Ramayan Evening Episode 10 April: रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई…। श्रीराम ने सीता को वापस लाने की सौगंध खाई है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने वचन को पूरा करने के लिए भी जाने जाते हैं। ऐसे में वह अपनी सेना के साथ समंदर किनारे छावनी डाल दी है। उधर, लंका में विभीषण रावण को नीति की पाठ पढ़ाते हैं जिस पर रावण कहता है- नीति शक्तिहीन पुरुषों का बुना हुआ जाल है। विभीषण कहते हैं कि यह क्रूर साहसिक बल सत्य को नहीं मिटा सकता है।
विभीषण की ये बातें सुन रावण क्रोधित हो जाता है। वह कहता है वानर सबसे पहले तेरे ही घर में आया था। सारी लंका को उसने आग लगाई सिर्फ तेरा ही घर छोड़ा। तू घर का भेदी रहा है। रावण आगे कहता है- तू सदा से ही मेरा विरोधी रहा है। हमेशा अपना भोजन अलग पकाया। ये कहते हुए रावण विभीषण को पैरों से मारते हुए सदा दूर चले जाने को कहता है। विभीषण ये कहते हुए लंका छोड़ने की बात कहते हैं। वह रावण से कहते हैं आज से ये विभीषण सदा के लिए मर गया। मैं आज ही ये लंका छोड़ कहीं दूर चला जाता हूं।
रावण विभीषण को देश निकाला का आदेश देता है। वहीं विभीषण इस दुविधा में पड़ जाता है कि क्या उसे लंका छोड़ श्रीराम के पास चले जाना चाहिए। क्योंकि राम रावण के शत्रु हैं और किसी शत्रु का साथ देना धर्म नीति के लिहाज से सही नहीं। इसी पशोपेश में विभीषण अपनी मां कैकसी से मिलते हैं और सारी बात बताते है। वह पिता विश्रवा की बात याद दिलाती हैं रावण की अंत की बात कहती हैं। वह विभीषण को श्रीराम के पास चले जाने की बात कहती हैं।
विभीषण आकाश मार्ग से सुग्रीव के छावनी पहुंचते हैं। सूचना मिलते ही सुग्रीव तुरंत वहां पहुंचते हैं और नीचे नहीं उतरने और सत्य बोलने की हिदायत देते हैं। सुग्रीव से विभीषण पूरी बात बताते हैं जिसके बाद किष्किंधा नरेश राम से मिलते हैं। सुग्रीव राम से कहते हैं कि वह आपकी शरण में आना चाहता है। राम सबकी राय जानते हैं। लोगों के अलग-अलग राय आते हैं। जब सुग्रीव विभीषण का नाम लेते हैं तब हनुमान खुश हो जाते हैं और सारे संदेहों से परदा उठाते हैं।
‘हे नाथ मैं रावण का छोटा भाई विभीषण हूं।’ विभीषण राम से मिल काफी भावुक हो कर ये बात कहते हैं। वह कहते हैं कि वह राक्षसकुल में जन्में है और वह तामसिक हैं। वह उनसे मिलने के भी योग्य नहीं हैं। विभीषण ने अपने और रावण के बीच के मनमुटाव की वजहें बताते हैं। विभीषण कहते हैं वह घर, परिवार धन राज सबकुछ छोड़कर आपके शरण में आया हूं। वह राम से रक्षा करने की गुहार लगाते हैं। वहीं राम विभीषण को सेवक नहीं मित्र कहते हैं। और लंकेश कह उनका समुद्र के जल से राज्याभिषेक करते हैं…
Highlights
राम की शरण में पहुंच विभीषण को राम लंकेश की पदवी देते हैं और समुद्र के जल से उनका राज्याभिषेक करते हैं। राम कहते हैं वह जो वचन देते हैं वह खाली नहीं जाता। वहीं विभीषण के राज्याभिषेक की बात गुप्तचर के द्वारा रावण को पता चलती है। रावण ये सुन पहले हैरान होता है फिर ठहाके लगाते हुए कहता है एक भिखारी दूसरे को राज्य सौंप रहा है।
'हे नाथ मैं रावण का छोटा भाई विभीषण हूं।' विभीषण राम से मिल काफी भावुक हो कर ये बात कहते हैं। वह कहते हैं कि वह राक्षसकुल में जन्में है और वह तामसिक हैं। वह उनसे मिलने के भी योग्य नहीं हैं। विभीषण ने अपने और रावण की सारी बात बताते हैं। विभीषण कहते हैं वह घर, परिवार धन राज सबकुछ छोड़कर आपके शरण में आया हूं। वह राम से रक्षा करने की गुहार लगाते हैं। वहीं राम विभीषण को सेवक नहीं मित्र कहते हैं।
राम सबकी बातें सुन कहते हैं- जो शरण में आए उससे अभय रहो। कहते हैं ठगना पाप है ठगे जाना नहीं। वहीं हनुमान कहते हैं कि वह आपकी शरण में आया है। आपको ठगने नहीं। राम कहते हैं कि यदि शत्रु भी शरण में आये और दया याचना करे तो उसे भी शरण में आने देना चाहिए। राम कहते हैं कि यदि विभीषण की जगह राम भी आए तो उसे भी शरण दूंगा..
विभीषण आकाश मार्ग से सुग्रीव के छावनी पहुंचते हैं। सूचना मिलते ही सुग्रीव तुरंत वहां पहुंचते हैं और नीचे नहीं उतरने और सत्य बोलने की हिदायत देते हैं। सुग्रीव से विभीषण पूरी बात बताते हैं जिसके बाद किष्किंधा नरेश राम से मिलते हैं। सुग्रीव राम से कहते हैं कि वह आपकी शरण में आना चाहता है। राम सबकी राय जानते हैं। लोगों के अलग-अलग राय आते हैं। जब सुग्रीव विभीषण का नाम लेते हैं तब हनुमान खुश हो जाते हैं और सारे संदेहों से परदा उठाते हैं।
रावण विभीषण को देश निकाला का आदेश देता है। वहीं विभीषण इस दुविधा में पड़ जाता है कि क्या उसे लंका छोड़ श्रीराम के पास चले जाना चाहिए। क्योंकि राम रावण के शत्रु हैं और किसी शत्रु का साथ देना धर्म नीति के लिहाज से सही रहेगा। इसी पशोपेश में विभीषण अपनी मां कैकसी से मिलते हैं और सारी बात बताते है। वह पिता विश्रवा की बात याद दिलाती हैं रावण की अंत की बात कहती हैं। वह विभीषण को श्रीराम के पास चले जाने की बात कहती हैं।
विभीषण रावण को नीति की पाठ पढ़ाते हैं जिस पर रावण कहता है- नीति शक्तिहीन पुरुषों का बुना हुआ जाल है। विभीषण कहते हैं कि यह क्रूर साहसिक बल सत्य को नहीं मिटा सकता है। विभीषण की बातें सुन रावण क्रोधित हो जाता है। वह कहता है वह वानर सबसे पहले तेरे ही घर में आया था। सारी लंका को उसने आग लगाई सिर्फ तेरा ही घर छोड़ा। तू घर का भेदी रहा है। रावण आगे कहता है- तू सदा से ही मेरा विरोधी रहा है। हमेशा अपना भोजन अलग पकाया। ये कहते हुए रावण विभीषण को पैरों से मारते हुए सदा दूर चले जाने को कहता है। विभीषण ये कहते हुए लंका छोड़ने की बात कहते हैं। वह रावण से कहते हैं आज से ये विभीषण सदा के लिए मर गया। मैं आज ही ये लंका छोड़ कहीं दूर चला जाता हूं।
विभीषण रावण को सीता का हरण करने की बात याद दिलाई। वह राम की शक्ति से परिचय कराते हैं। हनुमान की बात करते हुए विभीषण कहते हैं- जिस वानर का आप उपहास कर रहे हैं उसके निशान लंका के कोने-कोने में मौजूद हैं। विभीषण की कई बातें रावण को चुभती हैं। उधर, इंद्रजीत भी अपने काका से ऐसी बात सुन कायर कहता है। विभीषण राम को सीता को वापस लौटाने की बात कहते हैं..
सीता राम और लक्ष्मण के लंका आने की बात सुन काफी प्रसन्न होती हैं। वह प्रार्थना करते हुए कहती हैं- तुमने मेरे सपने सत्य किया था और तुम ये भी सपना सत्य करोगी। उधर, रावण भी राम के लंका पर चढ़ाई की बात पूरी सभा में कहता है। सभा में सभी इस बात की ओर इशारा करते हैं कि वह विशाल समुद्र पार कर यहां तक नहीं आ पाएंगे। जबकि विभीषण राम और हनुमान की शक्ति का भान कराते हैं।
रामानंद की ‘रामायण’ में सुग्रीव का किरदार निभाने वाले एक्टर श्याम सुंदर की हाल ही में निधन की खबर आई। श्याम सुंदर की नाती ने ऐसे में उन्हें याद करते हुए एक ट्वीट किया। अपने ट्वीट में उन्होंने बताया कि सुग्रीव बने श्याम सुंदर उनके नाना जी थे, जो 26 मार्च को खत्म हुए। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा- ‘सुग्रीव औऱ बाली का कैरेक्टर श्याम सुंदर जी ने किया जो कि मेरे नाना जी हैं। वह 26 मार्च को खत्म हुए उन्होंने बॉलीवुड और हॉलीवुड की फिल्मों में भी काम किया।’ पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
श्री राम जी द्वारा समुद्र देव से मार्ग के लिए विनय करना पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी। सर्बरूप सब रहित उदासी..। अंगद, नल नील तथा जामवंत सहित वानर सेना के साथ श्री राम समुद्र तट पर पहुंच चुके हैं। वह लंका के लिए समुद्र देव से रास्ता देने को कहते हैं। राम दोनों हाथ जोड़कर समुद्र देव से इसके लिए प्रार्थना करते हैं।
9 अप्रैल के एपिसोड में आपने देखा कि कैसे सीता हनुमान की पूंछ में आग लगाए जाने की बात सुन परेशान हो जाती हैं। वह अग्नि देव से प्रार्थना करती हैं और कहती हैं,.यदि हनुमान ने मेरे पति की सेवा की है। मेरे पतिव्रता में कोई खोट नहीं रहा है तो मेरे पुत्र हनुमान के लिए अग्निदेव शीतल हो जाइए। उधर हनुमान पूंछ में आग लगने के बाद अपने को छुड़ा लेते हैं और पूरी लंको को आग के हवाले कर देते हैं। पूरी लंका धू-धू जल उठती है। रावण ये सब देखता रह जाता है। वहीं रावण की पत्नी मंदोदरी कहती है कि देख लीजिए स्वामी जिसका एक सेवक आपकी लंका को जला दिया उसका स्वामी कैसा हो। वहीं अब राम समंदर पार कर लंका पर चढ़ाई करने की तैयारी कर चुके हैं...