गिरिजाशंकर
मध्य प्रदेश के जिस ऐतिहासिक शहर में एक भी सिनेमा हाल न हो, वहां प्रयास प्रोडक्शन के मुखिया फिल्म अभिनेता राजा बुंदेला की अगुआई में पिछले 9 वर्षों से हर साल अंतर राष्ट्रीय फिल्म समारोह का आयोजन हो रहा है। यह शहर है खजुराहो, जहां पिछले दिनों खजुराहो अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह का आयोजन किया गया। यह फिल्म समारोह कई मायनों में फिल्म समारोहों की परिपाटी से भिन्न है और यही इसकी विशिष्टता भी है।
सिनेमा को दूरदराज के इलाकों तक पहुंचाने तथा छोटे-छोटे शहरों में फिल्म निर्माण से जुड़े फिल्मकारों को मंच प्रदान करने के विचार के साथ 9 साल पहले खजुराहो फिल्म महोत्सव का आगाज हुआ था। इसमें अलग-अलग श्रेणी में फिल्में आमंत्रित की जाती हैं और इनका प्रदर्शन होता है। न किसी फिल्म को खारिज किया जाता है और न किसी को पुरस्कृत, बल्कि सभी फिल्मों का प्रदर्शन, बांस बल्ली तिरपाल आदि से विशेष रूप से बनाए गए झोपड़ी नुमा ‘टपरा टाकीजों में होता है जहां बड़ी संख्या में ग्रामीण दर्शक इसका आनंद उठाते हैं।
इस वर्ष फिल्म महोत्सव में तीन सौ से अधिक फिल्में, वृत्तचित्र व लघु फिल्में आई थीं जिनका पूरे दिन खजुराहो व आसपास के इलाकों में बनाए गए एक दर्जन टपरा टाकीजों में प्रदर्शन किया गया। इन फिल्मों में विषयों व तकनीकी विविधता के साथ अपार संभावनाएं जुड़ी थी। फिल्म प्रदर्शन के दौरान फिल्मों के निदेशक व कलाकार उपस्थित रहते हैं और आपस संवाद भी करते हैं तथा दर्शकों से भी रूबरू होते हैं।
मशहूर अभिनेत्री श्रीदेवी को समर्पित इस साल के फिल्म समारोह में आशा पारेख, हरीश मियानी, जयाप्रदा, बोनी कपूर, असरानी, विजय कश्यप, आर्या शर्मा, अजय मनचंदा जैसे दर्जन भर से अधिक सितारों ने जहां शिरकत की, वहीं रंगमंच के नामी निर्देशक एमके रैना व नाटककार असगर वजाहत ने भी हिस्सा लिया। दिन में कार्यशाला और कक्षाएं भी आयोजित की गर्इं। जिसमें सैकड़ों नौजवानों ने भाग लिया और फिल्म निर्माण तथा लेखन के गुर सीखे।
इस महोत्सव की परिकल्पना फिल्म अभिनेता राजा बुंदेला ने की और उनकी अगुआई में ही हर साल इसका आयोजन हो रहा है। फिल्म अभिनेत्री सुस्मिता मुखर्जी आयोजन की सूत्रधार रहती हैं। रंग निर्देशक राकेश साहू तथा फिल्म अभिनेता आरिफ शहडोली, आदि की टीम पूरे आयोजन के सहयोगी रहते हैं।
एक दौर था जब टूरिंग टाकीज होते थे, जो गांव-गांव जाकर फिल्में दिखाती थी। यह दौर खत्म हो गया है और सिनेमा ग्रामीण इलाकों या कहें अवाम से दूर होकर मल्टीप्लैक्स तक सिमट गया है। ऐसे दौर में खजुराहो फिल्म महोत्सव सिनेमा को गांवों तक या कहें अवाम तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम बन गया है।
इस महोत्सव की एक खासियत है सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सजी शामें। दिन में फिल्म प्रदर्शन के साथ हर शाम विशाल मंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति होती है, जिसमें आंचलिक कलाओं के साथ ही शास्त्रीय विद्याओं की प्रस्तुति सैकड़ों कलाकार करते हैं। यह कार्यक्रम सांस्कृतिक आंदोलन का रूप ले चुका है। इन कार्यक्रमों में हजारों ग्रामीण दर्शकों की उपस्थिति इसे अवाम का महोत्सव बनाती है।
