मुकेश भारद्वाज
एक ही सप्ताह में दो तस्वीरों ने देश में बालीवुड का सितारा होने के मायने बयां कर दिए। दोनों तस्वीरों के ‘स्टार’ रहे देश के दबंग खान उर्फ सलमान खान। पहले में घर से सजा सुनने के लिए निकलते जाते हुए। उनके अंग-संग रहने वाले उनके बलिष्ठ अंगरक्षक शेरा की मौजूदगी भी चेहरे पर सजा के खौफ को कम न कर सकी। लिहाजा सबको लगा कि देश में कानून का खौफ एक जैसा है।
दूसरी तस्वीर सजा के बाद जेल की जगह ‘बेल’ पा चुके दबंग का दंभ बयां करती है। नाभि तक खुले बटन वाली शर्ट में सजे सलमान खान आंख भरकर कैमरे से रूबरू। एक बार फिर अपनी दबंगई दिखाने के लिए आत्मविश्वास से लबालब सलमान के दंभ में तीन ही दिन पहले पनपा कानून का खौफ पिघल कर रह गया। इन तीन दिनों में सलमान के दोस्तों ने सोशल मीडिया पर अपनी दोस्ती की मिसाल पेश की।
‘कुत्ता सड़क पर सोएगा तो कुत्ते की मौत ही मरेगा’ या फिर ‘जॉली एलएलबी’ के अभिमानी वकील का कुतर्क कि सड़क सोने के लिए नहीं है। बालीवुड के बड़े सितारे जो लोगों के लिए मिसाल की तरह हैं और जो यह तय करते हैं कि देश में कौन क्या पहनेगा, जो फिल्मों में आदर्शवाद की दुहाई देते हैं, अच्छाई के लिए लड़ते हैं, खलनायक को उसके कुकर्मों की सजा सुनाते हैं, वे सब सलमान के घर में ऐसे जुटे जैसे कि उनकी हिट फिल्म की सौ करोड़ की कमाई की बधाई देने आए हों।
सब समवेत उनकी स्वयंसेवी संस्था बीईंग ह्यूमन और उनके सत्कर्मों का जप करने लगे। गोया यह सब काम करने के बाद सड़क पर किसी को गाड़ी से रौंद भी दिया तो ‘कोई बात नहीं’। बहुत सी फिल्मों में हम देखते हैं कि खलनायक अमीरों से लूट कर गरीबों की मदद करता है। गरीब गलियों में उस लूटे हुए सामान के कुछ हिस्से के बंटने का इंतजार करते हैं। खलनायक अपने गांव में एक भव्य मंदिर का निर्माण करता है। बड़ी-बड़ी आदर्श की बातें करता है, लेकिन अंत उसका भी वहीं होता है या तो नायक के मुक्के से मौत और या फिर जेल की सलाखें।
तेरह साल से सलमान जिस तरह से कानून को धता बताकर सजा को गच्चा दे रहे हैं, उससे लगता है कि यह धारणा निर्मूल है कि फिल्में समाज का आईना होती हैं या फिर फिल्मों जैसे कि किसी ‘हिट एंड रन’ मामले का फिल्म में चित्रण और है और असलियत में और।
मरने वाले सड़क पर सोए हुए मजदूर थे, जिनको मुआवजे में जो डेढ़ लाख मिले थे, वे भी उनके इलाज पर खर्च हो गए। चश्मदीद गवाह मुंबई पुलिस के सिपाही की बीमारी से मौत हो गई। इस सिपाही का जिक्र इसलिए जरूरी है क्योंकि वह अपनी सच्चाई पर, अपनी गवाही पर अडिग रहा। जो पीड़ित दुनिया से रुखसत हो गया, उसको फर्क नहीं पड़ता लेकिन जो इस हादसे के जख्म लेकर जिंदा हैं, उनकी कानून से उम्मीदों का क्या?
कितना शानदार तर्क है, कानून सबके लिए बराबर है। लेकिन इसका दूसरा पहलू कि कानून एक सक्षम के लिए, एक अमीर के लिए, एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के लिए, एक स्टार के लिए और सलमान खान के लिए भी बराबर है। सो उनको भी संदेह लाभ क्यों नहीं? तेरह वर्ष निकल गए। कुछ और निकल जाएंगे।
असल जिंदगी में खेली जा रही इस कानूनी लड़ाई का अभी तक का सबक इतना ही है। बेखौफ कानून की धज्जियां उड़ाएं। किसी की जान भी जाती है तो जाए, किसी को जिंदगी भर का कोई जख्म भी मिलता है तो मिल जाए। आपको कुछ करना है तो बस इतना। कानून की किताब को एक जानकार और नामचीन वकील की जेब भरकर आप जेल की सलाखों से खुद की दूरी बना कर रखना।
इन सबके बीच बाजार की अपनी दलील। चिंता इस बात की नहीं कि सलमान अपने किए की सजा भुगत लें। वैसी ही दबंगई के साथ जैसे वे पर्दे पर बुराई का विनाश करते हैं। यह दावा सहज है कि अगर वे ऐसा करते तो पूरा देश भी वैसे ही खड़ा होकर ताली बजाता जैसे उनके विलेन का विनाश करने के बाद बजती है। लेकिन बालीवुड की इस धड़कन की यह दबंगई भी उनकी फिल्मों की तरह ही नकली निकली। तमाम कोशिश यह रही कि किस तरह कानून को धता बताकर सजा से बचा जाए।
रही बात बाजार की, तो वहां चिंता यह थी कि अगर सलमान को जेल जाना पड़ गया तो करोड़ों डूब जाएंगे। निर्माता और फिल्म उद्योग के दिग्गज कहीं दिवालिया न हो जाएं। उनके प्रशंसक उनके लिए दुआएं कर रहे हैं, प्रार्थनाएं कर रहे हैं। यह इस देश के अवाम की विडंबना ही है कि सड़क पर हुए इस हादसे में मरने वालों के लिए दुआ करने वाले हाथ शायद चंद ही होंगे वह भी उनके कुछ अपनों के, वरना शायद दुआओं का दम ही इस मामले को कोई तर्कसंगत अंत प्रदान कर देता।
दुखद यह भी है कि मामला सलमान से जुड़ा है। तभी तो जमानत के बाद जरा सी हायतौबा और फिर सन्नाटा। सड़क पर एक स्टार की गाड़ी के नीचे आकर दम तोड़ने वालों के लिए गेटवे ऑफ इंडिया या इंडिया गेट पर मोमबत्ती जलाने वालों की कोई कतार नहीं, कोई धरना नहीं, कोई दौड़ नहीं, कोई प्रदर्शन नहीं। कुछ है तो बस इंतजार, इंसाफ का! आज नहीं तो कल!
कानूनी मामलों में देर कहां!
28 सितंबर, 2002 में हुए हिट एंड रन केस में सलमान खान के खिलाफ छह मई, 2015 को मामले की सुनवाई सुबह 11 बजे शुरू हुई। दोपहर 1.20 बजे न्यायाधीश ने पांच साल कैद की सजा सुनाई। इस पर सलमान रो पड़े। कहा, हाई कोर्ट में अपील करेंगे। जज ने कहा अपील कर सकते हैं पर फैसला आने तक वहीं बैठना होगा।
दोपहर 2.30 बजे सलमान के वकील ने अंतरिम जमानत की अर्जी लगाई। 4.48 बजे दो दिन की जमानत मिल गई। इसके बाद 6.20 बजे फैसले की प्रति आई। अदालत में कागजी कार्रवाई की खानापूर्ति के बाद 7.17 बजे सलमान घर रवाना हो गए।
आठ मई को मामला दोबारा सुनवाई के लिए आया तो मुंबई हाई कोर्ट ने सजा को निलंबित कर मुकदमे का फैसला आने तक नियमित जमानत दे दी।