रामानंद सागर बॉलीवुड के उन निर्देशकों में शुमार हैं जिन्होंने 60 के दशक में एक से बढ़कर एक फिल्में बनाई। लेकिन उनकी लोकप्रियता बाहरी दुनिया में तब हुई जब उन्होंने पौराणिक आख्यानों के किरदारों को छोटे परदे पर उकेरने का साहस किया। 80 के दशमें में रामायण और महाभारत बनाकर अपने नाम को अमर कर गए। लेकिन आखिरी दिनों में वह टीबी जैसी बीमारी से घिरे रहे और टीबी सेनिटोरियम में मौत के बिस्तर से डायरी लिखे जिसे पढ़ लोग हैरान हो जाते थे।

एक इंटरव्यू में रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर ने इस बात का खुलासा करते हुए कहा, रामानंद सागर पढ़ने-लिखने का काफी शौक रखते थे। शौक भी इस कदर था कि वे रात-दिन किताबों में ही घुसे रहते थे। एक दिन उनको खांसी आई जिसमें खून भी निकला। बकौल प्रेम सागर -एक दिन उन्हें खांसी आई। फिर देखा तो उनके कपड़े में खून लगा हुआ था। फैमिली डॉक्टर को बुलाया और जांच में पता चला कि उन्हें टीबी है।’

उस वक्त टीबी एक गंभीर बीमारी मानी जाती थी। इंटरव्यू में प्रेम सागर ने बताया, ‘उस वक्त टीबी का कोई इलाज नहीं था। डॉक्टर ने उन्हें टीबी सेनिटोरियम में भर्ती हो जाने की सलाह दी थी। फिर पिताजी को (रामानंद सागर) उनके दादाजी टंगमर्ग स्थ‍ित टीबी सेनिटोरियम लेकर गए और वहां उन्हें भर्ती कर दिया। यहां टीबी पेशेंट्स जिंदा जरूर आते थे लेकिन उनकी लाश बाहर जाती थीं’

प्रेम सागर ने इंटरव्यू में आगे बताया, जिस टीबी सेनिटोरियम में रामानंद सागर भर्ती हुए वहां एक कपल भी था जो एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। दोनों वहां से जब स्वस्थ होकर निकले तो उन्हें पिताजी देखकर चकित रह गए। तब उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि प्यार किसी भी बीमारी को मात दे सकता है।

बता दें उस कपल से प्रेरित होकर रामानंद सागर ने रोज डायरी लिखनी शुरू कर दी- ‘मौत के बिस्तर से डायरी टीबी पेशेंट की’। रामानंद सागर के इस डायरी को साहित्यकार पढ़ते थे। प्रेम सागर के मुताबिक रामानंद सागर ने फिर कॉलम लिखना शुरू कर दिया जिसे पढ़कर अखबार के संपादक हैरान हो जाते थे। वे सोचते कि एक आदमी मर रहा है और वो लोगों को बात रहा है कि जीवन कैसे जीना है।

बकौल प्रेम सागर, रामानंद के कॉलम ने संपादक का दिल छू लिया और उन्होंने अपने अखबार में एक कॉलम निकालाना शुरू किया- ‘मौत के बिस्तर से रामानंद सागर’। यह इतना लोकप्रिय हुआ कि फैज अहमद फैज, किशनचंद्र, राजिंदर सिंह बेदी जैसे बड़े साहित्यकारों ने भी पिताजी के आर्ट‍िकल्स को सराहा औ वे भी उनके फैन हो गए। इसके बाद पिताजी (रामानंद सागर) बतौर लेखक पहचाने जाने लगे। रामानंद सागर ने 32 लघुकथाएं, 4 कहानियां, 1 उपन्यास, 2 नाटक लिखे हैं।