सिने जगत की सबसे मशहूर और सदाबहार हस्तियों में शुमार किशोर कुमार का रविवार (4 अगस्त) को 90वां जन्मदिन है। हालांकि 13 अक्टूबर 1987 को ही उनका निधन हो गया था लेकिन अब भी वे हर दिल अजीज हैं। उनके चाहने वालों की फेहरिस्त अब तक जरा भी कम नहीं हुई। फिल्मी दुनिया में सिंगिंग से लेकर एक्टिंग और डायरेक्शन तक किशोर कुमार ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनके जीवन में कई यादगार उपलब्धियां, चुनौतियां और किस्से रहे हैं। अरसे से उनके प्रशंसक उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ दिलाने के लिए भी मशक्कत कर रहे हैं। आइये याद करते हैं किशोर दा की जिंदगी के यादगार लम्हों को…
सहगल साहब के दीवाने किशोरः मध्य प्रदेश के खंडवा में 4 अगस्त 1929 के दिन एक बंगाली परिवार में किशोर दा का जन्म हुआ था। उनका असली नाम आभास कुमार गांगुली था। किशोर बचपन से ही केएल सहगल साहब के दीवाने थे। वे उन्हीं की तरह बनना चाहते थे और उनसे मिलने की चाहत ही किशोर को महज 18 वर्ष की उम्र में मायानगरी मुंबई तक खींच लाई। हालांकि उनकी ये ख्वाहिश अधूरी ही रह गई।
‘जिद्दी’ से हुई थी सिंगिंग की शुरुआतः 1948 में बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘जिद्दी’ में उन्होंने देवानंद के लिए ‘मरने की दुआएं क्यूं मांगू’ गाया था। एक बार महान संगीतकार ओपी नैयर ने उनके लिए कहा था किशोर कुमार जैसा पार्श्वगायक हजार सालों में केवल एक ही बार जन्म लेता है। किशोर दा के सुपरहिट गानों की फेहरिस्त बेहद लंबी है इन्हीं में एक ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू’ आज भी लोगों के होठों पर छा जाता है। उनके गायन की खासियत यह थी कि एक बार वो जिस गाने को आवाज देते थे वह उसके बाद हर शख्स के लिए गाना आसान हो जाता था। किशोर दा ने हिंदी के अलावा बांग्ला, मराठी, असमिया, गुजराती, कन्नड़, उड़िया और भोजपुरी फिल्मों में भी आवाज का जादू बिखेरा था। हिंदी में उन्होंने 600 से भी ज्यादा फिल्मों में गाने गाए।
देश की पहली कंप्लीट कॉमेडी फिल्मः ‘चलती का नाम गाड़ी’ देश की पहली कंप्लीट कॉमेडी फिल्म मानी जाती है। इस फिल्म में किशोर कुमार ने अपने दोनों भाइयों अशोक कुमार और अनूप कुमार के साथ अभिनय किया था। इस फिल्म हास्य अभिनय में ऐसे आयाम स्थापित किए जो मील का पत्थर बन गए। अशोक कुमार उस समय नामी अभिनेताओं में शुमार थे और वे चाहते थे की किशोर भी उन्हीं की राह पर चले लेकिन किशोर दा के मन में पार्श्वगायक बनने की चाहत थी। फिल्मों में एक्टिंग के साथ-साथ उन्हें गाने का मौका भी मिला।
इमरजेंसी में लगा था बैनः 1975 में देश में लगे आपातकाल के दौरान किशार दा को एक कार्यक्रम में शिरकत करने का मौका मिला था। इसके लिए उन्होंने पारिश्रमिक मांगा तो आकाशवाणी और दूरदर्शन ने प्रतिबंधित कर दिया। 1987 में उन्होंने फिल्में छोड़कर खंडवा जाने का फैसला लिया। उनके होठों पर उन दिनों अक्सर एक बात रहती थी- ‘दूध-जलेबी खाएंगे, खंडवा में बस जाएंगे’ हालांकि ऐसा हो न सका। 13 अक्टूबर 1987 को ही हार्ट अटैक के चलते उनका निधन हो गया।
भारत रत्न देने के जूझ रहे समर्थकः इस प्रख्यात पार्श्व गायक और अभिनेता के प्रशंसकों ने केन्द्र सरकार से मांग की है कि उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया जाए। साथ ही उनके पुश्तैनी मकान को संग्रहालय बनाने की भी मांग है। शनिवार (3 अगस्त) को उनके समर्थकों ने उन्हें उनकी पसंदीदा दूध-जलेबी का भोग भी लगाया।