गीता बाली, मधुबाला, भारत भूषण और कई अन्य जैसे दिग्गजों के करियर बनाने वाले दिवंगत केदार शर्मा ने राज कपूर के साथ भी काम किया था। मगर दोनों की मुलाकात कैसे हुई थी वो हालात थोड़े अजीब थे। केदार शर्मा पाकिस्तान से कोलकाता होते हुए मुंबई आए थे। उन्होंने गीतकार, अभिनेता और फिर निर्देशक के रूप में काम किया। उन्होंने ‘नील कमल’, ‘बावरे नैन’ और ‘जोगन’ जैसी यादगार फिल्में बनाई थीं। लेकिन राज कपूर को स्टार बनाने से पहले वो उन्हें सही रास्ते पर लगाए थे और ये काम उन्हें खुद राज कपूर के पिता और उनके दोस्त पृथ्वीराज कपूर ने सौंपा था। पृथ्वीराज कपूर इस बात से निराश थे कि उनका बेटा किशोरावस्था में ही भटक गया था, लेकिन केदार शर्मा ने उन्हें सुधारने में मदद की।

1999 में अपनी मृत्यु से कुछ महीने पहले, शशि रंजन ने ‘एक मुलाकात’ नाम की इंटरव्यू सीरीज में केदार शर्मा को बुलाया गया था। केदार शर्मा ने 1940 और 1950 के दशक में उस वक्त के लगभग हर कलाकार के साथ काम किया था। इसलिए उनसे राज कपूर के बारे में भी पूछा गया और उन्होंने एक बड़ा खुलासा किया।

उन्होंने कहा, “पृथ्वी मेरा बहुत सम्मान करता था। मैंने देखा कि एक दिन वो बहुत उदास था, रोने जैसा था। एक दोस्त की तरह, मैंने उससे हाथ जोड़कर कहा, ‘मुझे नहीं पता कि समस्या क्या है, लेकिन अगर मैं कुछ मदद कर सकूं, तो मुझे बता देना। उसने मुझसे कहा, ‘राज अपनी किशोरावस्था से परेशान है। पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय, वो अक्सर रेड लाइट एरिया में जाता है और लड़कियों से मिलता है।’ मैंने उससे कहा कि अब और चिंता मत करो, और मैं उसे वापस सही रास्ते पर ला दूंगा।”

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केदार शर्मा ने राज कपूर को सुधारने की जिम्मेदारी ली और अपने काम पर लग गए। उन्होंने कहा, “राज मेरे साथ असिस्टेंट के तौर पर काम करने आए और जब भी मैं उनसे पूछता कि क्या वो तैयार हैं, तो वो कहते, ‘हां, अंकल, मैं तैयार हूं’। फिर वो कैमरे के लेंस में देखते और अपने बालों में कंघी करते। आखिर उन्हें ताली बजाने के लिए अपने बालों को ठीक करने की क्या जरूरत थी? हम लोकेशन पर शूटिंग कर रहे थे। उन दिनों रियर प्रोजेक्शन तकनीक नहीं थी, हमें वास्तव में बैकग्राउंड शूट करना पड़ता था। मैंने उन्हें बुलाया और उन्होंने कहा, ‘हां, अंकल, मैं आपका बच्चा हूं, मुझे बताइए’। मैंने उन्हें बताया कि उन्हें कैमरे में देखने के लिए अपने बाल ठीक करने की जरूरत नहीं है।”

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केदार ने बताया कि ऐसा बोलने के बावजूद भी राज ने फिर वही किया। “मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने उसे फिर से बुलाया और उसके चेहरे पर एक जोरदार थप्पड़ मारा। उसके चेहरे पर एक निशान रह गया। मैं उस रात सो नहीं सका। अगली सुबह, वो मुझसे मिलने आया। निशान अभी भी था। मुझे एहसास हुआ कि वो लड़का कैमरे का सामना करना चाहता था; वो एक अभिनेता बनना चाहता था, लेकिन मैं उसे निर्देशक बनाने की कोशिश कर रहा था। मैंने उसे साइनिंग अमाउंट के तौर पर 5,000 रुपये और ‘नील कमल’ के लिए 25,000 रुपये दिए।”

राज कपूर के एक्टिंग करियर की शुरुआत ऐसे हुई थी और कुछ सालों बाद ही वो हिंदी सिनेमा की सबसे महान हस्तियों में से एक बन गए। जिनके अभिनय और फिल्मों को आज भी बहुत सम्मान दिया जाता है। उन्हें हिंदी सिनेमा को दुनिया भर में ले जाने का श्रेय भी दिया जाता है।