शाहरुख खान की आने वाली फिल्म रईस में मुख्य किरदार कहता है, “मियां भाई की डेयरिंग और बनिये का दिमाग।” फिल्म एक शराब माफिया और गैंगेस्टर “रईस” की कहानी है। फिल्म के हीरो शाहरुख खान और निर्देशक राहुल ढोलकिया इस बात से इनकार कर रहे हैं कि उनकी फिल्म गुजरात के शराब माफिया और गैंगेस्टर अब्दुल लतीफ पर आधारित है। फिल्म लतीफ की जिंदगी पर बनी हो या न हो इसने पुलिस मुठभेड़ में मार गये लतीफ को करीब एक दशक बाद दोबारा सुर्खियों में ला दिया है। लेकिन क्या सचमुच लतीफ उतना ही “डेयरिंग” था जितना उसे समझा जा रहा है?

रिटायर्ड असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर आईसी राज कहते हैं, “डेयरिंग तो था उसमें लेकिन दूसरों के दम पर था। शरीफ खान पठान और रसूल खान जैसे लोग थे उसके पास जो शार्पशूटर थे, चाकूबाज थे। इन लोगों की वजह से लतीफ का नाम हो गया और वो फॉर्म में रहने लगा।” राज ने 1995 में लतीफ की गिरफ्तारी में अहम भूमिका निभायी थी। राज जब गुजरात एंटी-टेररिज्म स्क्वायड में तैनात थे उन्होंने महीने तक लतीफ से पूछताछ की थी। शरीफ खान पठान और रसूल खान पठान मुंबई के गैंगेस्टर करीब लाला के कुख्यात पठान गैंग के सदस्य थे। बाद में शरीफ खान का नाम हरेन पंड्या हत्याकांड में भी सामने आया था।

लतीफ मुंबई के कुख्यात गैंगेस्टर करीम लाला के भतीजे आलमजेब के माध्यम से शरीफ और रसूल के संपर्क में आया था। दाऊद जब साबरमती जेल में बंद था तो आलमजेब ने उस पर जानलेवा हमला किया लेकिन वो बाल-बाल बच गया। कहते हैं कि उसी समय लतीफ ने तय कर लिया कि वो भी “भाई” बनेगा। धंधा बढ़ने के साथ ही लतीफ की दुश्मनियां भी बढ़ती गयीं। जैसा कि शाहरुख खान की फिल्म का किरदार “रईस” कहता है, “धंधे के लिए जो सही वो सही, धंधे के लिए जो गलत” लतीफ की जिंदगी का भी फलसफा था। लतीफ के एक पड़ोसी बताते हैं कि पोपटियावाड़ की उसके दो मंजिला मकान के तहखाने में वो अपने दुश्मनों को टार्चर करता था। लतीफ के एक पूर्व साथी कहते हैं, “लतीफ का शराब का कारोबार पूरे राज्य में फैल गया और इस दौरान कई लोग मारे गए।”

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शाहरुख खान की फिल्म रईस को गुजरात के गैंगेस्टर अब्दुल लतीफ के जीवन पर आधारित बताया जा रहा है लेकिन फिल्म निर्माताओं ने इससे इनकार किया है।

1990 के दशक में लतीफ दाऊद से दुबई में मिला। कहते हैं कि एक मौलवी ने दोनों को कुरान की कसम दिलायी कि वो ताउम्र दोस्त बने रहेंगे और मिलजुलकर काम करेंगे। दाऊद का साथ मिलने के बाद लतीफ पहले से भी ज्यादा खतरनाक हो गया।  धीरे-धीरे उसकी हिम्मत इतनी बढ़ गयी कि 1992 में लतीफ के गुर्गों ने कांग्रेस के राज्य सभा सांसद रऊफ वलिउल्लाह को दिनदहाड़े गोली मार दी। रऊफ लतीफ की पुलिस और राजनेताओं से सांठगांठ का ब्योरा तैयार कर रहे थे। 1992 में ही लतीफ के गैंग ने कुख्यात शराब तस्कर हंसराज त्रिवेदी और उसके आठ गुर्गों की हत्या कर दी। कहा जाता है कि इस हत्या में राज्य में पहली बार एकके-47 का इस्तेमाल हुआ था।

Abdul Latif
1995 में अब्दुल लतीफ को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया और उसे गुजरात लाया गया। (फाइल फोटो)

रऊफ की हत्या के बाद गुजरात पुलिस बुरी तरह लतीफ के पीछे पड़ गयी। उस पर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में टाडा के तहत मामला दर्ज किया गया। लतीफ दुबई से होते हुए पाकिस्तान भाग गया लेकिन 1995 में वो भारत वापस आ गया। महबूब सीनियर कहते हैं, “गुजरात में वो भाई था, लोग उसे सलाम करते थे। पाकिस्तान में आम इंसान। इसलिए उसका वहां मन नहीं लगा। इसीलिए वो वापस आ गया।”

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इसी मकान में हुई मुठभेड़ में अब्दुल लतीफ 1997 में मारा गया।

गुजरात एंटी-टेररिज्म स्क्वायड लम्बे समय से लतीफ के पीछे पड़ा हुआ था। गुजरात पुलिस को इस बात की भनक मिल गयी थी कि लतीफ भारत आ चुका है और दिल्ली में छिपा हुआ है। आखिरकार पुलिस ने नवंबर 1995 में दिल्ली के एक टेलीफोन पीसीओ से लतीफ को गिरफ्तार कर लिया। लतीफ करीब दो साल तक साबरमती जेल में बंद रहा। जेल में रहने के दौरान भी उसका आतंक कायम रहा। उसके गुर्गों ने राज्य के कई ठेकेदारों और कारोबारियों का फिरौती के लिए अपहरण किया था। 29 नवंबर 1997 को पुलिस पूछताछ के लिए लतीफ को ले गयी। पुलिस के अनुसार जेल वापसी के समय लतीफ पेशाब लगने का बहाना बनाकर भागने लगा और आखिरकार मुठभेड़ में मारा गया।