15 अगस्त को बॉलीवुड की सबसे मशहूर फिल्म शोले को 50 साल पूरे होने वाले हैं। रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने इससे जुड़े सभी लोगों के करियर में चार चांद लगा दिए। इनमें एक्टर्स से लेकर इस फिल्म के राइटर भी शामिल हैं। लेखक सलीम सलीम खान और जावेद अख्तर के करियर ने भी इस फिल्म के बाद उड़ान भरी। फिल्म के एक्टर्स किसी ऑल-स्टार टीम से कम नहीं थे, जिसमें अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार, अमजद खान और जया बच्चन जैसे नाम प्रमुख भूमिकाओं में थे। अब एक्टर फरहान अख्तर ने फिल्म से जुड़े कुछ किस्से शेयर किए और बताया कि ‘शोले’ का क्लाइमैक्स बदल दिया गया था।

प्रखर गुप्ता के पॉडकास्ट पर अपनी आने वाली फिल्म “120 बहादुर” का प्रमोशन करते हुए, फरहान ने बताया कि फिल्म इतनी कामयाब क्यों रही और कहा, “ये फिल्म आप पर गहरा असर छोड़ती है। जिस तरह से इसे बनाया गया था और सभी किरदार मजेदार थे। ऐसा नहीं था कि सिर्फ जय और वीरू ही रोमांचक थे। जेलर, सूरमा भोपाली, गब्बर और बसंती, सभी बेहतरीन किरदार थे। ये एक बड़ी हिट थी।” उन्होंने आगे कहा कि देखने में भी ये फिल्म बाकी फिल्मों से कहीं बेहतर थी और सिनेमाघरों में इसने जो अनुभव दिया वो भूलने लायक नहीं।

फरहान ने कहा, “मेरे लिए ये एक बहुत ही जबरदस्त इमोशनल फिल्म थी और इसमें भरपूर मनोरंजन भी था। फिल्म का निर्देशन और शूटिंग बेहद शानदार थी, और ऐसा कुछ पहले कभी नहीं हुआ था, शायद ‘मुगल-ए-आज़म’ के अलावा, आप सीन देखते हैं, और आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं, ‘उन्होंने इसे कैसे शूट किया?’ सिनेमाघरों में इसने जो अनुभव दिया, वो अद्भुत था, और टेकनिकल चीजें उस समय किसी भी अन्य फिल्म की तुलना में कहीं आगे थी। ये आज भी समय की कसौटी पर खरी उतरती है, और लोग अब भी उस तरह की फिल्में नहीं बनाते। हर कोई वीएफएक्स पर इतना निर्भर है, और वो कभी भी शोले जितना अच्छा नहीं लगेगा।”

क्लाइमेक्स के बारे में बात करते हुए, फरहान ने बताया कि उनके पिता जावेद अख्तर और सलीम खान स्क्रिप्ट में सुझाए गए बदलावों से खुश नहीं थे, लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने बताया, “फिल्म का इमोशनल कोर बहुत मजबूत था, ठाकुर के हाथ कटने के बाद बदला लेने की पूरी कहानी। हम जय वीरू की बातचीत में खो जाते हैं, लेकिन फिल्म की रीढ़ एक ईमानदार पुलिस अधिकारी था जो एक डाकू के पीछे पड़ जाता है जब वो उसके परिवार को मार डालता है। वो इन दो निकम्मे लोगों को काम पर रखता है, और अंत में वो गब्बर को मार देता है। एमरजेंसी के कारण उन्हें इसे बदलना पड़ा, और अब ओरिजिनल एंड अब उपलब्ध है। यही वो समय है जब वो गब्बर को अपने पैरों से कुचलने के बाद रोता है।”

उन्होंने आगे जावेद और सलीम के बारे में बात करते हुए कहा, “जब डैड और सलीम साहब को एंड बदलना था, तो वो सभी के आने के बारे में सोच रहे थे, गांव वालों, पुलिस और मुख्य किरदार सभी। उन्होंने मजाक में कहा कि अब बस एक डाकिया गायब है। एंड और पुलिस का आना उन्हें समझ नहीं आया, लेकिन उन्हें इसे बदलना पड़ा; उनके पास कोई ऑप्शन नहीं था।”

निर्देशक सिप्पी ने 2018 में पुणे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के दौरान फिल्म और इसके बदले हुए क्लाइमेक्स के बारे में भी बात की थी। उन्होंने बताया कि सेंसर बोर्ड ने उन्हें फिल्म का एंड बदलने के लिए मजबूर किया था। उन्होंने दर्शकों को बताया, “मैंने ‘शोले’ का एक अलग एंड शूट किया था, जहां ठाकुर गब्बर को मार देता है। लेकिन उन्होंने (सेंसर बोर्ड) इसकी अनुमति नहीं दी। वे ठाकुर द्वारा गब्बर को पैरों से मारने से खुश नहीं थे। मैं भी एक मुश्किल स्थिति में फंस गया था… ठाकुर उसे कैसे मार सकता था? वो बंदूक का इस्तेमाल नहीं कर सकता था क्योंकि उसके पास हाथ ही नहीं थे। वे बहुत ज्यादा हिंसा से भी नाखुश थे… उन्होंने कहा, ‘आपको अंत बदलना होगा’। मैं खुश नहीं था, लेकिन मैंने ऐसा किया।”