ओटीटी की आगामी अधिकतर वेब सीरीज में भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण या उनसे जुड़ी विषमताओं पर आधारित विषय और निर्माता-निर्देशक, लेखक बतौर भी महिलाओं को प्राथमिकता दी जाएगी, यह घोषणा दो साल पहले ओटीटी मलिकों के संगठन के एक सेमिनार में की गई थी। विगत वर्ष इस पर अमल भी शुरू हुआ था, लेकिन लगता है इस पहल ने रफ्तार अब जाकर पकड़ी है। पचास फीसदी से ज्यादा वेब सीरीज नायिका प्रधान नजर आ रहे हैं, जो बदलाव की दिशा में एक सुखद संदेश हैं।
‘बॉम्बे बेगम्स’ : आधी दुनिया का पूरा सच
बदलते दौर की भारतीय नारी के विविध वर्ग के तमाम स्वरूप और परिस्थितियों को एक संपूर्ण शृंखला में पिरोकर 2021 में नेटफ्लिक्स पर लाई थीं अलंकृता श्रीवास्तव। फिल्मकार प्रकाश झा के प्रोडक्शन में प्रमुख सहायक निर्देशक रहीं अलंकृता ने झा साहब के बैनर पर नए जमाने की भारतीय महिला को लेकर एक साहसिक सामग्री के साथ ‘लिपस्टिक: अंडर माय बुर्का’ लिखी और निर्देशित की थी। इसकी सराहना मिलने पर नेटफ्लिक्स पर उन्होंने ऐसे ही दबंग किस्म के कथानक को बाम्बे बेगम्सह्ण शीर्षक से उतारा। उनकी ही लिखी कहानी में एक खास कंपनी से ही सम्बंधित पांच महिला किरदारों को खुलकर अपने मन की करने को आजाद छोड़ दिया गया है। बंबई महानगर के बीच से अलग अलग तबके और हैसियत वाली ये महिला पात्र, कतई पारम्परिक नहीं हैं और रिश्तों की सीमित परिभाषा में खुद को कैद नहीं मानतीं। बाम्बे बेगम्स के पहले भाग को इन्हीं पांच किरदारों की दिलचस्प कहानियों के साथ दूसरे भाग में आगे बढ़ाया गया है।
‘मिसेज अंडरकवर’ : गृहिणी और एजंट की दोहरी भूमिका
नायिका किसी जमाने में जासूसी का प्रशिक्षण लेकर भूल जाती है और अपनी घर गृहस्थी में खुद को ढाल लेती है। लंबे अंतराल बाद अचानक उसके सामने फिर एक बार अंडरकवर एजंट बतौर एक हत्यारे को खोज निकालने का आफर चुनौती बनकर आता है। ना-ना करते हुए भी वह इसे स्वीकार करती हैं और एक एनजीओ में काम करते हुए हत्यारे का पर्दाफाश करती है।
‘जुबली’: बंटवारे का दंश
अमेजन की ताजा और चर्चित वेब सीरीज ‘जुबली’ भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दंश को संजीदगी से पेश करती फ़िल्म स्टूडियो की कहानी पर केंद्रित है। कहानी के मुताबिक बंबई में राय टाकीज के मालिक के सामने देश का विभाजन..अपने फलते-फूलते फिल्म कारोबार के अस्तित्व पर ही सवाल लगाने वाला साबित हो गया। देश छोड़ कर पाकिस्तान जा बसे राय टाकीज से जुड़े अहम लोगों को वहां भी तमाम तरह की मुसीबतों से दो चार होना पड़ा। राय टाकीज के वित्त प्रदाताओं और अभिनेताओं के बीच रस्साकशी को निर्देशक ने जुबली में बेहद ईमानदारी से ही नहीं दिलचस्प और भव्य तरीके से पेश किया है।
सिर्फ गालियों और कुछ एक दृश्यों के ठूंसे जाने को भेड़चाल या व्यावसायिक मजबूरी मानकर प्रौढ़ दर्शक बर्दाश्त कर लें तो ‘जुबली’ को ओटीटी प्लेटफार्म पर अब तक की कुछ उम्दा सीरीजों में से एक कहने से रोका नहीं जा सकता।
(Written By- Rajeev Saxena)