वसंत देसाई- 9 जून, 1912-22 दिसंबर 1975
गदर के 1957 में सौ साल पूरे होने पर हिंदी सिनेमा में क्या हो रहा था? तब मुंबई फिल्मजगत में कुछ ऐसी फिल्में थीं जिन्हें जनता खूब पसंद कर रही थी। एक थी अशिक्षा के परिणाम के कारण साहूकारी शोषण और महिला संघर्ष की दास्तां दिखाने वाली महबूब खान की ‘मदर इंडिया’। दूसरी थी इनसान की आजादी और उसके अंदर बेहतर इनसान बनने की संभावनाओं की पड़ताल करने वाली वी शांताराम की ‘दो आंखें बारह हाथ’। तीसरी फिल्म थी गुरु दत्त की ‘प्यासा’, जिसका नायक दुनिया के चालचलन से परेशान होकर उसे जला देने की बात कर रहा था। एक और फिल्म थी ‘नया दौर’ जिसमें इस बात पर विमर्श किया जा रहा था कि देश का विकास इनसानी हो मशीनी।
1957 में दूसरी लोकसभा के चुनाव संपन्न हो गए थे। कांग्रेस के विरोध में कोई पार्टी नहीं ठहरी थी। 42 निर्दलीय ही दूसरे नंबर पर थे। बूथ लूटने की पहली घटना इसी चुनाव में घटी। देश निर्माण का जज्बा लोगों में था। सिनेमा में भी बेहतर इनसान और समाज बनाने की कोशिशें हो रही थीं। ‘दो आंखें बारह हाथ’ ऐसी ही फिल्म थी, जिसकी वी शांताराम ने एक जेल से उठाकर देश की पाठशालाओं तक पहुंची थी। फिल्म मराठाओं की देसी रियासत औंध में 40 के दशक में चले प्रयोगों में से एक पर बनी थी। औंध रियासत के स्वतंत्रपुर गांव में कैदियों को खुले में रख उन्हें सुधारने का प्रयोग किया जा रहा था। वी शांताराम ने इसी विषय पर ‘दो आंखें बारह हाथ’ बनाई।मगर शांताराम के लेखक गजानन दिगंबर माडगुलकर लाख सिर खपाने के बावजूद औंध के सुधार-प्रयोग को फिल्म की कहानी में नहीं ढाल पा रहे थे। माडगुलकर गुणी लेखक थे और उन्हें आधुनिक वाल्मीकि कहा जाता है। लगभग दो हजार गानों के अलावा नाटकों और फिल्मों की डेढ़ सौ से ज्यादा पटकथाएं इस अभिनेता ने लिखी थी। उनकी गीत रामायण आज भी मराठी घरों में गूंजती है। माडगुलकर को औंध रिसायत ने कैदियों के बीच भाषण देने के लिए भी बुलाया था।
फिर एक दिन वी शांताराम जब अपने आधुनिक बाथरूम में थे तो उन्हें अचानक इस पर कहानी सूझी और उन्होंने इस फिल्म की कहानी वहीं बैठ कर लिख डाली। इस दौरान घर के लोगों ने कई बार दरवाजा खटखटाया, मगर शांताराम तभी बाहर निकले, जब पूरी कहानी लिख ली। इस फिल्म के संगीत की जिम्मेदारी सौंपी गई थी वसंत देसाई को, जिनकी आज 42वीं पुण्यतिथि है। ‘दो आंखें बारह हाथ’ में वसंत देसाई का बनाया गाना ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम…’ देश भर में लोकप्रिय हुआ था। राजस्थान के रहने वाले भरत व्यास ने यह गाना लिखा था और लता मंगेशकर ने गाया था। इसका इतना जबरदस्त असर देश में हुआ था कि कई स्कूलों ने इसे सुबह का प्रार्थना-गीत बना लिया। देसाई संभवतया पहले ऐसे फिल्म संगीतकार होंगे जिनके बनाए एक नहीं बल्कि दो-दो गाने देश के स्कूलों में प्रार्थना-गीत के रूप में गाए जाते रहे। दूसरा प्रार्थना-गीत था ‘गुडड्डी’ फिल्म में गुलजार का लिखा ‘हम को मन की शांति देना मन विजय करें…’
चार जमात पढ़े महबूब खान की तरह वसंत देसाई भी चौथी पास थे। खाते पीते घर के होने के बावजूद उन्होंने लगभग साल भर वी शांताराम के साथ अवैतनिक हर तरह का काम किया फिर उनकी फिल्मों में छिटपुट भूमिकाएं निभाई। बाद में लगभग दस सालों तक संगीत सीखने के बाद वी शांताराम ने उन्हें अपनी फिल्म ‘शकुंतला’ (1943) में संगीत तैयार करने का मौका दिया था। देसाई ने नई गायिका वाणी जयराम से जब गुड्डी में ‘बोले रे पपीहरा…’ गवाया तो पूरे फिल्मजगत में यह गाना चर्चा का विषय बन गया था।
