नेशनल अवॉर्ड विनिंग एक्टर पंकज त्रिपाठी गुरुवार को एक्सप्रेसो के पांचवें एडिशन में शामिल हुए। जहां उन्होंने कई अलग-अलग मुद्दों पर बात की। उन्होंने अपने बचपन के बारे में बताया, बिहार के गांव से मुंबई तक के सफर के बारे में बताया और साथ ही कहा कि अब हिंदी सिनेमा दर्शकों के साथ कनेक्ट नहीं कर पा रहा है।
पंकज त्रिपाठी ने कहा कि जब हम ऐसी कहानियां ही नहीं दे पा रहे हैं तो दर्शक हमसे कनेक्ट कैसे करेंगे। पंकज ने 90 के दशक के समय में जो सिनेमा था उसके बारे में बात करते हुए कहा, “हम स्क्रीन पर किरदारों को चलते और बात करते देख रहे थे और उनसे जुड़ाव महसूस कर रहे थे। हम उनके साथ हंसे, हम उनके साथ रोये, लेकिन अब, कोई जादू नहीं है। दर्शक कनेक्शन खोज रहा है और उन्हें किरदार के साथ जुड़ाव की भावना की जरूरत है। वे रूट की तलाश में हैं, जो अब उन्हें नहीं मिल रही है।”
पंकज त्रिपाठी ने ये भी बताया कि कैसे उनकी फिल्म ‘बरेली की बर्फी’ हाल ही में बड़े पर्दे पर लौटी और फिर से सभी का दिल जीत लिया। उन्होंने कहा, “रूढ़ कहानियां बहुत जरुरी हैं। अगर हिंदी सिनेमा अपनी जड़ों से कट जाएगा तो यह हमेशा एक समस्या बनी रहेगी।”
पंकज त्रिपाठी ने आगे कहा, “स्त्री के बाद, देखिए कितनी हॉरर कॉमेडी फ़िल्में बनीं। एक समय के बाद, लोग न तो डरेंगे और न ही हंसेंगे।” आइटम सॉन्ग के बारे में बात करते हुए पंकज ने कहा कि निर्माता सोचते हैं कि फिल्म में ऐसे गाने होंगे तो फिल्म हिट होगी। त्रिपाठी ने कहा कि अगर एक्सपेरिमेंट नहीं किए जाएंगे तो दर्शक बहुत जल्दी ऊब जाएंगे।
अपना खुद का उदाहरण देते हुए पंकज ने तर्क दिया, “हर हफ्ते कम से कम एक बार, मुझे मिर्ज़ापुर के कालीन भैया जैसा किरदार मिलता है। लेकिन मैं ऐसे ही किरदार क्यों करना चाहूंगा जब मैं पहले से ही सीरीज के चौथे सीजन में हूं। यह ऐसा है जैसे निर्माता गाय से तब तक दूध निकालना चाहते हैं जब तक वह पीछे मुड़कर उन्हें बाहर न निकाल दे।”