद में उन्होंने हिंदी के साथ-साथ इस फिल्म को कई और भाषाओं में डब किया। ऋषभ के अनुसार मुझे लगता है कि आज दर्शकों के बीच भाषा का अंतर अब खत्म हो गया है।
जाहिर है, भारतीय सिनेमा के तहत जहां तेलुगू ,तमिल, मलयालम, कन्नड़, फिल्में धीरे धीरे हिंदी दर्शकों के बीच अपना पैर पसार रही हैं। बालीवुड फिल्में दक्षिण भाषा में डब होना तो दूर हिंदी में भी असफल हो रही है। क्या ऐसे में भारतीय सिनेमा का उदय कही बालीवुड फिल्मों का अंत तो साबित नही हो रहा? कमजोर कहानी और कमजोर कथानक के चलते क्या पिछले 100 साल से बरकरार हिंदी सिनेमा का क्रेज अब खत्म हो रहा है।
‘भारतीय सिनेमा का उदय हिंदी सिनेमा का अंत नहीं’
निर्माता-निर्देशक करण जौहर ने बाहुबली 2 के जी एफ 2 हिंदी में प्रदर्शित की है और अच्छी कमाई की है। करन जौहर के अनुसार, दक्षिण या बालीवुड इंडस्ट्री अलग अलग नहीं है। हमारे बीच प्रतिस्पर्धा नहीं है बल्कि हम एक दूसरे का सम्मान करते हैं हमारा मकसद सभी भाषाओं की फिल्मों की सफलता है क्योंकि अगर कोई फिल्म सफल होती है तो भारतीय सिनेमा को मजबूत बनाती है।
साउथ की हिट फिल्मों को अगर सकारात्मक तरीके से देखें तो इससे फिल्म उद्योग को फायदा हुआ है। दक्षिण की हिट फिल्में जैसे बाहुबली, बाहुबली 2, केजीएफ 2, पुष्पा, आर आर आर ने बहुत अच्छा बिजनेस किया है। ऐसे में हम गर्व से कह सकते हैं कि हम भारतीय सिनेमा का हिस्सा है। अगर हिंदी फिल्मों की बात करूं तो हमारी फिल्में भी बाक्स आफिस पर पूरी तरह असफल साबित नही हो रही है जैसे कि मेरी फिल्म जुग जुग जियो ने वर्ल्ड वाइड 877 करोड़ का बिजनेस किया है। इसके अलावा गंगूबाई काठियावाड़ी, भूल भुलैया 2, ब्रह्मास्त्र ने भी अच्छा बिजनेस किया है। मेरा मानना है कि आज के समय में प्रतिस्पर्धा की नहीं, बल्कि साथ में चलने की जरूरत है।
खुशी की बात है कि दक्षिण की फिल्मों को दशकों में सराहा जा रहा है साउथ इंडस्ट्री और बालीवुड इंडस्ट्री मिलकर आगे बढ़ रही है। हिंदी भाषा की फिल्में और साउथ फिल्मों दोनों का निर्माण शैली अलग है। दोनों ही अपनी-अपनी जगह पर अच्छे हैं। इन दोनों ही भाषाओं के दर्शकों की पसंद भी अलग है। आज के दौर में भले ही लगातार असफलता के चलते हिंदी फिल्में थोड़ी कमजोर पड़ गई है, लेकिन हिंदी फिल्मों का अंत असंभव है। अगर ऐसा होता तो पिछले 100 सालों से हिंदी फिल्में दर्शकों द्वारा नहीं देखी जाती। हम निर्माता हैं और हमें नफा नुकसान दोनों देखना है। लिहाजा साउथ और हिंदी फिल्मों की तुलना करने के बजाए अगर हम दोनों ही फिल्मों को साथ लेकर चलें तो फिल्म उद्योग और
आगे बढ़ेगा।
करण जौहर की बात से फिल्म समीक्षक नरेंद्र गुप्ता पूरी तरह सहमत नहीं है…
आजकल एक चर्चा चल रही है कि साउथ इंडस्ट्री बालीवुड इंडस्ट्री को टेकओवर कर रही है। मैं इस बात से सहमत नहीं हूं क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण की 100 डब फिल्में हिंदी में आई है। इनमें से सिर्फ सात आठ चली है बाकी सब फ्लाप रही है। बडी बड़ी फिल्में जैसे मणिरत्नम की पी एस 1 , चिरंजीवी की गाडफादर, सुदीप की विक्रांत रोना ,कमल हसन की विक्रांत आदि कई फिल्में बाक्स आफिस पर फ्लाप रही है।
जहां तक कांतारा का सवाल है तो उस को बालीवुड शैली में बनाया गया है जिससे दर्शकों को यह फिल्म पसंद आई है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हर भाषा की फिल्मों को हमेशा से सम्मान दिया है परंतु साउथ फिल्मों ने बालीवुड फिल्मों को कभी अपने यहां रिलीज नहीं होने दिया। हमेशा हिंदी फिल्मों का बहिष्कार किया। दक्षिण में अगर हिंदी फिल्म रिलीज होना चाहे तो उसके लिए उनको थिएटर नहीं मिलते थे। वहीं दूसरी तरफ जब पुष्पा हिंदी में डब हुई तो दर्शकों ने उसको सराहा पुष्पा ने अच्छा बिजनेस किया तो साउथ की डब फिल्मों की लाइन लग गई।
जिनमें से काफी हिट भी रही उसके बाद से हिंदी फिल्मों को ज्यादा अवहेलना झेलनी पड़ी। यह बात सच है कि आजकल बालीवुड फिल्में नहीं चल रही, इसके पीछे खास वजह है ओटीटी प्लेटफार्म में इतना अच्छा कथानक है कि दर्शकों को बालीवुड फिल्मों से दिलचस्पी हटने लगी। हिंदी फिल्मों की असफलता की वजह उनका बुरा कथानक खराब कहानी बहुत ज्यादा बजट है अगर इसमें सुधार हो तो बालीवुड एक बार फिर चमक उठेगा।
फ़िल्म समीक्षक जोइता मित्रा स्वर्णा के अनुसार कन्नड़ फिल्में यकीनन बहुत अच्छा कर रही है। केजीएफ के बाद सिनेमा में उनकी एक नई पहचान बनी है। ऋषभ शेट्टी की बातों को समझते हुए यह बात मानती हूं कि सिनेमा जगत में इन दिनों बदलाव जरूर आए हैं। हर तरह के सिनेमा के लिए अलग दर्शक रहा है। हिंदी सिनेमा ने भी युगों से लोगों को मनोरंजन किया है।
माना कि इस वक्त एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है मगर यह मान लेना कि बालीवुड की समाप्ति हो चुकी है और अब इनका कुछ नहीं हो सकता, तो इस सोच को पनपने देना गलत होगा। जिस तरह से कन्नड़ फिल्में या फिर किसी भी और प्रांत की फिल्में पहले अपनी भाषा में बनती है और फिर अलग-अलग भाषाओं में डब किया जाता है उसी तरह हिंदी सिनेमा के लिए भी राष्ट्रीय भाषा सर्वोपरि है। तो यहां कोई भेदभाव नहीं है सभी मिलकर काम करें और अच्छा काम करें यही उद्देश्य होना चाहिए।