करीब 13 साल पुराने हिट एंड रन मामले में बंबई हाई कोर्ट ने गुरुवार को अभिनेता सलमान खान को सभी आरोपों से बरी कर दिया। महज सात महीने पहले मुंबई की एक सत्र अदालत ने इस मामले में सलमान को कसूरवार ठहराते हुए पांच साल जेल की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे जाकर यह साबित करने में नाकाम रहा कि हादसे के वक्त सलमान गाड़ी चला रहे थे और नशे में थे। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सलमान की ओर से की गई अपील पर यह फैसला सुनाया गया है।

सलमान पर आरोप था कि 28 अक्तूबर 2002 को उपनगरीय बांद्रा में एक लांड्री के बाहर फुटपाथ पर सो रहे पांच लोगों को उनकी टोयोटा लैंड क्रूजर कार ने कुचल दिया था जिसमें एक शख्स की मौत हो गई थी और चार अन्य जख्मी हो गए थे। सलमान को दोषी करार दिए जाने के निचली अदालत के फैसले को दरकिनार करते हुए न्यायमूर्ति एआर जोशी ने खचाखच भरी अदालत में कहा, ‘अपील मंजूर की जाती है। निचली अदालत के फैसले को निरस्त और दरकिनार किया जाता है। सलमान को सभी आरोपों से बरी किया जाता है’।

न्यायाधीश ने कहा, ‘अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि अभियोजन पक्ष ऐसे सबूत पेश करने में नाकाम रहा है जिससे यह संदेह से परे जाकर साबित हो सके कि अपीलकर्ता (सलमान) गाड़ी चला रहे थे और शराब के नशे में थे, और यह भी कि क्या हादसा घटना से पहले टायर फटने की वजह से हुआ या घटना के बाद टायर फटा’। फैसले के बाद 49 साल के सलमान भावुक होकर लोगों के सामने ही रो पड़े। इस पर उनके अंगरक्षक शेरा ने उन्हें दीवार की तरफ अपना चेहरा कर लेने की सलाह दी जिससे लोग उनके आंसू न देख सकें। बाद में काफी सहज दिख रहे सलमान को एक गाना गुनगुनाते देखा गया और उनकी बहन अलवीरा ने उन्हें ‘थम्स अप’ का इशारा किया। न्यायाधीश ने सलमान के पूर्व पुलिस अंगरक्षक और इस मामले के चश्मदीद रवींद्र पाटील के बयान पर भी संदेह जताया। पाटील का बयान एक मजिस्ट्रेट ने दर्ज किया था जिसमें उसने कहा था कि सलमान शराब के नशे में गाड़ी चला रहे थे।

न्यायमूर्ति जोशी ने पाटील को एक ऐसा गवाह करार दिया जिस पर ‘कतई भरोसा नहीं किया जा सकता’। उन्होंने कहा कि पाटील के बयान के आधार पर अपीलकर्ता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने कहा कि पाटील पर कतई भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने मजिस्ट्रेट को दिए गए बयान में बाद में बदलाव किए। हादसे के तुरंत बाद दर्ज प्राथमिकी में उसने अपने बयान में सलमान की ओर इशारा नहीं किया, लेकिन अदालत के समक्ष दिए बयान में उसने कहा कि सलमान शराब के नशे में गाड़ी चला रहे थे।

मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष की सारी दलीलें पाटील के बयान पर टिकी थीं। पाटील की मौत 2007 में तभी हो गई थी, जब गैर-इरादतन हत्या के नए आरोप के साथ मुकदमे की सुनवाई शुरू भी नहीं हुई थी। गैर-इरादतन हत्या के नए आरोप जोड़ने से पहले सिर्फ तेज रफ्तार और लापरवाह ड्राइविंग के आरोप लगाए गए थे। पेश किए गए सबूतों को कमजोर करार देते हुए न्यायमूर्ति जोशी ने कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से कई खामियां रहीं। इसमें जरूरी और अहम गवाहों की गवाही रिकॉर्ड नहीं करना, घायल गवाहों की गवाही में कई चीजों को छिपा लेना या उनके बयानों में अंतर्विरोध होना जैसी कमियां शामिल हैं जो अपराध में सलमान की संलिप्तता पर संदेह उत्पन्न करते हैं।

इस बीच, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि आदेश का विस्तृत अध्ययन करने के बाद सरकार फैसला करेगी कि इस फैसले के खिलाफ अपील करना है या नहीं। उन्होंने कहा, ‘हम हाई कोर्ट के आदेश को देखेंगे, परखेंगे और तब भविष्य के कदम पर फैसला करेंगे’।

न्यायमूर्ति जोशी ने कहा, ‘भारतीय दंड संहिता की धारा 304-ए (लापरवाही के कारण मौत का कारण बनना) और 304 भाग-दो (गैर-इरादतन हत्या) के बीच बड़ा फर्क है’। उन्होंने कहा, ‘एक तरफ 304-ए के तहत दो साल की अधिकतम सजा और जुर्माना या दोनों का प्रावधान है जबकि 304, भाग-दो के तहत अधिकतम 10 साल की सजा और जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। शुरू में जब मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा चला तो आरोप 304-ए के तहत था, लेकिन जब सत्र अदालत में मुकदमा शुरू हुआ तो इसे 304, भाग-दो के तहत कर दिया गया। लिहाजा, अपराध की प्रकृति अलग-अलग है और यह नहीं कहा जा सकता कि इस मुद्दे से जुड़े सवाल एक जैसे ही हैं’।

न्यायाधीश ने कहा कि भारतीय साक्ष्य कानून की धारा 33 के तहत रवींद्र पाटील के बयान को स्वीकार नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब उसकी मौत हो चुकी है और वह जिरह के लिए मौजूद नहीं है। न्यायमूर्ति जोशी ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष को सलमान के गायक दोस्त कमाल खान से भी पूछताछ करनी चाहिए थी क्योंकि 28 सितंबर 2002 को हादसे के वक्त वे अभिनेता के साथ टोयोटा लैंड क्रूजर में मौजूद थे। बचाव पक्ष के गवाह के तौर पर सलमान के ड्राइवर अशोक सिंह ने ट्रायल अदालत को बताया था कि अभिनेता नहीं बल्कि वह गाड़ी चला रहा था। अशोक ने यह भी कहा कि हादसे के बाद वह पुलिस के पास गया था लेकिन उसका बयान दर्ज नहीं किया गया। अदालत ने अभियोजन के इस आरोप को भी खारिज कर दिया कि अशोक ‘सिखाया-पढ़ाया हुआ गवाह’ था और वह 13 साल बाद सामने आया है।

न्यायाधीश ने कहा, ‘अशोक समय पर आया था। एक गलत छवि पैदा करने की कोशिश की गई, वह भी सत्र अदालत में विद्वान अभियोजक द्वारा, कि वह 13 साल बाद आया है’। न्यायाधीश ने कहा कि निचली अदालत ने बिना पंचनामे के बिल स्वीकार करके गलती की। यह रेन बार एंड रेस्टोरेंट का बिल था जहां दुर्घटना से पहले सलमान अपने दोस्तों के साथ कथित तौर पर गए थे और शराब पी थी।

नाकाम रहा अभियोजन पक्ष:
अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि अभियोजन पक्ष ऐसे सबूत पेश करने में नाकाम रहा है जिससे यह संदेह से परे जाकर साबित हो सके कि अपीलकर्ता (सलमान) गाड़ी चला रहे थे और शराब के नशे में थे, और यह भी कि क्या हादसा घटना से पहले टायर फटने की वजह से हुआ या घटना के बाद टायर फटा।… न्यायमूर्ति एआर जोशी