निर्देशक-विक्रमजीत सिंह
कलाकार-रणबीर कपूर, अर्जुन रामपाल, जैकलीन फर्नांडीस, अनुपम खेर।
इस फिल्म की इतनी खासियतें हैं कि आपको किसी एक फिल्म में देखने को नहीं मिलेंगी। एक तो ये कि इसकी कहानी क्या है इसका उत्तर पाने के लिए आपको जीतोड़ मानसिक व्यायाम करना होगा और उसके बाद भी समझना मुश्किल होगा कि आखिर इसमें जो हो रहा है उसका तारतम्य क्या है। उसके बाद ये जवाब भी मुश्किल से मिलेगा कि इसमें रणबीर कपूर ने रॉय नाम का जो किरदार निभाया है वो असल में है या सिर्फ कल्पना है या फिल्म के भीतर फिल्म वाला मामला है। फिर आप ये भी बूझने में काफी वक्त लगा देंगे कि किसका टांका किसके साथ फिट बैठता है- रणबीर कपूर ने रॉय नाम का जो किरदार निभाया है उसका, जैकलीन फर्नांडीस ने आयशा नाम का जो किरदार निभाया है उसके साथ या आयशा का अर्जुन रामपाल ने कबीर नाम का जो किरदार निभाया है उसके साथ। टांका भिड़ाने की बात इसलिए कही जा रही है कि कहीं भी दो किरदारों के बीच इश्क नाम की चीज तो दिखती ही नहीं और आयशा रॉय के साथ भी गाना गाते दिखती हैं और कबीर भी आयशा पर मोहित दिखता हैं।
आपकी परेशानी और न बढ़े इसलिए बता दिया जाए कि अर्जुन रामपाल ने इसमें कबीर नाम के एक फिल्मकार का किरदार निभाया है और जैक्लीन भी आयशा नाम की फिल्मकार है। और रणबीर कपूर बने हैं रॉय नाम के चोर। ऐसा चोर जो कभी चोरी करता नहीं दिखाया जाता बल्कि चोरी करने की तैयारी करते हुए दिखता है। कुछ जगहों पर दर्शकों को ये लगता है कि रॉय आयशा की फिल्म का भी किरदार है और कबीर की फिल्म का भी। पर वो कब किसकी फिल्म में है ये ठीक ठीक कह पाना कठिन है। शायद वो दोनों की फिल्मों में है और उसका किरदार दोनों की फिल्मों में एक जैसा है।
फिल्म शुरू होती है तो उत्सुकता बनी रहती है लेकिन बाद में मन में ये बैचेनी होने लगती है कि ये जल्द खत्म क्यों नहीं हो रही है। अनुपम खेर भी इसमें हैं और वे कबीर यानी अर्जुन रामपाल के पिता बने हैं। उनके होने से सिर्फ इतना साबित होता है कि अर्जुन रामपाल का एक पिता भी है जो अपने बेटे के साथ पीता है। निर्देशक ने क्या सिर्फ इसी बात को साबित करने के लिए अनुपम खेर वाला किरदार रखा है कि बेटा अपने पिता के साथ पीता है? हर शख्स का एक पिता होता है ये तो सार्वजनीन सत्य है। सिर्फ साथ पिलाने के लिए फिल्म में एक किरदार का होना कितना आवश्यक है? और इस प्रकार के कई बेतुके प्रकरण इस फिल्म में हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि फिल्म बनाने में काफी धन लगा है। मलेशिया में शूटिंग हुई है। कई शानदार प्राकृतिक दृश्य इसमें हैं और अगर आप फिल्म में अच्छे लैंडस्केप देखने में रुचि रखते हों तो इस फिल्म को देखते हुए आपको राहत जरूर होगी। अगर कोई सकारात्मक पहलू इस फिल्म में है तो यही कि प्रकृति के कई मनोरम दृश्य इसमें हैं। हां, ये अनुभव कुछ ऐसा जरूर है जैसे आप हॉल में कोई नाटक देखने गए हैं और वहां पता चले कि किसी फोटोग्राफर के कैमरे से ली गई तस्वीरों का स्लाइड शो चल रहा हो।